इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं होती है बल्कि कुछ उत्तरदायित्व के साथ आती है, तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी दूसरे की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आधार नहीं है।
हिन्दू पोस्ट ने भी कल यह बात अपने एक लेख में कही थी कि अपने धर्म के प्रचार के लिए दूसरे धर्म को नीचा दिखाना कहीं से भी संगत नहीं है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भगवान राम और कृष्ण के प्रति अपमानजनक टिप्पणी के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि प्रभु श्री राम के बिना भारत अधूरा है और जिस देश में हम रहते हैं उस देश के महापुरुषों और उस देश की संस्कृति का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है।
न्यायालय ने यहाँ तक टिप्पणी की कि रामायण और महाभारत का अपमान पूरे भारत का अपमान है क्योंकि महात्मा गांधी भी प्रभु श्री राम को मानते थे और भारत के संविधान पर भी प्रभु श्री राम का चित्र बना हुआ है। और एक बात जो माननीय न्यायालय ने कही, उस पर ध्यान देना आवश्यक है, उन्होंने कहा कि नास्तिक होने का अर्थ यह नहीं है कि उसे किसी की धार्मिक आस्था का अपमान करने का अधिकार मिल गया हो।
याची के अनुसार उसकी किसी ने फर्जी आईडी बना दी थी, और वह निर्दोष है और साथ ही उसने यह भी तर्क दिया था कि इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और लिखना अपराध नहीं माना जा सकता है।
इस पर माननीय न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सत्य है कि संविधान में मूल अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, और संविधान प्रवृति से बहुत उदार है, परन्तु यह भी सत्य है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और आपको किसी की भी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है ।
न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर जो टिप्पणी की है, उसे और ध्यान से पढ़े जाने की आवश्यकता इसलिए भी अधिक है क्योंकि भारत ही नहीं पूरे विश्व में हिन्दुओं की आस्था को चोट पहुंचाना अपराध नहीं माना जाता है। कम से कम नैतिक अपराधबोध तो सहज नहीं उत्पन्न हो पाता है तभी कोई न कोई ब्रांड अपने उत्पादों के बहाने हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करने लगता है।
न ही यह सिलसिला नया है और न ही यह सहज रुकने वाला है, क्योंकि अब तो और भी मोर्चे खुल गए हैं और ईसाई मिशनरी एवं मुस्लिम मौलवी अपने अपने मत का प्रचार करने के लिए हिन्दू धर्म की ही बुराई करते हैं, कभी किसी प्रकार से तो कभी किसी!
जबकि संविधान में भी धार्मिक भावनाओं का अपमान करने पर दंड का प्रावधान है, फिर भी प्रभु श्री राम और कृष्ण एवं देवी माँ का अपमान करना सभी को बहुत सहज लगता है। ऐसा क्यों है? ऐसा क्यों है कि प्रभु श्री राम को गाली देना प्रगतिशीलता का पर्याय बनता जा रहा है और ऐसा करने के बाद उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दे दिया जाता है?
तांडव वेब सीरीज में महादेव का अपमान था, और तब भी न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं होती है।
आप एक समाज के प्रति उत्तरदायी होते हैं, और अपनी कथित व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए किसी भी प्रकार से किसी भी समुदाय की धार्मिक आस्था को कैसे चोटिल कर सकते हैं? हिन्दू देवी देवताओं का आपत्तिजनक चित्रण करने वाले एम एफ हुसैन ने भी कला के नाम पर हिन्दू धर्म का अपमान किया था। और इसे यह कहते हुए सही ठहराया था कि हिन्दू धर्म में अजंता के मंदिरों में जबाव है। उन्होंने कहा था कि महाभारत केवल साधु संतों के लिए नहीं लिखा है बल्कि उस पर पूरी दुनिया का हक़ है।
पर जब भी हिन्दू देवी देवताओं पर पूरी दुनिया के हक़ या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात आती है तो वह ऐसे लोगों के लिए हैं, जिनके दिल में हिन्दू धर्म या देवी देवताओं या प्रभु श्री राम को लेकर किसी भी प्रकार की कोई दुर्भावना नहीं हैं। वह किसी भी प्रकार से उन्हें दूषित नहीं करना चाहते, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए नहीं है जो हिन्दू धर्म में विश्वास नहीं करता है और जो आदर नहीं करता है।
जिस धर्म में आप विश्वास नहीं करते उसके गलत चित्रण का या फिर उसके विषय में अपमानजनक, तथ्य रहित कुछ भी लिखने का अधिकार कौन प्रदान कर देता है?
आईपीसी की धारा 29ए में बताया गया है कि कौन से कृत्य धार्मिक भावनाओं के आधार पर अपराध होते हैं?
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295A के अंतर्गत वह कृत्य अपराध माने जाते हैं जहाँ कोई आरोपी व्यक्ति, भारत के नागरिकों के किसी वर्ग (class of citizens) की धार्मिक भावनाओं (Religious Feelings) को आहत (outrage) करने के विमर्शित (deliberate) और विद्वेषपूर्ण आशय (malicious intention) से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या ऐसा करने का प्रयत्न करता है।