माओवादियों के साथ सम्बन्ध रखने के आरोप में जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईं बाबा को अभी रिहा नहीं किया जाएगा। कल मुम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने जी एन साईं बाबा को आरोपमुक्त करते हुए रिहा करने का आदेश दिया था।
कल मुम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने यह आदेश दिया था कि जीएन साईं बाबा को तत्काल रिहा कर दिया जाए! जीएन साईं बाबा पर माओवादियों के साथ सम्बन्ध रखने के आरोप थे। और उन्हें वर्ष 2014 में 9 मई को गिरफ्तार कर लिया गया था। यह भी जांच में आया था कि साईं बाबा के कंप्यूटर की जांच करने पर यह पता चला था कि उन्होंने छतीसगढ़ में काम करने के लिए जेएनयू से एक पेशेवर क्रांतिकारी के रूप में छात्र की नियुक्ति की थी। साईं बाबा पर जांच एजेंसियों ने यह भी आरोप लगाए थे कि वह वह छत्तीसगढ़ के अबुजमाड़ के जंगलों में छिपे हुए नक्सलियों और प्रोफेसर के बीच एक कूरियर के रूप में काम कर रहे थे
इसे लेकर ही उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी।
इसे लेकर ही उच्च न्यायालय में बहस चल रही थी, जिसमें यह कहा गया कि जीएन साईं बाबा और शेष पांच लोगों की सुनवाई इसलिए अवैध है क्योंकि यूएपीए अधिनियम के अंतर्गत कदम उठाने के लिए आवशयक अनुमति को नहीं लिया गया था। इसी आधार पर जीएन साईं बाबा और शेष पांच लोगों को बरी कर दिया गया था। इस पर आनन फानन में महाराष्ट्र सरकार उच्चतम न्यायालय पहुँची थी।
परन्तु जैसे ही जीएन साईं बाबा को रिहा करने का आदेश आया था, वैसे ही सोशल मीडिया पर उन सभी लोगों की हर्षित प्रतिक्रिया आने लगी जो स्वयं ही भारत सरकार के विरुद्ध खड़े रहते हैं। इतना ही सबसे मजेदार बात तो यह है कि कांग्रेस के जयराम रमेश ने भी ट्वीट किया कि व्हील चेयर पर बैठे जीएन साईं बाबा को पांच साल बाद रिहा किया जाना इस बात की पुष्टि है कि प्रधानमंत्री की ब्रिगेड द्वारा बनाय गया “शहरी नक्सलियों” का टैग एकदम बेकार है!
जबकि सत्य तो यह है कि जयराम रमेश शायद यह भूल रहे हैं कि जीएनसाईं बाबा को हिरासत में लिए जाने की प्रक्रिया उन्हीं की सरकार में आरम्भ हुई थी। अभिजीत मजुमदार ने भी इसी बात पर चुटकी लेते हुए कहा कि जीएन साईं बाबा के घर की तलाशी शुरू हुई थी 9 सितम्बर 2013 को, उस समय गृह मंत्री थे सुशील शिंदे, प्रधानमंत्री थे डॉ मनमोहन सिंह और जिस दिन अर्थात 9 मई 2014 को उन्हें हिरासत में लिया गया था, उस समय भी गृह मंत्री थे सुशील शिंदे, प्रधानमंत्री थे डॉ मनमोहन सिंह।
जीएन साईं बाबा की रिहाई की बात सुनकर प्रशांत भूषण की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। उन्होंने भी ट्वीट करते हुए लिखा कि
यह शानदार समाचार है! जीएन साईं बाबा को हर आरोप से मुक्त कर दिया गया है। और उन्हें जल्दी रिहा किया जाएगा, उन्हें उनकी खराब सेहत के कारण भी जेल में रखा गया!
इस बहाने लोगों ने यह भी कहना आरम्भ कर दिया कि जीएन साईं बाबा की कहानी यह बताती है कि कैसे भारतीय राज्य हर उस व्यक्ति को चुप करना पसंद करता है, जो मानवाधिकार उल्लंघन का विरोध करते हैं,। हालांकि इस समय कांग्रेस सरकार ने कदम उठाए थे।
हालांकि रिहाई पर जश्न मनाने वाले लोग ऐसे थे जिन्होनें न्यायालय की टिप्पणी नहीं पढ़ी थी, वह उन्हें निर्दोष बता रहे थे, जबकि न्यायालय ने कहा था कि यूएपीए के अंतर्गत कुछ आवश्यक अनुमति नहीं ली गयी थी।
इन्हीं आपत्तियों को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि जीएन साईं बाबा पर लगे आरोप अत्यंत गंभीर हैं और किसी भी स्थिति में जीएन साईं बाबा को छोड़ा नहीं जा सकता है।
यहाँ तक कि उन्हें घर पर नजरबंद होने की अनुमति भी नहीं दी गयी। उच्चतम न्यायालय में भारत के सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “अर्बन नक्सल से हाउस अरेस्ट का यह अनुरोध नक्सलियों की ओर से बार-बार आ रहा है, इन दिनों आप घर के भीतर अपराधों की योजना बना सकते हैं। ये सभी अपराध तब भी किए जा सकते हैं, जब वे एक फोन के साथ हाउस अरेस्ट में हों।”
जीएन साईं बाबा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बसंत ने दलील रखते हुए कहा था कि
““वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। वह पैराप्लेजिक के कारण 90% तक अक्षम हैं। उन्हें कई अन्य बीमारियां हैं, जिन्हें न्यायिक रूप से स्वीकार किया जाता है। वह अपनी व्हील चेयर तक ही सीमित हैं। उनके लिए कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उनकी भागीदारी दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है।”
परन्तु इस पर तुषार मेहता ने कहा कि
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि साईंबाबा “दिमाग” है और अन्य आरोपी पैदल सैनिक हैं। एसजी ने कहा, “तथ्य बहुत परेशान करने वाले हैं।।। जम्मू-कश्मीर में हथियारों के आह्वान का समर्थन, संसद को उखाड़ फेंकने का समर्थन, नक्सलियों के साथ बैठक की व्यवस्था करना, हमारे सुरक्षा बलों पर हमला करना आदि।”
इस पर पीठ ने जो कहा है, वह अधिक महत्वपूर्ण है। पीठ ने कहा कि “जहां तक आतंकवादी या माओवादी गतिविधियों का संबंध है, मस्तिष्क अधिक खतरनाक है। प्रत्यक्ष भागीदारी आवश्यक नहीं है।”
पीठ ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को इस आधार पर निलम्बित किया कि आरोपियों को केवल इस आधार पर ही आरोप मुक्त कर दिया था कि उचित अनुमति नहीं ली गयी थी। अत: रिकॉर्ड पर सबूतों के आधार पर ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद क्या अपीलीय अदालत अभियुक्तों को मंजूरी के आधार पर आरोपमुक्त कर सकती है, इस पर विस्तृत विचार करने की आवश्यकता है।
जीएन साईं बाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। यह सोचकर ही दुःख एवं क्षोभ से भरा जा सकता है कि एक आम हिन्दू के बच्चे को उच्च शिक्षा के नाम पर कैसे कैसे लोग पढ़ाते हैं, जिन्हें उच्चतम न्यायालय घर में नजरबन्द तक करने की अनुमति देने से इंकार कर देता है! शिक्षा कब देश विरोधी बन गयी, कब वह हिन्दुओं का विरोध करने तक सीमित हो गयी, यह भी एक शोध का विषय है!