हर बात में इस्लामोफोबिया की बात करने वाले लोग इस बार फिर से एक बार नए कुतर्क के साथ आए हैं। फुटबाल विश्वकप में मोरक्को की टीम ने बड़ा उलटफेर करते हुए पुर्तगाल को हरा दिया है और सेमीफाइनल में प्रवेश कर लिया है। किसी भी देश के किसी भी स्पर्धा में पहुँचने पर हर्ष की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होनी चाहिए, परन्तु मोरक्को के सेमीफाइनल में प्रवेश को लेकर एक अजीब ही कुतर्क आरम्भ हो गया है।
मोरक्को की जीत को “इस्लाम” की जीत बताकर प्रस्तुत किया जाने लगा है और साथ ही फ्रांस में मोरक्को के शरणार्थियों ने दंगे करने आरम्भ कर दिए हैं। पूरे विश्व में इस्लामी कट्टरपंथ फैलाने वाले लोगों ने ट्विटर पर ही उन्माद फैलाना आरम्भ कर दिया है। मोरक्को एक इस्लामी देश है, जहाँ पर 98% जनसँख्या मुस्लिम है और यही कारण है कि मोरक्को की जीत को इस्लाम की जीत बताना आरम्भ कर दिया है।
खालेद के अलावा पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी मोरक्को की जीत को इस्लाम की जीत बताकर गदगद हैं। इमरान खान ने मोरक्को की टीम की पहचान को अरब जगत से जोड़कर ट्वीट किया कि यह पहली बार हो रहा है कि एक अरब, अफ्रीकी और मुस्लिम टीम फीफा विश्व कप के सेमीफाइनल में पहुँची है।
मोरक्को की जीत को फिलिस्तीन की जीत बता दिया गया। और यह कहा गया कि इसने मुस्लिमों को गर्व से भर दिया
मोरक्को ने स्पेन के खिलाफ जीत का जश्न फिलिस्तीनी झंडे के साथ मनाया
मोरक्को की जीत को पूरी तरह से इस्लामी जीत के रूप में परिवर्तित कर दिया है।
इस बात को लेकर मुस्लिम जगत को स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि कैसे वह खेलों को मजहबी प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बना रहे हैं। चूंकि फ्रांस का दृष्टिकोण इस्लामी कुरीतियों को लेकर थोडा कड़ा रहा है, तो अब फ्रांस के साथ मोरक्को के मैच को इस्लाम बनाम फ़्रांस किया जा रहा है। इसे कहा जा रहा है कि यह व्यक्तिगत है।
और ट्विटर पर तो फ्रांस को लेकर एक लड़ाई आरम्भ हो ही चुकी है, वहीं जमीन पर भी फ्रांस में दंगे भड़क गए हैं। मोरक्को से आए शरणार्थियों ने अपने देश की जीत का जश्न मनाते हुए पेरिस में दंगे शुरू कर दिए। उन्होंने पुलिस ट्रक्स पर आग के गोले दागे!
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस देश से वह आए हैं, कथित रूप से शोषण आदि के बहाने दूसरे देश में शरण लेने के लिए, वह उस देश को जला रहे हैं, जिसने उन्हें शरण दी! एक्टिविस्ट एवं स्वतंत्र पत्रकार एमी मेक ने प्रश्न भी किया कि आखिर पश्चिम कब जागेगा?
जरा सोचिये कि जब यह सब हो रहा होगा तो वह उस देश के नागरिक कैसा अनुभव कर रहे होंगे, जिन्होनें शरण दी थी। उन्होंने सड़कें घेर लीं और पुलिस पर हमले शुरू कर दिए
एमी मेक ने एक और वीडियो साझा करते हुए कहा कि फ्रांस में न जाने कितने मोरक्को से आए शरणार्थियों ने सड़कों पर अपनी टीम की जीत का जश्न मनाया और न जाने कितनी कारें जलाई गईं, स्टोर लुटे गए या फिर पुलिस पर हमला हुआ
हालांकि शशांक शेखर झा ने जो ट्वीट किया था उसके उत्तर में एक यूजर ने वह तस्वीर ट्वीट की, जिसमें शरणार्थियों का स्वागत करते दिखाया जा रहा था
भारत ने इस्लामिक आतंकवाद का जो विष इतने वर्षों तक सहा है और जिसे यूरोप ने ही इस्लामोफोबिया के नाम पर फैलाया है और यूरोप ने ही उसे खादपानी दिया है, वह विष अब यूरोप में जाकर यूरोप को ही प्रभावित कर रहा है। और इतना ही नहीं अब यूरोप के हर देश को अपनी जिद्द पर चलाना चाहते हैं। यदि फ्रांस हिजाब को प्रतिबंधित करता है तो, वह भी उन्हें मंजूर नहीं है, जबकि इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यकों को जिंदा रहने तक का अधिकार कठिनाई से ही मिल पाता है।
पाकिस्तान में आए दिन हिन्दू लड़कियों के अपहरण होते हैं, आए दिन जबरन धर्मांतरण होते हैं, मगर तब यह आवाज किसी की नहीं आती कि अमुक इस्लामिक देश अपने देश के अल्पसंख्यकों का ध्यान रखें।
खालेद बेयदौं ने ट्वीट किया कि
प्रिय फ्रांस चलो एक शर्त लगाते हैं। अगर मोरक्को तुम्हें विश्वकप के सेमी फाइनल में हरा देता है तो तुम्हें हिजाब पर से प्रतिबन्ध हटाना होगा और हर इस्लामोफोबिया को हटाना होगा।
मोरक्को की जीत को केवल और केवल उम्मा की जीत ही बताकर लोग जश्न मना रहे हैं।
पकिस्तान से भी लोग उम्मा की जीत का जश्न मना रहे हैं, जबकि देखा जाए तो पाकिस्तान के लिए खुश होने वाली कोई बात नहीं है, फिर भी पाकिस्तान से लेकर शेष मुस्लिम देश इस बात का जश्न मना रहे हैं कि एक मुस्लिम देश विश्व कप में सेमीफाइनल में प्रवेश कर चुका है।
जब भारत को पाकिस्तान क्रिकेट टीम ने मैच में पराजित किया था तो भी पाठकों को स्मरण होगा कि कैसे इसे पाकिस्तान द्वारा इस्लाम की जीत बताया गया था और मैदान में नमाज पढने को ग्लोरिफाई किया जाने लगा था।
मजहब के प्रति पहले लॉबी द्वारा उन्माद तैयार किया जाता है और जब इसका विरोध होता है तो उसे इस्लामोफोबिया कहकर शोर मचाया जाता है और उस शोर में तमाम वह दंगे और अपराध गुम हो जाते हैं, जो उन्मादियों का एक बड़ा वर्ग अपने देश में अल्पसंख्यकों एवं खुद को शरण देने वाले देशों के साथ करता है।