कल से कई पुराने ऐसे वीडियो इंटरनेट पर छाए हुए हैं, जो वरिष्ठ आईएएस अधिकारी मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन की मजहब की कट्टरता को दिखा रहे हैं और मीडिया में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि वह इस्लाम की दावत दे रहे हैं।
यह दावत भी अजीब शब्द है! फिल्मों ने इसे केवल निमंत्रण तक सीमित कर दिया था, जबकि इस्लाम के सन्दर्भ में यह दावाह (dawah) शब्द से निकला है और इसकी एक पूरी की पूरी पद्धति होती है, जिसका पालन करने की सलाह, इस्लाम में दी गयी है, कि कैसे चरण दर चरण काफिरों को इस्लाम की दावत देनी है। पूरे विश्व में दावाह प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है।
इसमें कई बातें बताई जाती होंगी। पद्धति होगी। मगर जहाँ यह वीडियो हैरान करने वाला है तो वहीं जयपुर डायलॉग के संजय दीक्षित ने एक किताब के कुछ पन्ने साझा करते हुए कहा कि मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन ने इस्लाम में लाने के लिए एक किताब भी लिख रखी थी, और उसका नाम था शुद्ध भक्ति, और वह हिन्दुओं को इस्लाम में आने की दावत देता था और कहता था कि इसलिए इस्लाम क़ुबूल कर लिया जाए क्योंकि मोहम्मद ही विष्णु भगवान के दसवें अवतार हैं।
इतना ही नहीं, भविष्य पुराण के नाम पर बार बार यह भ्रम फैलाया जाता है कि मोहम्मद ही उद्धारक है। जबकि एक नहीं कई बार इस झूठ का पर्दाफाश एक नहीं कई लोगों ने किया है। यह बात जाकिर नायक ने कही है कि भविष्य पुराण में मोहम्मद का उल्लेख है, इसलिए हिन्दुओं को इस्लाम में आ जाना चाहिए। परन्तु एक ब्लॉग में सिलसिलेवार इस झूठ का पर्दाफाश किया गया था, कि कैसे मुस्लिम जो बरगलाते हैं। उनके झूठ का सच क्या है?
जैसा वह झूठ है वैसी ही एक झूठी कहानी उस वीडियो में कही गयी है जब एक युवा मुस्लिम मौलवी एक समूह को संबोधित कर रहा है, जिसमें इफ्तिखारुद्दीन भी बैठा हुआ है, उसमे एक कहानी है कि हाल ही में पंजाब से एक आदमी इस्लाम में आ गया है। मैंने उसे दावाह नहीं दिया, हालांकि हम मुशरिकों के बीच काम करते हैं। जब मैंने उससे पूछा कि वह इस्लाम में क्यों आया है, तो उसने बताया कि वह अपनी बहन की मौत के बाद इस्लाम में आया। उसने कहा कि जब उसकी बहन मर गयी थी तो जब उसे जलाया जा रहा था, तो उसके कपडे जलने गए और वह नंगी हो गयी थी। लोग उसे नंगी देख रहे थे, और मुझे शर्म आई। मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सका और मैं बाहर आ गया, मैंने सोचा कि जब मेरी बेटी मरेगी तो यह लोग उसे भी नंगा देखेंगे और मैंने यह अनुभव किया कि इस्लाम से बेहतर कुछ नहीं है, इसलिए मुझे इसमें आना चाहिए। फिर मुशर्रफ साहब ने कहा कि नगीना (उत्तर प्रदेश में बिजनौर) से कोई आएगा, जो मेरे लिए कलमा पढ़ेगा और मैं इस्लाम में चला जाऊंगा।
यह पूरी कहानी झूठ से भरी हुई है। क्या आज तक ऐसा कभी हुआ है कि लकड़ी जल जाए और देह न जले! यह दरअसल शव का बलात्कार करने की वही मानसिकता है, जिसका उल्लेख अभी हाल ही में अफगानिस्तान से आई एक लड़की ने बताया था:
मुस्कान ने कहा कि वह लोग डेड बॉडीज के संग भी रेप करते हैं। मुस्कान का कहना था कि जब तालिबान सरकार में नहीं थे, तभी यह करते थे। और वह कहती है कि उन्हें केवल लड़की चाहिए!
क्या यह वही मानसिकता नहीं है जो हिन्दू लड़कियों के शवों को भी नहीं छोडती है, जो बस बलात्कार ही करना चाहती है? नहीं तो ऐसी कल्पना भी सहज कोई नहीं कर सकता है!
यह वही मानसिकता है जिससे बचकर अफगानिस्तान की पॉप सिंगर भाग गयी है और जिसने अपने मंगेतर से कहा कि अगर तालिबान मुझे पकड़ लेते हैं, तो मुझे गोली मार देना!
यह वही मानसिकता है जिससे बचने के लिए आज से कुछ वर्ष पहले यजीदी लड़कियों ने खुद का चेहरा जला लिया था?
उसके बाद वीडियो मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति से परिचय बताता है और सुनने वालों से दा ई अर्थात दावाह देने वाला बनने के लिए कहता है। अर्थात काफिरों को इस्लाम में दावत देने वाला। वीडियो में है कि “आपके देश के उपराष्ट्रपति ने अपनी किताब की 5000 प्रतियां प्रकाशित की हैं, अब और 50,000 प्रतियाँ मुद्रित हो रही हैं? (वह एक आदमी से प्रश्न कर रहा है!” जिसे आप उपराष्ट्रपति कह रहे हैं और जो राष्ट्रपति बनने वाला हो वह दाई हो जाता है!!! चमको चमको! अगर आप कुछ और होना चाहते हैं और मजहब फैलाने वाले हो जाते हैं,……………………(उसके बाद स्पष्ट नहीं है) हामिद ने मुख्तार से पूछा, किसने यह लिखा है, मेरा नाम भी आया, मैंने उनसे कहा कि उन्हें देश का राष्ट्रपति होना चाहिए!”
हमारे पाठकों को यह स्मरण ही होगा कि विवादास्पद भारतीय विदेश सेवा में रह चुके हामिद अंसारी भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर वर्ष 2007 से 2017 तक रहे रहे। हाँ, यह स्पष्ट नहीं है कि जिस हामिद की बात यहाँ पर हो रही है, वह हामिद अंसारी हैं या फिर कोई और हामिद हैं!
जो व्यवहार मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन ने किया है, उसके विषय में ही सुदर्शन चैनल ने यूपीएससी जिहाद के नाम से एक कार्यक्रम आरम्भ किया था, जिसका विरोध हुआ था और कहा गया था कि यह आईएएस की सेवाओं को साम्प्रदायिक बनाने वाला कार्यक्रम है, परन्तु कहीं न कहीं मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन जैसे अधिकारियों का आचरण इसे सही प्रमाणित तो नहीं करता है?
एक और बात यहाँ पर ध्यान देने योग्य है कि जकात फाउंडेशन, जो एक इस्लामिक संस्थान है और जिसके संपर्क भी संदेहास्पद हैं, वह मुस्लिम विद्यार्थियों को आईएएस की पढ़ाई आदि में मदद कर रही है फिर ऐसे में वह कैसी मानसिकता लेकर कार्य करेंगे, यह सोचा ही जा सकता है और इसकी दुसह्य कल्पना ही की जा सकती है।
अभी मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन के विरुद्ध शिकायत हो गयी है और एसआईटी जांच की अनुशंसा हो गयी है। देखना होगा कि पद पर रहते हुए इस प्रकार मजहब में लाने की दावतों पर क्या कदम उठाए जाते हैं? या फिर आईएएस एसोसिएशन इस व्यवहार पर क्या प्रतिक्रिया देती है क्योंकि सुदर्शन चैनल पर आने वाले उस कार्यक्रम के विरोध में तो वह खुलकर आई थी!
