मीडिया में आई ख़बरों के आधार पर न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए आज एक बार फिर से दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार को डांट लगाई है। दिल्ली सरकार के वकील के माध्यम से दिल्ली सरकार की फटकार लगाते हुए कहा कि दिल्ली में दवाइयों और ऑक्सीजन की कालाबाजारी हो रही है और आप कुछ नहीं कर रहे हैं। आज की सुनवाई कर रही बेंच में शामिल थे न्यायाधीश विपिन संघी और न्यायाधीश रेखा पाटिल। और उन दोनों ने इस बात पर संज्ञान लिया कि ऑक्सीजन सिलिंडर के सम्बन्ध में कालाबाजारी हो रही है और यह आज की सबसे बड़ी चुनौती है।
इस विषय में वरिष्ठ अधिवक्ता मालविका त्रिवेदी ने सुझाव दिया कि न्यायालय इस मामले से निपटने के लिए एक पद्धति लागू कर सकता है और पुलिस भी इसमें साथ आ सकती है। इसके साथ ही न्यायालय ने रेम्देसिविर केवल उन्हीं को दी जाएगी जो अस्पताल में भर्ती हैं, जो पूरी तरह से कुतर्क से भरा हुआ है। अगर आपके पास अस्पतालों में उपलब्धता है तो एक चीज़ हो सकती है, पर आपके पास ऐसा कुछ नहीं है। फिर आप यह यह कह सकते हैं कि आपके पास अस्पताल में बेड नहीं है तो आपको रेम्देसिविर नहीं मिल सकता।
उसके बाद ऑक्सीजन की आपूर्ति के विषय में उच्च न्यायालय ने बेहद कड़ी टिप्पणी की। जब न्यायालय को यह पता चला कि महाराजा अग्रसेन अस्पताल के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति देने में सेठ एयर नामक आपूर्तिकर्ता विफल रहा है क्योंकि उसे बताया ही नहीं था कि अग्रसेन अस्पताल में ऑक्सीजन भी देनी है, तो उन्होंने कहा कि अपने प्रदेश को सम्हालें। अपना काम करें। यदि आप नहीं कर सकते हैं तो हमें बताएं जिससे हम केंद्र सरकार से कहेंगे कि वह आकर मामले को सम्हालें। लोग मर रहे हैं।”
Bench to Mr Mehra appearing for Delhi govt: Get your house in order. Enough is enough. If you can’t do it, tell us, we will ask Central govt to take over. People are dying! #Covid19 #Oxygen #DelhiHighCourt
— Live Law (@LiveLawIndia) April 27, 2021
ऑक्सीजन वितरण के बारे में फटकारते हुए कहा कि हम देख रहे हैं कि आप केवल लोलीपॉप का वितरण कर रहे है। सेठ एयर की बात कहते हुए कहा कि यह व्यक्ति कह रहा कि इसके पास बीस टन हैं, मगर इसे पता ही नहीं है कि वह इसे कैसे वितरित करे! और आप कहते हैं कि आपके पास ऑक्सीजन नहीं है!”
Bench: It transpired that substantial quantity is supplied tp gas refillers but no mechanism evolved as of now to see further supply made by them to hospitals. Mr Seth stated that he’s holding 20 tonne of liquid medical oxygen. #Covid19
— Live Law (@LiveLawIndia) April 27, 2021
परन्तु जो सबसे गौर करने लायक फटकार थी वह थी, न्यायालय द्वारा मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेने के बाद की फटकार! कल शाम को अचानक से ही मीडिया में एक पत्र तैरने लगा था जिसमें यह लिखा गया था कि दिल्ली सरकार से उच्च न्यायालय की ओर से यह मांग की गयी है कि उनके लिए कोविड के इलाज के लिए विशेष कमरों की व्यवस्था की जाए या विशेष सुविधा की व्यवस्था की जाए। न्यायालय ने यह स्पष्ट कहा कि हमने यह मांग की ही नहीं थी कि हमारे लिए किसी होटल में व्यवस्था की जाए या फिर होटल ही स्थापित कर दिया जाए। इस बैठक का उद्देश्य था कि न्यायपालिका में जो सबऑर्डिनेट न्यायालय है, यदि उनमें से किसी को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है तो उन्हें स्थान प्रदान किया जाए। हमें केवल सुविधा चाहिए थी, जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत हो, और इसे आपने इस आदेश के रूप में परिवर्तित कर दिया।
और फिर उन्होंने फटकारते हुए कहा कि आप इधर उधर हर जगह बस आदेश जारी किए जा रहे हैं, जिनका कोई अर्थ नहीं है। हमने इसकी मांग तक नहीं की थी। अस्पतालों में प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं, उपकरण नहीं है, वेंटिलेटर नहीं है, दवाइयां नहीं हैं। आखिर आप कहना क्या चाहते हैं।और उन्होंने यह भी पूछा कि क्या आपका एकमात्र उद्देश्य केवल हमें प्रसन्न करना है।हालांकि दिल्ली सरकार के वकील ने यह कहते हुए बचाव करने का असफल प्रयास किया कि मीडिया ने जो किया है, उसने गलत मोड़ दिया है। अस्पतालों से 25 और होटल जुड़े हुए हैं। हमने ऐसा नहीं कहा कि उच्च न्यायालय ने यह मांग की है, यह तो मीडिया ने अपने आप से जोड़ दिया है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि आपका आदेश यही कहता है। मीडिया ने कुछ गलत नहीं कहा है। उसके बाद न्यायालय ने बेहद कड़े शब्दों में कहा “क्या एक संस्थान के रूप में हम यह कह सकते हैं कि आप हमारे लिए किसी सुविधापूर्ण केंद्र का निर्माण करें, ऐसे बेड की व्यवस्था करें? क्या यह भेदभाव को नहीं बढ़ावा देता? और फिर कहा कि जब सड़कों पर लोग मर रहे हैं तो ऐसे में एक संस्थान के रूप में हम ऐसी सुविधा कैसे ले सकते हैं?
न्यायालय से ऐसी फटकार के बाद दिल्ली सरकार के वकील संतोष त्रिपाठी ने कहा कि हम आदेश को वापस लेंगे।
उसके बाद सुनवाई स्थगित कर दी गयी। आज इस निर्णय पर पूरे देश की जनता की दृष्टि टिकी हुई थी, क्योंकि कल से लेकर आज तक इंटरनेट पर यही बात फ़ैली हुई थी कि क्या यह न्यायालय को रिश्वत है? और क्या न्यायालय ऐसी विलासिता को तब स्वीकार कर पाएंगे जब वह देश में चिकित्सीय आपदा के कुप्रबंधन के मामलों की सुनवाई कर रहे हैं?
तो यह कहा जा सकता है कि उच्च न्यायालय को रिश्वत देने का केजरीवाल सरकार का दाँव हाल फिलहाल विफल हो गया है।
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