अभिव्यक्ति की आजादी कहने वाले लोग किस हद तक हिन्दू धर्म से घृणा करते हैं, वह हमने पिछले कुछ दिनों में देखा है। हमने देखा कि कैसे शिवलिंग के प्रकट होते ही लोग मजाक उड़ाने लग गए थे और न अपनी मजहबी आस्थाओं पर कुछ न सुनने वाले लोग महादेव का अपमान करने के लिए तत्पर हो गए थे।
zeehindustan पर ऐसा ही एक भड़काऊ बयान आया है कि अगर मुस्लिमों को यह पता होता कि वहां पर शिवलिंग है तो वह उसे वहां से हटा देते या नष्ट कर देते।
क्या था मामला?
दरअसल zee Hindustan ने 29 मई को स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसमें ज्ञानवापी में जो फुव्वारे और शिवलिंग को लेकर जो दुविधा थी उस पर मुस्लिम पक्ष के कुछ लोगों से प्रश्न किये गए थे। जिनमें से अधिकतर लोगों का यही कहना था कि वहां पर शिवलिंग है।
इस स्टिंग में स्थानीय मुस्लिमों ने कहा था कि वहां पर कोई फुव्वारा नहीं है, बल्कि शिवलिंग है। साथ ही एक मौलवी ने भी कहा कि यहाँ पर शिवलिंग ही है।
नदीम नामक स्थानीय युवक भी इस स्टिंग में कहता दिखाई दे रहा है कि वहां पर शिवलिंग ही है। नदीम ने कहा कि काशी तो बाबा की ही नगरी है। नदीम ने यह भी बताया कि वहां पर मंदिर था, और मंदिर ही होना चाहिए। वहीं सरफराज अहमद ने भी कहा कि वहां पर पहले मंदिर ही था, अब किसने तोडा, किसने बनाया, यह नहीं पता क्योकि इसके बारे में कोई प्रमाण नहीं है क्योंकि कागज सारे अंग्रेज लेकर चले गए। और उनका मकसद था हिन्दुस्तान में बवाल करना।
और इन्हीं सरफराज अहमद से जब स्टिंग के बाद प्रश्न किये गए तो उन्होंने कहा कि “मैंने पहले ही ऑफ द रिकॉर्ड यह कहा है और मैं दोबारा यह कह रहा हूँ कि अगर हमें जरा भी पता होता कि वहां पर शिवलिंग है तो हम उसे तोड़ देते और वहां से हटा देते!”
और सबसे अधिक हैरान करने वाली बात यह है कि हिन्दुओं के आराध्य के विषय में इतनी बड़ी बात बोलते हुए भी उसके चेहरे पर अफ़सोस का कोई संकेत नहीं था, और न ही यह डर था कि वह बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को किस प्रकार आहत कर रहा है।
दरअसल यही कथित गंगा जमुना तहजीब या भाईचारे की तहजीब है, जिसमें हिन्दुओं को आप कुछ भी कह सकते हैं, उनकी आस्था का कोई भी मोल नहीं है। परन्तु जो हिन्दुओं की आस्था पर निरंतर प्रहार करते हैं, उनकी आस्था का बहुत मोल है, वह एडिटेड वीडियो से भी इतना आहत हो जाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता के एडिटेड वीडियो के खिलाफ मौत के फतवे जारी कर देते हैं।
वह इतने आहत हो जाते हैं कि वह नुपुर शर्मा के सिर पर इनाम रखते हैं।
हैदराबाद से असउद्दीन ओवैसी भी उसी प्रकार नुपुर शर्मा के खिलाफ भड़काऊ बयान दे रहे हैं, जैसे कमलेश तिवारी के लिए किया करते थे। आनंद रंगनाथन ने भी इसी बात को ट्वीट करते हुए कहा कि असउद्दीन ओवैसी एकदम वही कर रहे हैं, जैसा कमलेश तिवारी के समय किया था!
हालांकि यह भी बहुत हैरानी की बात है कि अभी तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चैम्पियन कहे जाने वाले किसी भी व्यक्ति ने नुपुर शर्मा को लगातार मिल रही धमकियों की निंदा नहीं की है। यदि नुपुर शर्मा ने कुछ गलत कहा है तो इसका निपटारा देश के न्यायालय में होना चाहिए, परन्तु एक वक्तव्य से आहत होने वाली आस्था कभी भी सरफराज अहमद जैसों को यह नसीहत नहीं देती है कि वह कम से कम न्यायालय का निर्देश आने तक तो रुकें!
इस देश में सरफराज अहमद को यह आजादी है कि वह टीवी चैनलों पर यह कह सके कि यदि मुस्लिम पक्ष को यह पता होता कि वहां पर शिवलिंग है तो वह उसे तुड़वाकर फिकवा देते, परन्तु नुपुर शर्मा के खिलाफ सिर काटने के फतवों पर चर्चा हो रही है:
क्या इस देश में हिन्दुओं की स्थिति वास्तव में दोयम दर्जे की है, जहां पर नए वीडियो में यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि वजू खाने में शिवलिंग ही दिख रहा है। सर्वे वीडियो बहुत ही चौंकाने वाले आए हैं और वह इस बात को स्पष्ट करते हैं कि कहीं न कहीं मुस्लिम पक्ष झूठ बोल रहा है। शिवलिंग दिख रहे हैं और फुव्वारा उन्हें कहा जा रहा है, परन्तु हिन्दू आस्था के इतने बड़े अपमान पर और वह भी इतने वर्षों के अपमान पर कोई भी सजा नहीं है, जबकि नुपुर शर्मा का सिर काटने के फतवे जारी हो रहे हैं।
आरफा खानम शेरवानी जैसी औरतें हैं, वह खुले आम हमारे आराध्यो का अपमान कर सकती हैं, और वह भी आज नहीं न जाने कब से! वर्ष 2016 का यह ट्वीट अभी फिर से चर्चा में है:
राना अयूब और देवदत्त पटनायक जैसे लोग प्रभु श्री राम का अपमान कर सकते हैं:
परन्तु यही राना अयूब और आरफा खानम नुपुर शर्मा को लेकर आक्रामक हैं
प्रश्न यहाँ पर यह नहीं है कि नुपुर शर्मा ने सही कहा या गलत? यदि कुछ गलत कहा है तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए, परन्तु जो लोग नुपुर शर्मा पर आँखे तरेर रहे है, वह खुद हिन्दू आस्थाओं को कितना और किस हद तक अपमानित कर चुके हैं, क्या उन्हें इसका अहसास भी है? क्या भारत में दो प्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है जिसमें सरफराज अहमद, आरफा खानम शेरवानी, राना अयूब आदि के लिए नियम अलग हैं, और उन्हें यह पूरी आजादी है कि वह हिन्दुओं के आराध्यों का जमकर अपमान कर सकतें और नुपुर शर्मा को बिना अपनी बात कहे बिना सिर काटने के फतवे जारी किए जाते रहें?
प्रश्न इस दोगलेपन और दोहरेपन पर है! और प्रश्न यह भी है कि क्या वास्तव में हिन्दुओं के पास कुछ अधिकार हैं भी?