भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। आईसीएचआर ने यह घोषणा की है कि मालाबार विद्रोह में शामिल जिन लोगों के नाम “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानियों” की सूची में हैं, उन सभी को हटाया जाएगा। मालाबार का यह विद्रोह किसी भी प्रकार का किसान आन्दोलन या स्वतंत्रता संग्राम का आन्दोलन न होकर केवल और केवल हिन्दुओं का नरसंहार था।
इस नरसंहार की कहानी का सिरा इतिहास में है जब केरल में कालीकट के राजा ने मुसलमान व्यापारियों और धर्मप्रचारकों को देश में बसने की अनुमति ही नहीं दी थी बल्कि घर आदि बसाने के लिए भूमि आदि भी दान में दी थीं। यद्यपि मानवता के नाते यह निर्णय प्रशंसनीय था, परन्तु कालांतर में यह हिन्दुओं के लिए काल साबित हुआ। हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने का योजनाबद्ध तरीका धीरे धीरे विकसित होता रहा और जो मुस्लिम थे, और जिनके पुरखे भले ही हिन्दू रहे हों, उन्होंने भी मुस्लिम शासकों का ही साथ देना स्वीकारा।
वर्ष 1921 में जो कुछ भी हुआ था वह इतिहास की ही घटनाओं से आगे की पुनरावृत्ति थी। वही सब दोहराया गया था, मगर उसे बाद में मार्क्सवादी इतिहासकारों ने एक पर्दे में दबा दिया। वर्ष 1921 में केरल में मालाबार में हिन्दुओं को मारने के लिए भयानक दंगे हुए और लगभग छह महीनों तक यह कत्लेआम चलता रहा।
और मजे की बात यह है कि हिन्दुओं के खिलाफ हुए इस जिहाद को “किसान विद्रोह” बता कर प्रस्तुत किया गया। मुस्लिमों की सत्ता स्थापित करने के लिए खिलाफत आन्दोलन में जब कांग्रेस ने समर्थन कर दिया था और वरियाम कुन्नाथु कुंजाहमद हाजी (Variyamkunnath Kunjahammed Haji) ने मालाबार में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर दी और उसका निर्विवाद रूप से नेता बन गया। छ महीने तक वह समानांतर सरकार चलाता रहा और उस समानान्तर सरकार में वामपंथी इतिहासकारों एवं आईएएस की तैयारी कराने वाले संस्थानों के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का पालन किया जाता रहा।

वामपंथियों ने उसे एक ऐसा नायक घोषित कर दिया जिसे कविताओं में रूचि थी और जो संगीत आदि में रूचि रखता था। और जो जमींदारों के खिलाफ संघर्ष की कहानियाँ सुनता हुआ बड़ा हुआ था और जिसके पिता को अंग्रेजों का विरोध करने के कारण देश निकाला दे दिया गया था।
मगर ऐसा नहीं था। मालाबार और आर्य समाज नामक पुस्तक में जिसे आर्यसमाज द्वारा प्रकाशित किया गया था, उसमें वर्णन है कि आखिर क्या हुआ था और हिन्दुओं के साथ क्या हुआ। इस पुस्तक में लेखक ने कहा भी है कि यह किसी समुदाय के खिलाफ नहीं बल्कि हिन्दुओं की पीड़ा बताने के लिए है।
इस पुस्तक में बताया गया है कि विद्रोह का आरम्भ 19 अगस्त 1921 को अर्नाड ताल्लुके तिरुरंतगाड़ी गाँव से हुआ था, जब कि पुलिस उस इलाके के मोपला लीडर अली मुसलयार को कैद करना चाहती थी। भीड़ भड़क गयी और पुलिस पर हमले तो हुए ही, साथ ही पीड़ित हिन्दुओं की गवाहियों से यह पता चलता है कि अरनाड और बलवानाड ताल्लुकों में 21 अगस्त से ही हिन्दुओं को लूटने और क़त्ल करने की शुरुआत हुई और जबरदस्ती उन्हें मुसलमान बनाने की शुरुआत हो गयी थी।
आगे लिखा है
“मंजेरी में 22 अगस्त की प्रात: को सरकारी खजाना लूटा गया और उसी शाम मंजेरी, वन्डोर, कलयपकन चेरी, पर्पनगाडी, तिरूर, अंगदी पोरं और दूसरे स्थानों पर हिन्दू घरों को मोपलों ने लूटना शुरू कर दिया और 24 अगस्त तक बड़ी तेजी से हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाने का कार्य होने लगा था। यह खुल्लम खुल्ला हुक्म हो चुका था कि अरनाड ताल्लुका को सर्वथा मुसलमान तालुक्का बना लिया जाए और इस उद्देश्य के लिए हिन्दुओं को या तो क़त्ल कर दिया जाए या फिर मोपला बना लिया जाए।
मेल्मुरी एमशम में 22 और 23 अगस्त को प्राय: सभी हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया गया। अगस्त के अंतर तक मोपलों ने सैकड़ों हिन्दू मंदिर तबाह कर दिए, मूर्तियाँ तोड़ दीं और घर जला दिए, जिन हिन्दुओं ने मुसलमान बनने से इंकार किया उन्हें मार डाला गया।
फिर पृष्ठ 32 पर लिखा है कि
बागी मोपलों ने पहले हिन्दुओं से तलवारें, बन्दूके और हथियार छीन लिए थे और फिर हिन्दू मंदिरों की तलवारें और छुरियाँ भी इकट्ठी कर लीं औ फिर कहा कि या तो मुसलमान बनो या फिर अपने प्राण दे दो। इसके बाद हिन्दू स्त्रियों का सतीत्व नष्ट किया गया और फिर उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाकर मुसलामानों के साथ विवाह किया। छोटे छोटे बच्चों को मातापिता के सामने क़त्ल कर दिया गया और स्त्रियों के पेट तक फाड़ डाले गए।”
इसी पुस्तक में पृष्ठ 48 पर है कि कालीकट ताल्लुके में हिन्दुओं की लाशों से तीन कुँए भर गए थे। लिखा है कि “जो हिन्दू मुसलमान होने से इंकार कर देते थे, उनको इस कूप पर लाया जाता था। जब मैं इस कूप के पास पहुंचा तो मैंने देखा कि कुँए में धर्म के लिए मरने वालों की लाशें मौजूद नहीं है, बल्कि खोपड़ियां हैं, पिंजर हैं और टाँगे और भुजाओं की हड्डियां हैं।”
इस पुस्तक के अतिरिक्त भीम राव आंबेडकर ने भी मोपला के दंगों की निंदा की थी। दरअसल यह दंगे नहीं थे, यह हिन्दुओं का नरसंहार था, जो छ महीनों तक चलता रहा था। हाजी एक कातिल था जिसने हिन्दुओं की हत्याएं की थीं और वह भी मजहब के नाम पर।
इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रीसर्च में समिति का मानना है कि इस विद्रोह में एक भी नारा ऐसा नहीं लगा था जो अंग्रेजों के खिलाफ हो। और ऊपर वर्णित पुस्तक में भी यह तथ्य बताया गया है कि मोपला मजहबी नारे लगाते थे।
विचारक राम माधव ने भी मोपला दंगों को तालिबानी मानसिकता का उदय बताया था और उन्होंने कहा था कि कैसे वामपंथियों ने इस पाप को धोने का कार्य किया है और उसे केवल एक किसान आन्दोलन बना कर नायक बना दिया है, और वह भी ऐसे नायक जिनपर फ़िल्में भी बनाने की घोषणा होने लगी थीं।
अब भारत सरकार द्वारा उन सभी हत्यारों के नाम स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से हटाए जाएंगे, और हिन्दुओं के साथ की गयी उनकी क्रूरता के कारनामे बाहर आएँगे और उसके साथ ही बाहर आएगी वामपंथियों की बेशर्मी, कि उन्होंने किस प्रकार हिन्दुओं के कत्लेआम को “अंग्रेजों के खिलाफ किसान विद्रोह” बता दिया।
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