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Friday, April 19, 2024

भारत में वाम एवं इस्लामी फेमिनिस्ट हैं फ़िदा “बुर्का गर्ल मुस्कान” पर, और ईरान की उन लड़कियों के लिए सूख गयी है स्याही जो लड़ रही हैं कट्टर इस्लामिस्ट से एक आजाद हवा के लिए

भारत में फेमिनिस्ट कही जाने वाली लेखिकाएं “यूनिवर्सल सिस्टरहुड माने वैश्विक बहनापे” की बात अक्सर करती हुई पाई जाती हैं। यह वैश्विक बहनापा क्या है, इन्हें शायद पता भी नहीं होगा, या फिर इनका अपना एजेंडा ही वैश्विक बहनापा है। इनका विश्विक बहनापा मात्र वहां तक रहता है, जहां तक इनका हिन्दू समाज तोड़ो का एजेंडा रहता है या फिर इस्लाम की तारीफ़ करने वाला एजेंडा रहता है।

इनका वैश्विक बहनापा हर उस मुस्लिम औरत के लिए होता है, जिसे उसके कट्टरपंथी या अलग मजहबी पहचान वाले मजहबी हकों का पालन करने से रोका जाता है, जैसे फ्रांस द्वारा बुर्का पर प्रतिबन्ध से, बुर्किनी पर प्रतिबन्ध से या फिर भारत में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब को पहनने की जिद्द करना! भारत की वाम और इस्लामी फेमिनिस्ट हिन्दुओं के विरुद्ध विष घोलती हुई सड़कों पर उतर आती हैं और जहाँ हो सकता है वहां तक मुस्लिम महिलाओं के हर कथित उत्पीडन के लिए हिन्दू पुरुषों को ही दोषी ठहराने का या फिर हिन्दू धर्म को दोषी ठहराने का कुप्रयास करती हैं।

यही कारण है कि वह भारत में काली माँ का अपमान करने को फेमिनिज्म ठहराती हैं कि काली पर किसी का अधिकार नहीं, वह माँ, बहन आदि शब्दों को शोषक मानती हैं और हिजाब उनके लिए पहचान का प्रतीक है। मजहबी पहचान का। भारत का वाम और इस्लामी फेमिनिज्म मात्र कट्टरपंथी इस्लाम के हाथों की पुतली है, यह इस बात से पता चलता है कि कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के इशारा भर करने से फेमिनिस्ट बुर्का गर्ल “मुस्कान” के समर्थन में उतर आई थीं, तो वहीं वह ईरान में चल रहे इतने बड़े आन्दोलन पर मुंह भी नहीं खोलती हैं, जो वास्तव में मुस्लिम औरतों के अधिकारों की बात करता है।

ईरान में 12 जुलाई 2022 को एक बार फिर से हिजाब का विरोध किया गया। एक बार फिर से वहां पर महिलाऐं सड़कों पर उतरीं, एक बार फिर से अनिवार्य हिजाब का विरोध वहां की महिलाओं ने किया। यह वह महिलाऐं हैं, जो बताती हैं कि यह होता है फेमिनिज्म! यह होता है आजादी के लिए लड़ना, न कि हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य भाग बताकर हर मुस्लिम लड़की को उसके पीछे ढक देना।

हिजाब को लेकर विरोध करने वाली मासिह अलिनेजाद ने वीडियो साझा किया कि जैसा हमने वादा किया था! हमने हिजाब हटाया और हमें आशा है कि हर कोई हमारे साथ आएगा। महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य करना ईरानी संस्कृति नहीं है, यह तालिबान, आईएसआईएस और इस्लामिक रिपब्लिक की तहजीब है। बहुत हुआ अब!

एक लड़की ने लिखा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार का समर्थन करने वाले मुझे वैश्या कहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोरल पुलिस मुझे हिरासत में लेती है और परेशान करती है, मैं अपनी आजादी और मूल अधिकार चाहती हूँ और इसके लिए लडूंगी

और लडकियां आईं जिन्होनें पुलिस की परवाह किये बिना वहां पर बिना हिजाब के विद्रोह किया, जहां पर सरकार द्वारा हिजाब के समर्थन में रैली का आयोजन किया गया था

लड़कियों ने वीडियो साझा किया जिसमें मोरल पुलिस उन लड़कियों को जेल में डाल रही है, बिना हिजाब वाली लड़कियों को लोग घेर रहे हैं,

एक लड़की ने अपने हिजाब को आग लगाती हुई तस्वीर साझा की

परन्तु वैश्विक बहनापे का राग अलापती हिन्दी जगत की फेमिनिस्ट आजादी का स्वर उठाती इन सभी महिलाओं के दर्द से कोई मतलब नहीं रखती हैं। उनके लिए मात्र वही औरतें संघर्षरत हैं, जो कट्टरपंथ को बढ़ावा देती हैं, जो वैश्विक कट्टरपंथ के समर्थन में हैं, और बार बार बुर्के और हिजाब का समर्थन करती हैं।

वैसे तो वह मंदिर नहीं जाती हैं, क्योंकि मंदिर जाने से उनके वाम और इस्लाम आलोचक उनकी कहानियों पर सकारात्मक टिप्पणी नहीं करते हैं, परन्तु मंदिरों में पीरियड्स में भी लडकियां जाएं इसके लिए अभियान चलाती हैं, मंदिर में लड़कियों केलिए कोई शालीन ड्रेस कोड जैसी कोई चीज न हो, इसके लिए अभियान चलाती हैं, परन्तु जब भी किसी मजार या गुरुद्वारे आदि जाती हैं तो उनका सिर खाली नहीं होता, यहाँ तक कि जब भी वह किसी मुस्लिम देश में जाती हैं तो वह वहां पर मस्जिद आदि में जाने के लिए पूरे काले बुर्के में समा जाती हैं।

परन्तु इन्हें साबरी माला में प्रवेश का अधिकार चाहिए, उन्हें मुस्कान को नायिका घोषित करना है, उनके लिए हिजाब के बहाने कैद होने वाली लड़की नायिका है और खुली उड़ान उड़ने वाली लड़की उपेक्षा के लायक है।

वह नहीं बोलती हैं कुछ भी नहीं बोलती हैं,

वहीं ईरान में भी इस सविनय अवज्ञा के विरोध में आईआरजीसी ने हिजाब और पवित्रता का आयोजन किया

और 12 जुलाई को आधिकारिक रूप से हिजाब और पवित्रता दिवस घोषित कर दिया है:

जब भारत में हिजाब को लेकर हिन्दुओं पर हमले और देश में अराजकता का वातावरण उत्पन्न कर रखा था, उस समय पाकिस्तान की ओर से भी यह प्रस्ताव आया था कि 8 मार्च को हिजाब दिवस घोषित कर दिया जाए!

परन्तु हिन्दुओं के पर्वों में पवित्रता का मजाक उड़ाने वाली यह फेमिनिस्ट इस वैश्विक अन्याय पर चुप रहती हैं!

यह लोग करवाचौथ का उपहास उड़ाती हैं, माँ और बहन जैसे पवित्र शब्दों का उपहास उड़ाती हैं, भाई बहन के पावन पर्व रक्षाबंधन को शोषण की बात बताती हैं,

मगर जब वास्तव में शोषण का विरोध करने की बात आती है तो बुर्के और हिजाब की आड़ लेकर बैठ जाती हैं, जैसे अभी बैठी हुई हैं! तभी भारत में कुछ लोग वाम और इस्लामी फेमिनिस्ट समुदाय को कट्टरता का समर्थक कहते हैं, कई मुद्दों पर इनकी चुप्पी से यह संदेह जागता है कि कहीं यह वास्तव में तो इस्लाम में उदारवादी स्वरों के विरोध में नहीं हैं?

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