भारत के लिए खेलों में इन दिनों एक स्वर्णिम समय चल रहा है और भारत की पुरुष और महिला दोनों ही हॉकी टीम सेमी-फाइनल में पहुँच गयी हैं। उसका परिणाम क्या होगा, वह तो समय पर निर्भर करता है, परन्तु जिस प्रकार से भारतीय महिला टीम के लिए एकदम से शाहरुख खान को श्रेय दिया जाने लगा, वह स्वयं में हैरान करने वाला था।
फिल्म “चक दे इंडिया” में शाहरुख खान ने भारतीय गोलकीपर मीर रंजन नेगी की भूमिका में एक हॉकी कोच की भूमिका निभाई थी। मगर इस फिल्म के बहाने हिन्दू विरोधी एजेंडा स्थापित करने का कुत्सित प्रयास किया गया था। फिल्म सुपरहिट रही थी और उसका एजेंडा भी। मीर रंजन नेगी को कभी दुनिया के सबसे बेहतरीन गोलकीपर के रूप में जाना जाता था। परन्तु 1982 में जब वह पाकिस्तान से एशियन गेम्स के फाइनल में हार गए थे और पूरे 7 गोल टीम ने खाए थे, तो उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था और उन्हें गद्दार तक कहा गया था, ऐसा कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं।
परन्तु जब चक दे इंडिया बनाई गयी तो मीर रंजन नेगी को बदलकर कबीर खान कर दिया गया और फिर जो गद्दारी की गालियाँ एक हिन्दू ने खाई थी उसे एकदम ही बदल दिया। जिस मजहब का वहां पर कोई लेनादेना ही नहीं था, और जिस एंगल का कोई लेनादेना नहीं था, जो विरोध केवल और केवल देश प्रेम पर आधारित था, उसे मजहब के प्रति घृणा के रूप में कैसे बदल दिया गया, यह शाहरुख खान और यश चोपड़ा से पूछा जाना चाहिए। आखिर कैसे कोई पूरी की पूरी कहानी को ऐसा ट्विस्ट दे सकता है, परन्तु यह भारत है और उस पर मुस्लिमों के लिए हिन्दुओं को क्या पूरे देश को ही कठघरे में खड़ा किया जा सकता है। सारी कहानी बदली जा सकती है।
और जिसे हम हालिया रिलीज़ फिल्म शेरनी तक में देख चुके हैं। परन्तु “चक दे इंडिया” फिल्म ने जो जहर पीढ़ी में बो दिया, उसे निकाल पाना अब बहुत ही टेढ़ी खीर है। यह प्रश्न अब कम से कम किया जाना चाहिए, कि चलिए मीर रंजन नेगी को कबीर खान कर दिया, तो फिर मजहब के आधार पर गद्दारी का एंगल क्यों दिखाना था? क्या मीर रंजन नेगी को गद्दार नहीं बोला गया था, और यदि बोला गया था तो क्या धर्म का कोई एंगल था? नहीं? मीर रंजन नेगी पर यह आरोप लगा कि उन्होंने पैसे खाए थे!
फिर ऐसा ट्विस्ट क्यों? और यह करके कबीर खान को महान बनाने और पूरे देश वासियों को मजहबी आधार पर नीचा दिखाने का प्रयास यश चोपड़ा के प्रोडक्शन और शाहरुख खान ने क्यों किया, अब कम से कम यह अवश्य पूछा जाना चाहिए।
हालांकि यह भी मीर रंजन नेगी ने कहा था कि यह फिल्म उनके जीवन से जुड़ी हुई नहीं है!
तो जैसे ही भारतीय महिला हॉकी टीम ओलंपिक्स के सेमीफाइनल में पहुँची तो हॉकी कोच Sjoerd Marijne ने ट्वीट किया कि वह इस बार घर लेट आएँगे, तो शाहरुख खान ने कबीर बनकर ट्वीट कर दिया कि हाँ, हाँ, कोई समस्या नहीं है। बस करोड़ों परिवार के सदस्यों के लिए कुछ सोना ले आना। इस बार धनतेरस 2 नवम्बर को है। पूर्व कोच कबीर खान! इस पर Sjoerd Marijne ने कहा “प्यार और समर्थन के लिए धन्यवाद, हम सब कुछ फिर से देंगे! – असली कोच द्वारा!
Thank you for all the support and love. We will give everything again.
From: The Real Coach. 😉 https://t.co/TpKTMuFLxt— Sjoerd Marijne (@SjoerdMarijne) August 2, 2021
जैसे ही शाहरुख़ खान का विरोध ट्विटर पर आरम्भ हुआ, तो शाहरुख़ के समर्थन में अजीब से तर्क लेकर पत्रकार मैदान में उतर आए, जैसे कि वैक्सीन सर्टिफिकेट पर मोदी की तस्वीर वैज्ञानिकों की लाइमलाइट नहीं चुरा रही, लेकिन ओलंपिक पर शाहरुख का ट्वीट महिला हॉकी टीम की लाइमलाइट चुरा रहा है।
वैक्सीन सर्टिफिकेट पर मोदी की तस्वीर वैज्ञानिकों की लाइमलाइट नहीं चुरा रही
लेकिन ओलंपिक पर शाहरुख का ट्वीट महिला हॉकी टीम की लाइमलाइट चुरा रहा है।
— Puneet Kumar Singh (@puneetsinghlive) August 2, 2021
और कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड और नवजीवन इंडिया और कथित सेक्युलर पोर्टल्स जिसे कौमी आवाज़ और सत्या हिंदी के लिए लिखने वाले आसमोहम्मद कैफ ने तो सीधा सीधा तंज मारा और इसे पूरी तरह से हिन्दू विरोध में स्थापित कर दिया:
नाम मे खान लिखा है इसलिए किसी को चुभन होती है। यह ही सच है कि #ChakDeIndia न आती तो महिला हॉकी को लाइमलाइट नही मिलती। #KabirKhan एक कल्पना थी जिसे @iamsrk के स्टारडम ने बहुत बड़ा बना दिया था। शाहरुख ने क्रिकेट पर फ़िल्म नही बनाई थी। शाहरुख को नाम की भी जरूरत नही थी !
— Aasmohammad kaif (@AasReports) August 2, 2021
और कहा कि शाहरुख के नाम के आगे खान लगा होने के कारण चुभन हो रही है। यह ही सच है कि #ChakDeIndia न आती तो महिला हॉकी को लाइमलाइट नही मिलती। #KabirKhan एक कल्पना थी जिसे शाहरुख खान के स्टारडम ने बहुत बड़ा बना दिया था। शाहरुख ने क्रिकेट पर फ़िल्म नही बनाई थी। शाहरुख को नाम की भी जरूरत नही थी !
ठीक है शाहरुख खान को नाम की जरूरत नहीं थी, पर शाहरुख खान को तब तो अपने देश के साथ खड़े होने की जरूरत थी जब भारत पर सबसे भयानक आतंकी हमला हुआ था, 26/11 में मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के बाद भी शाहरुख खान ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल के सीजन 3 में लेने की वकालत की थी!
परन्तु यह लोग यह भूल जाते हैं कि शाहरुख, आमिर और सलमान खान की खान तिकड़ी को इसी भारत की जनता ने अपने सिर माथे पर बैठाया था और किसी भी अच्छी फिल्म के लिए करते हैं। परन्तु यहाँ पर विरोध तथ्यों के साथ की गयी छेड़छाड़ और ऐसे ट्विस्ट का है, जो देश की छवि के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ। क्या फिल्म किसी हिन्दू नाम के साथ नहीं बनाई जा सकती थी? क्या शाहरुख खान के साथ कभी मुस्लिम होने के नाते भेदभाव हुआ? नहीं! पर शाहरुख खान ने जरूर अपनी फिल्म को बेचने के लिए एजेंडा बनाया और जो मामला था नहीं, उसे मुद्दा ही नहीं बनाया बल्कि पूरे देश ही नहीं विश्व में भारत और हिन्दुओं को बदनाम किया, और जो देश प्रेम पर आधारित गद्दार की उपमा मीर रंजन नेगी को दी गयी थी, उसे मजहब के आधार पर बदल दिया, विरोध इस बात का है! विरोध देश की गलत तस्वीर उस मामले पर विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने का है, जो दरअसल कभी मामला था ही नहीं!
रचनात्मक स्वतंत्रता का अर्थ किसी देश के बहुसंख्यक समुदाय को निशाने पर लेने के लिए देश की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा देना नहीं होता है, और पहचान को ही छिन्न भिन्न कर देना नहीं होता है!
और मानसिक दरिद्रता का शिकार हुए वोक लिबरल, जो उस कथित सेकुलर फिल्म को देखकर ही बड़े हुए हैं, वह रील और रियल में अंतर करना ही नहीं भूले हैं, बल्कि फिल्म को पसंद ही इसलिए करते हैं क्योंकि वह उनके आकाओं के एजेंडे के बहाने उनके झूठे ईगो को भी संतुष्ट करती है, कि “इंडिया और हिंदूज़ कितने इनटोलरेंट हैं!”
विरोध इस झूठी तस्वीर को प्रस्तुत कर हिन्दुओं और देश को कठघरे में खड़े करने को लेकर है! और यह सदैव रहेगा!
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