यह सब भारत में ही संभव है कि हिन्दुओं को उनके मंदिरों में पूजा पाठ करने के लिए न्यायालय जाना पड़े, एक ओर जहां वक्फ बोर्ड का मामला इन दिनों छाया हुआ है और यह बार बार प्रमाणित हो रहा है कि कैसे वह अकूत सम्पत्ति का मालिक हो गया है, तो वहीं हिन्दुओं को कभी वक्फ तो कभी भारतीय पुरातत्व विभाग के हाथों से अपने मंदिरों को छुडाकर पूजा पाठ के अधिकार के लिए भी लड़ाई लड़नी पड़ रही है!
यह हिन्दुओं की एक बहुत बड़ी विडम्बना है! परन्तु यही इंडिया है और यही हिन्दुओं के साथ अन्याय की कहानी है। ताजा मामला है, मध्यप्रदेश में अमरकंटक के रंगमहल मंदिर को लेकर न्यायालय ने यह आदेश दिया है कि इस मंदिर को द्वारका पीठ को सौंप दिया जाए। मीडिया के अनुसार
“अनूपपुर जिले के अपर सत्र न्यायालय राजेंद्र ग्राम ने द्वारिका शारदा पीठ के पक्ष में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कल्चुरीकालीन रंग महल के मंदिरों पर पूजा करने में लगी रोक हटा ली है।“
यहाँ पर पुरातत्व विभाग के अधीन कलचुरीकालीन रंग महल में कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनमें 4 दशकों से दर्शनार्थी पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे थे। लोगों में इस बात को लेकर क्रोध भी था। परन्तु चूंकि यह पुरातत्व विभाग के अधीन थे, तो लोग दर्शन नहीं कर पा रहे थे।
मीडिया के अनुसार
“पवित्र नगरी अमरकंटक में मां नर्मदा मंदिर के सामने प्राचीन कलचुरी कालीन रंगमहला मंदिर जिसकी भव्यता सुंदरता देखने बनती है जो कल्चुरी कालीन सेकडो साल का प्राचीन मंदिर है ,यहां विष्णु ,पातालेश्वर शिव, सतनारायण भगवान विराजे है और इन मंदिरों पूजा-पाठ लगभग 40 सालों से बंद थी, मंदिर परिसर को पुरातत्व विभाग का अधिग्रहण था और पूजा पाठ पर प्रतिबंध लगा दिया था ।“
जबकि इन मन्दिरों की देखरेख का उत्तरदायित्व द्वारिका शारदा पीठ का है। इन्हीं तथ्यों को लेकर तत्कालीन द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वर्गीय स्वामी स्वरूपानंद ने भारत सरकार के पुरातत्व विभाग राज्य सरकार के विरुद्ध वर्ष 2015 में अपर न्यायालय राजेन्द्र ग्राम में याचिका दर्ज कराई थी।
न्यायालय में उपयुक्त दस्तावेजों को प्रस्तुत किया गया तथा न्यायालय ने इस बात को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया कि मंदिर पर अधिकार द्वारिका शारदा पीठ का है एवं मंदिरों पर पीठ द्वारा ही देख रेख के अधिकार के सम्बन्ध में निर्णय के विषय में पुरातत्व विभाग को प्रतिलिपि भेज दी गयी।
यह मंदिर यहाँ के प्राचीन मंदिरों में से हैं, अत: इनमें पूजा पाठ न होने के चलते स्थानीय नागरिक क्रोधित थे, क्षोभ में थे। इस निर्णय के उपरान्त वह प्रसन्न हैं।
पिछले सप्ताह ही द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वर्गीय स्वामी स्वरूपानंद ब्रह्मलीन हुए हैं
पाठकों को स्मरण ही होगा कि पिछले ही सप्ताह द्वारिका शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ब्रह्मलीन हुए हैं। यह उन्हीं के उठाए कदमों का परिणाम है कि अब रंगमहल में हिन्दू पूजा कर सकेंगे।
यह निर्णय प्रसन्नता एवं क्षोभ दोनों का ही विषय है:
यह निर्णय जहां एक ओर यह निर्धारित करता है कि मंदिर में पूजा होगी तो वहीं दूसरी ओर ऐसी घटनाएं अत्यंत क्षोभ में भरने वाली हैं कि जिनमें हिन्दुओं को अपने ही आराध्यों के विग्रहों की पूजा करने के लिए गुहार लगानी पड़ती है, न्यायालय में दस्तावेज दिखाने पड़ते हैं और फिर वर्षों तक प्रतीक्षा करनी होती है, और तब कहीं जाकर विग्रहों की पूजा हो पाती है!