आदिवासी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है; जिसका अर्थ है “पहले के निवासी”, जिन्हें हम जनजाति कहते है। आज देश भर में 8 प्रतिशत से अधिक जनजाति आबादी फैली हुई है। दुनिया में कोई अन्य समुदाय प्रकृति के उतना करीब नहीं है जितना कि जनजाति समुदाय, प्रकृति के पोषण, रक्षा और पूजा के लिए। वे सनातन धर्म की सभी प्रथाओं का पालन करते हुए वनों के पोषण और रक्षा के लिए अपने हृदय की गहराई से सनातन धर्म का पालन करते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई जनजाति नेता थे जिनमें बिरसा मुंडा, धरींधर भूआन, लक्ष्मण नाइक, जंत्या भील, बंगारू देवी और रहमा वसावे, मंगरी ओरांव शामिल थे।
स्वर्गीय श्री बिरसा मुंडा, एक विद्वान, एक महान स्वतंत्रता सेनानी और एक धार्मिक नेता की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी भूमिका थी। उन्होंने जनजाति क्षेत्रों में हजारों जनजातियों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने और गरीब जनजातियों के शोषण के लिए एकजुट किया। उन्होंने ईसाई धर्मांतरण मिशनरियों का भी विरोध किया जो ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए जनजातियों को मजबूर कर रहे थे। बिरसा मुंडा ने अपने अनुयायियों को हमारे अपने धार्मिक मार्ग पर चलने और मिशनरियों का शिकार न बनने के लिए प्रेरित किया। स्कूल के दिनों में मिशनरियों ने उनका धर्म परिवर्तन कर दिया; बाद में, उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ दिया और हिंदू धर्म में लौट आए। आज भी कई क्षेत्रों में जनजातियों को गुमराह किया जा रहा है और ईसाई धर्म में परिवर्तित किया जा रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि आप हिंदू नही है, जब कि वैज्ञानिक तरीको से भी पता चला है कि सबके वंशज एक ही है, फिर यह गलत धारणाये क्यूँ बनायी जा रही है? दुसरी महत्वपूर्ण बात यह है की जनजातियो की पर्यावरण संरक्षण आणि पूजा पद्धति सनातन धर्म से जुडी हुई नही है क्या? पुरी तरह से है!
सनातन धर्म सारे धर्मो का आदर करने मे विश्वास रखता है, और सम्मान भी देता है, फिर किसी व्यक्ति को सनातन धर्म के बारे मे उसके मन मे विष भरकर धर्मान्तरित करना, क्या हमारे देश और दुनिया के लिए ठीक होगा?
हमारे संविधान मे लिखा है कोई स्वयं की इच्छा से परिवर्तित होना चाहता है तो उसमे कोई आपत्ति आपत्ती नही है, लेकिन गुमराह और जहर मन मे भरकर करना कतई उचित नही है. भगवान श्रीराम ने शबरी के जुठे बेर खाये थे! निषाद राज केवट को भगवान श्रीराम समान भाव से व अपने भाई के रूप में मानते थे! सनातन धर्म हमेशा से ही आदर करते आया है लेकिन कुछ विरोधी अपने स्वार्थ के कारण इसे गलत तरिके से पेश करते है!!
कई संगठन बिना किसी गलत मंशा के जनजाति समुदाय के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। जिनमें से एक है “अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम”, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखा।
वनवासी कल्याण आश्रम अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न सेवा परियोजनाओं के माध्यम से जनजातियों के कल्याण के लिए कार्य करता है। 397 जनजाति जिलों में से 338 जिलो में जनजाति लोगों के उत्थान के लिए विभिन्न गतिविधियों के साथ काम कर रहे हैं। उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए 52323 गांवों में कार्य किया जा रहा है और धीरे धीरे बाकी गावों को भी जोडा जा रहा है। विकास कार्यों के अलावा स्थानीय संस्कृति को भी प्रोत्साहित और बढ़ावा दिया जा रहा है। इसलिए वनवासी कल्याण आश्रम का उद्देश्य प्रत्येक जनजाति भाई-बहन के समग्र विकास के लिए कार्य करना है। कई स्थानों पर विभिन्न खेल सुविधाएं भी विकसित की गई हैं।
कुछ सेवा कार्य :
- छात्रावास की सुविधा: लड़कों के लिए 191 छात्रावास और लड़कियों के लिए 48 छात्रावास बनाए गए हैं।
- शिक्षा केंद्र: अब तक 455 औपचारिक शिक्षा केंद्र बनाए जा चुके हैं और पूरे देश में 3478 अनौपचारिक शिक्षा केंद्र काम कर रहे हैं। इससे 63000 से अधिक लाभार्थी लाभान्वित हो रहे हैं।
- कृषि विकास केंद्र: कम लागत में बेहतर पद्धतियों के साथ उपज में सुधार के लिए 56 केंद्रों का विकास किया गया है।
- कौशल विकास केंद्र: युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने और जीवन स्तर में सुधार के लिए देश भर में 104 कौशल विकास केंद्रों की स्थापना की है, जिस से उन्हें विभिन्न कौशल में प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया शुरु है।
- स्वयं सहायता समूह: स्वयं सहायता समूह आपसी सहयोग से स्थानीय जरूरतों का ध्यान रखते हैं। अब तक 3348 ग्रुप बनाए गए हैं।
- चिकित्सा सुविधाएं: 16 अस्पताल बनाए गए और 287 चिकित्सा शिविर आयोजित किए गए। 4277 ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता इन लोगों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं।
कई सफलता की कहानियों में से एक, सोहन कुमार, वैज्ञानिक, चंद्रयान II का हिस्सा थे, कल्याण आश्रम स्कूल के छात्र थे।
वीकेए के स्वयंसेवकों द्वारा किया जा रहा निस्वार्थ कार्य केवल आदिवासी समुदाय के लिए अपनेपन की भावना और उनके सम्मान के लिए किया जा रहा है। वीकेए जनजाति समुदाय के लाभ के लिए काम करना जारी रखेगा, भले ही उन्हें कई संगठनों या राजनीतिक प्रतिशोध और वोट बैंक की राजनीति करने वालो से भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा हो।
हमें अपने जनजाति भाइयों, बहनों का सम्मान करना चाहिए और किसी संगठन से डरे बिना उनकी बेहतरी के लिए काम करना चाहिए, जो गलत इरादे से उनका शोषण करने की कोशिश कर रहे हैं।
पंकज जगन्नाथ जयस्वाल
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