ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि ही वह तिथि थी, जब गंगा माता ने इस धरती पर कदम रखा। वैशाख शुक्ल सप्तमी को ब्रह्मा जी के कमंडल से उत्पन्न हुईं थी गंगा और शिव जी की जटाओं में समा गई थीं। महाराज भागीरथ अब अपने लक्ष्य के एकदम निकट पहुंच गए थे। उनके पुरखों की अस्थियाँ तर्पण हेतु प्रतीक्षारत थीं। वर्षों की प्रतीक्षा अब फलीभूत होने वाली थी।
भागीरथ पुन: तपस्यारत हो गए और फिर शिव जी की जटाओं से निकल कर बह निकलीं गंगा जी! गंगा जी जिनकी प्रतीक्षा में, यह धरा न जाने कब से राह ताक रही थी। पृथ्वी प्यासी थीं, पृथ्वी की प्यास बुझाने के लिए, लोक कल्याण हेतु गंगा जी पधारीं।
बालकाण्ड में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि राजर्षि भागीरथ एक सुन्दर रथ में बैठे हुए, आगे आगे चले जाते थे और उनके पीछे पीछे गंगा जी चली जाती थीं। आकाश से श्री महादेव जी के मस्तक और फिर उनके मस्तक से वह धरती तक आई थीं।
वह लिखते हैं कि
व्यसर्पत जलं तत्र तीव्रशब्दपुरस्कृतम
मत्स्यकच्छपसंशैश्व शिशुकुमारगणेस्तथा
पतद्धि: पतितैश्चान्यैवर्यरोचत वसुंधरा
ततो देवर्षिगन्धर्वा यक्षा: सिद्धगणास्तथा (बालकाण्ड 43/17-18)
अर्थात जैसे ही गंगा नीचे पृथ्वी पर आईं, वैसे ही एक बड़ा शब्द हुआ और मछलियाँ, कछुए, आदि जलजन्तुओं के झुण्ड के झुण्ड गंगाजी की धरा के साथ गिरते पड़ते चले जाते थे। जिधर गंगा जी जातें उधर की भूमि सुशोभित हो जाती थी। आकाश से पृथ्वी पर आई गंगा जी को देखने के लिए देवता लोग अपने परिपल्व नामक विमानों पर बैठे हुए है।
पापनाशिनी गंगा जहां जहां से गुजरतीं वहां से मनुष्य स्नान करके पाप से मुक्त हो जाते थे। भागीरथ के साथ जब गंगाजी समुद्र तट पर पहुंचे, और फिर वहां गए जहाँ पर महाराजा सगर के पुत्रों को भस्म किया गया था। और वहां पर ब्रह्मा जी ने भागीरथ से कहा कि चूंकि वह गंगा को धरा पर लाए हैं, इसलिए गंगा को उनकी पुत्री के रूप में माना जाएगा। उन्होंने कहा कि आज से गंगा के तीन नाम होंगे। श्री गंगा, त्रिपथगा और भागीरथी।
गंगा जी को तीन पथों पर चलने के कारण त्रिपथगा कहते हैं।
प्रभु श्री राम महर्षि विश्वामित्र के मुख से अपने पूर्वजों की यह अद्भुत वीर कथा सुनकर रोमांचित हो रहे हैं, एवं बार बार अपने पूर्वजों को एवं गंगा जी को प्रणाम कर रहे हैं। तब से गंगा बह रही हैं, मनुष्यों के पापों को धो रही हैं। सच्चे मन से जो भी व्यक्ति गंगा जी में स्नान करता है वह पाप से रहित हो जाता है। गंगा मुक्ति का द्वार है, जब वह नीचे उतरती हैं, तो जैसे आश्वासन देती हुई आगे बढ़ती हैं, जिसमें जीवन का आश्वासन है, जिसमें आरोग्य का आश्वासन है, समृद्धि का आश्वासन है, एवं आश्वासन है सत्यता का। उस सत्यता का जिस सत्य को वामपंथी बार बार झूठ कहकर नकारते हैं।
धरा पर अवतरण पर जो मार्ग वह लेती हैं, वह रामायण की सत्यता को स्थापित करता है। जो भी पंथ बार बार रामायण को असत्य कहते हैं, वह गंगा के मार्ग को आज तक झुठला नहीं पाए हैं। अत: गंगा जी की यह कथा रामायण की सत्यता को बार बार प्रमाणित करती है!
गंगा अवतरण: परिवार की कथा
गंगा जी के अवतरण की कथा परिवार के प्रति त्याग की कथा है जो आरम्भ होती है राजा सगर के साथ! राजा सगर, उनके पौत्र अंशुमान एवं अंशुमान के पुत्र राजा दिलीप अपने मृत परिजनों के तर्पण के लिए गंगा नहीं ला पाते हैं।
परन्तु पीढ़ियों के स्वप्न और उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ आगे आते हैं। जैसे उनकी प्रतीक्षा ही की जा रही थी।
गंगा अवतरण की कहानी हमें यह बताती है कि परिवार में कर्तव्यों का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम आते हैं, कुछ करने के लिए, हम आते हैं कुछ दायित्वों को पूर्ण करने के लिए, हमारे दायित्व परिवार और समाज एवं प्रकृति सभी के प्रति होते हैं। स्वार्थ नहीं परमार्थ की कहानी है गंगा दशहरा की कहानी।
आज के दिन, जो भी माँ गंगा का स्मरण करता है, माँ गंगा के तट पर स्नान करता है, उसे पुण्य प्राप्त होता है। हालांकि पश्चिम पोषित वामपंथ के कई आक्रमण आस्था पर हो रहे हैं, परन्तु अभी तक आस्था बनी हुई है एवं हर वर्ष गंगा दशहरा यह स्मरण कराता रहेगा कि कैसे परिवार में एक के बाद एक पीढ़ियाँ दायित्व पूर्ण करने के लिए सर्वस्व समर्पित करती हैं!
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