भारत सरकार के खेल मंत्रालय द्वारा नेशनल यूथ फेस्टिवल 2022 के ‘ग्रेट माइंड डिस्कस आइडियास’ कार्यक्रम में कई लोगों के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओं पर अभद्र टिप्पणी करने वाले लेखक देवदत्त पटनायक को भी आमंत्रित किया गया था। जैसे ही यह पोस्टर जारी हुआ, वैसे ही सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। वह महिलाओं को लेकर भी अभद्र टिप्पणी करते रहते हैं।
यद्यपि सोशल मीडिया पर ऐसे विरोध के बाद देवदत्त पटनायक का सत्र “तकनीकी” समस्या के कारण रद्द हो गया।
देवदत्त पटनायक ने हिन्दू देवी देवताओं पर पुस्तकें लिखी हैं, तथा स्वयं को इसका विशेषज्ञ मानते हैं, वहीं वह प्रभु श्री राम एवं माता सीता के बहाने अभद्र टिप्पणी करते रहते हैं। वह वामपंथ का ऐसा उपकरण है, जो हिन्दू धर्म को अपने कथित पुनर्कथन के माध्यम से पूरी तरह से तहस नहस करना चाहते हैं।
जिन्होनें अपनी हर पुस्तक में न जाने किन किन तथ्यों को कैसे तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया है और जिन्होनें महाराज दशरथ के पुत्रकामेष्टि यज्ञ को भी “नियोग” कहा गया है और कहा गया है कि ऋषयश्रंग ऋषि को नियोग प्रथा निभाने के लिए लाया गया था। एवं वह राजा दशरथ के दामाद थे। वाल्मीकि रामायण में कहीं पर भी राजा दशरथ की पुत्री का उल्लेख नहीं है। वाल्मीकि रामायण में पुत्र कामेष्टि यज्ञ का सविस्तार वर्णन प्रदान किया गया है।
इतना ही नहीं इस पुस्तक में देवदत्त पटनायक ने यह भी लिखा है कि भारत के महाकाव्य रामायण और महाभारत कई सदियों के बाद अपने अंतिम प्रारूप में आए, जो कि बौद्ध धर्म के बाद भी जारी रहा।
यह बहुत ही हैरानी की बात है कि अपनी हर पुस्तक में भारत के इतिहास को बार बार अपमानित करने वाले एवं वास्तविक जीवन में स्त्रियों को गाली देने वाले देवदत्त पटनायक को कैसे और क्यों सरकार द्वारा आमंत्रित कर लिया गया? क्या आमंत्रित करने वाले लोगों ने देवदत्त को पढ़ा नहीं था?
शायद ही पढ़ा होगा! क्योंकि इन कार्यक्रमों में बुलाने का मापदंड कभी भी अच्छा लेखन नहीं होता है, बल्कि नेटवर्क महत्वपूर्ण होता है। अधिकारी के नेटवर्क में जो भी लेखक होते हैं, उन्हें ही आमंत्रित किया जाता है। वह किसी भी प्रकार से प्रभावित हो सकते हैं।
उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता कि लेखक ने अपनी पुस्तक में क्या लिखा है! यदि उन्हें इससे मतलब होता तो उन लेखकों को बुलाया होता जो तमाम संकटों का सामना करने के बाद वह सत्य और इतिहास की काली खोहें सामने लाने का साहस कर रहे हैं, जिन्हें पहले अंग्रेजों और फिर वामपंथी लेखकों ने जानबूझकर दबाकर रखा।
ऐसे बहुत से लेखक हैं जो इतिहास और हिन्दू धर्म पर निस्वार्थ कार्य कर रहे हैं, इसलिए अधिकारियों के पास इनका विवरण कदाचित ही होगा।
खेल मंत्रालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में ही ऐसा हो रहा है, ऐसा नहीं है। लेखन के क्षेत्र में अधिकारी अभी उन्हीं लेखकों को बुला रहे हैं, जिनके नंबर उनके पास हैं या जो “अभिजात्य वाम वर्ग से हैं”
परन्तु जनता अब इन सभी का सत्य जानती है। उसे अब पता चल गया है कि कैसे साहित्य के नाम पर हिन्दू घृणा को वामपंथी विचारधारा ने फैलाया और अब तक कर रही है। इतना ही नहीं, यह वामपंथी विपरीत विचारों वाली स्त्रियों के साथ अश्लील बातें करने से भी नहीं चूकते हैं। जैसे ही देवदत्त पटनायक के उस कार्यक्रम में सम्मिलित होने की बात बाहर आई लोगों ने नकली साहित्यकार के स्त्री विरोधी और धर्म विरोधी ट्वीट साझा करने आरम्भ कर दिए।
एक यूजर ने सबसे महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि देवदत्त पटनायक वैदिक ग्रंथों की बहुत ही घिनौनी व्याख्या करते हैं, उनके जैसे लोग किसी भी नास्तिक से अधिक खतरनाक हैं।
मेजर सुरेन्द्र पुनिया ने भी विरोध करते हुए ट्वीट किया कि
आदरणीय कैप्टन @ianuragthakur जी, devdutt पटनायक जैसे आदमी को भारत सरकार के #NationalYouthFestival कार्यक्रम में बुलाया जाना बहुत ही शर्मनाक है।।कृपया Intervene करेंFolded hands यह व्यक्ति हिन्दू धर्म,देवी देवताओं,भारत के इतिहास/संस्कृति,PM मोदी और बहन/बेटियों को भद्दी गालियां देता हैं !
लोगों का गुस्सा इसी बात पर था कि हिन्दू धर्म से घृणा करने वाला व्यक्ति आखिर कैसे ऐसे आयोजन में आमंत्रित किया जा सकता है?
यह बात सही है कि श्री नरेंद्र मोदी की सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास पर काम करती है, परन्तु क्या इन सबमें प्रभु श्री राम और हिन्दुओं को गाली देने वाले भी सम्मिलित हैं? यह भी प्रश्न पूछना होगा?
आहत जनता का यही प्रश्न था कि आखिर इतना हिन्दू धर्म से घृणा करने वाला व्यक्ति कैसे सरकारी प्लेटफॉर्म पर बुलाया जा सकता है?
भारतीय जनता पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी है जो अपने समर्थकों और अपने कोर मतदाताओं को अपशब्द कहने वालों को सम्मानित करती है और जो पूर्ववर्ती सरकारों के गलत कार्यों को अपनी पुस्तकों के माध्यम से जनता के बीच लाकर उनके लिए राह बनाते हैं, उन्हें पहचानने से ही इंकार करती है?
इतना हीनताबोध किसी भी पूर्ण बहुमत की सरकार में नहीं देखा गया है जितना बौद्धिक मोर्चे पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में देखा जाता है। असंख्य लोग अपने अपने जोखिम पर लिख रहे हैं, और उन विषयों पर लिख रहे हैं, जिन पर सहज सोचा नहीं जा सकता है, परन्तु इस सरकार को वामपंथी लेखकों से प्रमाणपत्र के साथ साथ हिन्दू इतिहास को तोड़ने वाले लेखकों का प्रमाणपत्र चाहिए, तभी देवेदत्त पटनायक जैसे लेखकों को ऐसे आयोजन का भाग बनाया गया।
वह झूठ फैलाते हुए कई बार पकडे गए। उन्होंने यह तक कहा था कि पुरी मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित है। और इसी को लेकर उन पर एफआईआर भी दर्ज कराई गयी थी।
यह लोगों के लिए बहुत ही अचंभित करने वाला निर्णय रहा था, और बार बार यही प्रश्न उठा कि क्या सरकार के प्रतिनिधि जनता से इस प्रकार कट गए हैं कि उन्हें नहीं पता चल पा रहा है कि जिसे बुलाया जा रहा है, उसका लेखन कैसा है? सत्य है या नहीं? शोध किया है या नहीं? झूठ में साहित्य है या इतिहास में ही झूठ का तड़का मिलाकर हिन्दू धर्म को अपमानित किया जा रहा है? क्या सरकार ऐसे चाटुकारों से घिर गयी है जो हर किसी को गुलाबी रूप में दिखा रही है?
यद्यपि “तकनीकी” समस्या ने देवदत्त पटनायक को इस बार रोक दिया है, परन्तु क्या ऐसे अधिकारियों पर जवाबदेही निर्धारित हो सकेगी जो ऐसे लेखकों को बार बार आमंत्रित करते हैं? या भारतीय जनता पार्टी के लोग पिछले सात वर्षों में भी हिन्दू विरोधी लेखकों को नहीं पहचान पाए हैं? या वास्तव में यही सत्य है कि भारतीय जनता पार्टी को बौद्धिक होने का तमगा हिन्दू विरोधी लेखकों से ही चाहिए?
आखिर हिन्दू इतिहास की और हिंदी की बात करने वालों को कब उतना ही सम्मान मिलेगा, जितना हिन्दू विरोधी वामपंथी लेखकों को मिलता है?
सबका साथ सबका विकास कुछ ज्यादा ही हावी है भाजपा के लोगों में