सीता माता पर अश्लील टिप्पणी करने वाले एवं गोधरा कांड पर असंवेदनशील टिप्पणी करने वाले मुनव्वर फारुकी का शो अंतत: मुम्बई में कांग्रेस पार्टी की मदद से आयोजित हो गया। यह भी विचित्र संयोग ही है कि एक ओर राहुल गांधी और पूरी की पूरी कांग्रेस हिन्दू और हिंदुत्व पर रोज रोज भाषण दे रहे हैं, और उधर माता सीता और प्रभु श्री राम का अपमान करने वाले मुनव्वर फारुकी का शो भी आयोजित करवा रहे हैं।
यह भी कैसी विडंबना है कि हिन्दू मात्र उस मुनव्वर फारुकी पर एफआईआर दर्ज करवाकर और शो कैंसिल करवाकर “असहिष्णु” प्रमाणित हो गए हैं, जिसने अपने कॉमेडी शो में माता सीता का अपमान किया था। हिन्दुओं ने हथियार नहीं उठाए। उन्होंने मुनव्वर पर हमला नहीं किया, बल्कि कानून और प्रशासन का सहयोग लिया, एवं अपनी चिंताएं रखीं।
परन्तु फिर भी वही असहिष्णु ठहराए गए। चाहे कॉमेडी हो, फ़िल्में हो, या कला या साहित्य हो, हिन्दुओं को कोसना और हिन्दुओं को गाली देना क्रांतिकारी कदम माना गया, और शेष पंथों का तुष्टिकरण किया गया। उन्हें सम्हाला गया, और हिन्दू धर्म एवं हिन्दुओं के भगवान को सार्वजनिक उपहास का विषय बनाया गया। जिन कॉमेडियंस को हिन्दू धर्म की तनिक भी समझ नहीं थी, या जो हिन्दू धर्म में आस्था भी नहीं रखते हैं, उन्होंने हिन्दू भगवान एवं ग्रंथों के उपहास को अपना विषय बना लिया।
क्या हिन्दू भगवान कॉमेडी के विषय हैं? और इन कॉमेडियंस को किसने यह अधिकार दिया?
हिन्दू समाज सहिष्णु है, वह नास्तिकता को भी उतना ही सम्मान देता है, जितना आस्तिकता को। उसके हृदय में सभी के लिए आदर है, यही कारण है कि कई बार वह कई चीज़ें अनदेखा कर देता है। वर्षों से हिन्दू धर्म के भगवानों को कॉमेडी के नाम पर विकृत किया जाता रहा था। पर जब से स्टैंडअप कॉमेडियन आए तब से यह जैसे एक नियम बन गया कि हिन्दू भगवान पर या देवी-देवताओं पर टिप्पणी करके ही कॉमेडी करनी है।
कभी प्रभु श्री राम पर टिप्पणी तो कभी गणेश जी पर! कभी शिव जी को कुछ कहना तो कभी कामसूत्र के बहाने हिन्दुओं को अश्लील ठहराना!
जबकि इनमे से किसी ने भी हिन्दू धर्म को न ही पढ़ा होगा और न ही समझा होगा, पर उन्हें मजाक उडाना है, और क्यों उडाना है, यह नहीं पता! मुनव्वर फारुकी जब प्रभु श्री राम और माता सीता के विषय में अभद्र टिप्पणी करता है, तो उसे यह अधिकार किसने दिया कि वह माता सीता के लिए ऐसी गंदी भाषा को प्रयोग कर सके कि “सीता को तो राम पर पहले से ही शक था!”
छि! पर फिर भी हिन्दुओं ने मुनव्वर फारुकी के विरुद्ध कानूनी लड़ाई लड़ी, उन्होंने ईशनिंदा के नाम पर किसी की लिंचिंग नहीं की, उन्होंने एक सभ्य नागरिक के अनुसार ही कदम उठाए, परन्तु कानूनी कदम उठाने वाले और संविधान का पालन करने वाले पूरे विश्व की दृष्टि में असहिष्णु और कट्टर ठहरा दिए गए।
संजय राजौरा ने अपना एक एक्ट वेदों पर किया था। पहले उसने हिन्दुओं के प्रथम पूज्य गणेश जी के हाथी के सिर का उपहास उड़ाया था
तो फिर वहीं एकलव्य के दलित होने पर अंगूठा मांगे जाने का उल्लेख ले आया था और इसके साथ ही उसने यह भी स्थापित करना चाहा था कि एक उच्च जाति के हिन्दू के लिए वेदों की सर्वोच्चता ही सबसे बढ़कर है।”
यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि जितने भी स्टैंडअप कॉमेडियन हैं, उनमें भारतीय जनता पार्टी, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ आदि के प्रति असीम घृणा भरी है, और यह होना किसी भी लोकतंत्र के लिए कुछ अजीब नहीं है क्योंकि यह लोकतांत्रिक अधिकार है, परन्तु यह अवश्य संज्ञान में रखना चाहिए कि उन लोगों से घृणा के बहाने हिन्दू धर्म और हिन्दू देवी देवताओं का अपमान नहीं कर सकते हैं!
यदि भारतीय जनता पार्टी प्रभु श्री राम का नाम ले रही है, तो आप लोग प्रभु श्री राम का अपमान करेंगे? या फिर धर्म के नाम पर बलिदान होने वालों का उपहास करेंगे? दुर्भाग्य से अभी यही हो रहा है।
कुनाल कामरा और मासूम राजवानी ने भी मुम्बई में हिन्दू देवी देवताओं का मजाक उड़ाया था। परन्तु पारस राजपूत ने तुरंत ही शो में शोर मचाया था और उसी रात पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। पारस राजपूत ने एक वीडियो भी पोस्ट किया था, जिसमें लोगों को शो में हिन्दुओं के खिलाफ भद्दे मजाक करने के प्रति आक्रोश देखा जा सकता था।
ऐसी ही एक स्टैंडअप कॉमेडी में कामसूत्र, खुजराहो और इस्कॉन तक का मजाक उड़ाया गया था, और स्टैंड अप कॉमेडियन सुरलीन कौर के विरुद्ध इस्कॉन ने शिकायत दर्ज कराई थी। शेमारू कंपनी ने माफी मांगते हुए उस वीडियो को हटाने की बात कही थी! परन्तु वह वीडियो अभी भी सुना जा सकता है और वर्ष 2020 में इस्कॉन ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।
यह तो वह मामले हैं, जो सामने आ पाए हैं, नहीं तो कई ऐसे मामले हैं, जो सामने नहीं आ पाते हैं।
एक कॉमेडियन ने शिवाजी महाराज का मजाक उड़ाया था
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सेक्युलर होने का अर्थ हिन्दू धर्म का अपमान करना नहीं होता
एक बात और समझ में आ जानी चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सेक्युलर होने का अर्थ कभी भी हिन्दू धर्म का अपमान करना नहीं होता है! यदि संविधान में अभिव्यक्ति का अधिकार दिया गया है तो उसी संविधान में धार्मिक अधिकारों के सम्बन्ध में भी धाराएं हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है।
जितने भी मामले ऊपर बताए हैं उनमें से अधिकतर हिन्दुओं ने कानूनी कदम उठाकर ही विरोध किया, परन्तु फिर भी हिन्दुओं को असहिष्णु ठहराया जाता है, जबकि वह मांगता ही क्या है, मात्र कानूनी कार्यवाही और संविधान के अनुसार दंड! और उसे वह तो मिलता नहीं है, उलटे यह कहा जाता है कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, कुछ कह भी दिया तो क्या हुआ? तुम्हारा भगवान इतना छोटा थोड़े ही न है जो किसी की बात से नीचा हो जाएगा!”
फिर उनसे यह प्रश्न पूछा जाए कि जो लोग अपनी किताबों के लिए लोगों को मार डालते हैं, क्या वह छोटे हैं? तो वह आंय बायं बोलने लगेंगे, पर प्रश्न का उत्तर नहीं देंगे? `
क्योंकि हिन्दू घृणा से भरे हुए यह लोग इतने असहिष्णु हैं कि वह हिन्दुओं को केवल इसी बात गाली देते हैं, कि हिन्दू उनका विरोध कानूनी तरीके से करते हैं!