हिंदी पट्टी की फेमिनिस्ट का दिमाग इन दिनों केवल अंत: वस्त्रों पर आकर टिक गया है। और अब यह समस्या धीरे धीरे बढ़ती जा रही है। इन अटेंशन सीकर फेमिनिस्ट को केवल और केवल अटेंशन की चाह होती है, परन्तु समस्या यह है कि इनके द्वारा ईजाद की गयी आजादी की परिभाषा में हमारी लडकियां फंस जाती हैं। जब वह यह नहीं देख पातीं कि सनातन में स्त्री स्वतंत्रता कितनी थी और स्त्री के सौन्दर्य एवं ज्ञान को कभी वस्त्रों में बांधकर नहीं रखा गया।
आज जब हिंदी पट्टी की फेमिनिस्ट वस्त्र उतारने की आज़ादी, ब्रा पहनने की आज़ादी और फिर ब्रा फेंकने की आज़ादी की बात करती हैं, तो वह अक्क महादेवी और सुलभा सन्यासिनी और लल्लेश्वरी देवी के विषय में भूल जाती हैं। चलिए यह तो सन्यासिनी थीं। वह कहेंगी कि क्या भोग का अधिकार स्त्रियों को नहीं था, तो इन अंत: वस्त्र फेमिनिस्ट क्रांतिकारियों को यह नहीं पता है कि काम भाव को हमारे यहाँ इतनी प्रधानता दी गयी है कि धर्म, अर्थ, काम के बिना मोक्ष तो प्राप्त हो ही नहीं सकता है।
ऋग्वेद में और महाभारत के वनपर्व में महर्षि अगस्त्य और उनकी पत्नी लोपामुद्रा की कथा आती है। इस कथा का सार है कि राजकुमारी लोपामुद्रा से अगस्त्य मुनि ने विवाह कर लिया था। परन्तु जब अगस्त्य मुनि ने समागम की इच्छा व्यक्त की तो लोपामुद्रा ने स्पष्ट कहा कि मेरी यौनेच्छा पूर्ण करने के लिए आपको वही सुख सुविधाएँ, वही आभूषण मुझे प्रदान करने होंगे, जो मैं अपने पिता के घर पहना करती थी और मैं उसी शय्या पर आपके साथ समागम करूंगी जैसी शय्या मेरे पिता के घर पर मेरी थी।
इन अंत: वस्त्र क्रांतिकारियों को यह ज्ञात नहीं है कि अपनी पत्नी से प्रेम करने वाले अगस्त्य मुनि ने अपनी पत्नी यह इच्छा पूर्ण की, एवं वह भी मांगकर नहीं, असुरों का नाश करके! अर्थात ऋषि मात्र तपस्या करने वाले ही नहीं, बल्कि बलशाली हुआ करते थे, कामेच्छा पूर्ण करने वाले!
खैर, अंत: वस्त्र फेमिनिस्ट यह कहेंगी कि वेदों में तो झूठ लिखा हो सकता है, हम महाभारत नहीं मानतीं तो, उनके लिए ओरछा की प्रवीन राय की कविता प्रस्तुत है, जिसमें केवल प्रेम है, और देह का प्रेम है। कोई दबी इच्छा नहीं है। इसमें खुलकर मिलन की रात्रि के व्यतीत होने की आशंका की है, रात्रि के बड़े होने की कामना की है।
वह लिखती हैं
कूर कुक्कुर कोटि कोठरी किवारी राखों,
चुनि वै चिरेयन को मूँदी राखौ जलियौ,
सारंग में सारंग सुनाई के प्रवीण बीना,
सारंग के सारंग की जीति करौ थलियौ
बैठी पर्यक पे निसंक हये के अंक भरो,
करौंगी अधर पान मैन मत्त मिलियो,
मोहिं मिले इन्द्रजीत धीरज नरिंदरराय,
एहों चंद आज नेकु मंद गति चलियौ!
अर्थात वह स्पष्ट कह रही है कि आज मिलन की रात कहीं बीत न जाए और रात लम्बी हो, और पिया से मिलन में व्यवधान न आए उसके लिए वह हर कदम उठाएगी, वह कुत्ते को कोठरी में बंद करेगी, वह चिड़ियों को जाली में बंद करके उनका कलरव बंद करेगी, वह वीणा से चन्द्रमा को प्रभावित करेगी और कहेगी कि आज की रात को और बढ़ा दे!
यह प्रेम की उन्मुक्तता है! यह देह की बात है, यह देह की पुकार है, वह चाहती है कि अपने प्रियतम की देह का सुख वह पूरी रात ले, और इसमें उसे कोई व्यवधान नहीं चाहिए!।
यह प्रेम के स्वर हैं, यह सृजनात्मक मिलन के स्वर हैं। लोपामुद्रा हों, या फिर कालान्तर में प्रवीन राय, यह सभी स्वतंत्र स्त्रियों के स्वर हैं, जिनके लिए प्रेम या देह की स्वतंत्रता समाज को तोड़ने का कोई टूल नहीं थी बल्कि वह एक सन्देश देने के लिए थी। प्रवीन राय अपने प्रेमी के लिए अकबर से भिड जाती हैं और अकबर से यह कहने का साहस कर बैठती हैं कि यह देह तो उनके प्रेमी की जूठी है! लोपामुद्रा यह कह बैठती हैं कि यदि मेरी देह चाहिए तो मुझे स्वर्ण लाकर दीजिये और स्वयं भी स्वर्ण आभूषण पहनिए, तभी देह दूंगी!
क्या अंत: वस्त्र क्रांतिकारी प्रवीन राय जैसा प्रेम भी रच सकती हैं? नहीं! वह केवल अंत: वस्त्र की क्रान्ति करती हैं। पर अंत: वस्त्र की क्रान्ति के दुष्परिणाम क्या होते हैं, वह समझ नहीं पातीं या फिर समझना नहीं चाहती हैं।
हर महिला दिवस पर यह बात बार बार बोली जाती है कि लड़कियों के अंत: वस्त्र जिस दिन खुले में सूखने लगेंगे उस दिन स्वतंत्रता आ जाएगी। पर क्या यह बात इतनी सी है!
मानसिक विकृति से ग्रस्त अंत: वस्त्र चोर
पिछले दिनों मेरठ का एक वीडियो बहुत वायरल हुआ था, जिसमें कुछ मुस्लिम लड़के घर के बाहर लड़कियों के अंत: वस्त्र चुराकर जा रहे थे। वह आए, और घर के बाहर टंगे हुए लड़कियों के अंत: वस्त्र चुराए और चले गए। ऐसा क्यों हुआ? क्या हमारे पूर्वजों ने इसी मानसिक विकृतता से बचाने के लिए ही अंत: वस्त्रों को भीतर सुखाए जाने की बात की होगी। और वह भी तब जब ऐसी गंदी मानसिकता के लोग आए थे। क्योंकि दैनिक जागरण के अनुसार मेरठ में लड़कियों के अंत: वस्त्र चुराने वाले आरोपित ने कहा था कि वह कामुकता के लिए लड़कियों के अंडर गारमेंट चोरी करते थे। और वह दस से ज्यादा लड़कियों के कपड़े चोरी कर चुके थे। और आरोपित था रोमिन जबकि उसका साथी अक्कास फरार था।
हिंदी पट्टी की अंत: वस्त्र विशेषज्ञ फेमिनिस्ट केवल अपनी कामुकता और यौन कुंठा से ग्रस्त होकर ऐसा कुछ न कुछ करती रहती हैं, जिससे उन्हें फुटेज मिले और जब लड़के उन्हें कुछ कहते हैं तो वह न केवल उन लड़कों को संघी या हिन्दू कट्टरपंथी कहती हैं, बल्कि इस आशय के लेख भी प्रिंट, क्विंट आदि में प्रकाशित करवाती हैं। इसमें भी वह उन मुस्लिम ट्रोलर को छोड़ देती हैं, जो उनका मज़ा लेते हैं।
जैसे अभी हाल ही में एक स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है, जिसमें उसने कहा कि उसने एक मुस्लिम मोलेस्टर को जाने दिया क्योंकि सरकार वैसे ही उनके पीछे पड़ी है।
और जर्मनी में भी पाठकों को याद होगा कि कैसे मुस्लिम शरणार्थियों द्वारा किए जा रहे बलात्कारों पर लड़कियों के साथ न खड़े होकर कथित बुद्धिजीवी वर्ग उन अपराधियों के साथ खड़ा हो गया था। और हाल ही में दस मुस्लिम शरणार्थियों को सजा भी हुई थी.
तो यह वह वर्ग है जो एक प्रकार की मानसिक विकृति से पीड़ित है। भारत में यह विकृति और भी तेजी से बढ़ रही है क्योंकि यहाँ की वाम पोषित फेमिनिस्ट अब खुलकर हिन्दू धर्म के खिलाफ आ गयी हैं। हिन्दू धर्म के खिलाफ आना भी कोई बड़ी बात नहीं है, परन्तु वह अब विकृतियों के पक्ष में आ रही हैं। वह आने वाली पीढ़ियों को वह विकृति सौंप रही हैं, जो दरअसल उनके लिए ही अभिशाप बनने जा रही है। वह उस कबीलाई मानसिकता और उस यूरोपीय पिछड़ी मानसिकता को आधुनिक मानती हैं, जिसमें लड़कियों को अपने मजहब या रिलिजन के खिलाफ बोलने की, या जाने की आजादी नहीं होती। इनका सारा निशाना हिन्दू धर्म और परिवार को तोड़ना ही है!
यह औरतें तालिबान द्वारा उस फतवे के बारे में नहीं बोलती हैं, जिसमें वह पंद्रह साल से अधिक की लड़कियों की सूची मांग रहे हैं। और यहाँ तक कि वह अपने प्रिय दानिश सिद्दीकी को मारने वाले विचार के विरोध में नहीं बोल रही हैं। वह केवल शहादत कह रही हैं। पर कट्टरपंथी इस्लाम के सामने अपने घुटने टेक चुकी यह मानसिक विकृत हिन्दुस्तानी फेमिनिस्ट अब मानसिक विकृतता के उस दौर में हैं, जहाँ से वापसी का मार्ग शेष नहीं है।
बस आने वाली पीढी को इस अंत: वस्त्र क्रांतिकारी फेमिनिज्म से बचाना है! इस्लामी कट्टरपंथ की प्रेमी फेमिनिस्ट से हमें अपनी आने वाली पीढी को बचाना है! इस फेमिनिस्म को नकाब से प्यार है, बुर्का इनके लिए आधुनिकता का प्रतीक है और हिजाब निजी आज़ादी का, जिसके पक्ष में यह अभियान भी चलाती हैं! वाम फेमिनिज्म अब कट्टर इस्लामी फेमिनिज्म में बदल चुका है। अंत: वस्त्र फेमिनिज्म की परिणिति अंतत: काले बुर्के में ही होती है जैसी कमला दास की हुई!
यह फेमिनिज्म हमारी लड़कियों का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उन्हें स्वतंत्र हवा से दूर करके काले टेंट में पैक कर देता है या कहें उस ओर कदम बढ़वा देता है!
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