यूं तो मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता है, जिनका उत्तरदायित्व होता है समाज को सच दिखाना और तथ्यों की जाँच कर उससे एकत्रित जानकारी को सार्वजनिक पटल पर रखना। हालांकि यह सब अब मात्र एक छलावा सा लगता है, क्योंकि वर्तमान में मीडिया अपने उत्तरदायित्व को छोड़ सब कुछ कर रहा है, जिनमे प्रमुख है गलत तथ्यों को निष्पक्षता की चाशनी में लपेट कर परोसना, ताकि जनता को भ्रमित किया जा सके, और इस बहाने मीडिया अपना राजनीतिक और आर्थिक लाभ उठाने में सफल हो जाए।
ऐसा ही एक मीडिया समूह है ‘द वायर’ जो निष्पक्षता और निडर पत्रकारिता का चोला ओढ़ कर एक ख़ास विचारधारा के विचारों को पोषित करता है, वहीं हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को बदनाम करने का पूरा प्रयास करता है। यह पोर्टल कुख्यात है भारत और हिंदुत्व के प्रति भ्रमित करने वाली खबरें छापने के लिए, जिन्हे विपक्षी विचारधारा के लोग एकमात्र सत्य समझ लेते हैं, और इसके लेखों का उपयोग समाज में भ्रम फैलाने और आपसी वैमनस्यता फैलाने के लिए करते हैं। इसी से प्रोत्साहित हो कर ‘द वायर’ एक के बाद एक झूठी ख़बरों और लेखों को छापता रहता है, और हमारे समाज को तोड़ने का कुकृत्य भी करता है।
लेकिन कहा जाता है, कि हर झूठ कभी ना कभी उजागर हो ही जाता है। ‘द वायर’ पिछले कुछ महीनों से एक झूठी खबर चला रहा था, जिसमे वह भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय पर आरोप लगा रहा था कि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपने प्रभाव का उपयोग कर विपक्षियों और विरोध करने वाले लोगों की पोस्ट्स को हटवा देते थे, और उनके एकाउंट्स को भी प्रतिबंधित कर देते थे। ‘द वायर’ ने अपनी कहानी को सच बताने के लिए मेटा कंपनी के आतंरिक संचार के बारे में झूठी जानकारियां दी, जिसे मेटा ने ना सिर्फ नकारा बल्कि वायर के विरुद्ध अकाट्य साक्ष्य भी दिए।
26 अक्टूबर को अंततः सब ओर से घिर जाने के पश्चात ‘द वायर’ ने मेटा के विरुद्ध की गई रिपोर्ट्स वापस ले ली हैं। ‘द वायर’ के प्रमुख सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने कुकृत्य के लिए क्षमा भी मांगी है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, “हमने बाहरी विशेषज्ञों की सहायता से उपयोग की जाने वाली तकनीकी स्रोत सामग्री की आंतरिक समीक्षा करने के बाद मेटा रिपोर्ट्स को हटाने का निर्णय लिया है।”
वरदराजन आगे कहते हैं कि, “इन खबरों के प्रकाशन से पहले, आंतरिक संपादकीय प्रक्रियाओं के जो मानक ‘द वायर’ ने अपने लिए निर्धारित किये हैं और जिनकी हमारे पाठक अपेक्षा रखते हैं, उनका पालन नहीं हुआ।” वरदराजन ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि, “संपादकीय टीम चूक के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेती है और यह सुनिश्चित करने का वचन देती है कि भविष्य में प्रकाशन से पहले स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा सभी तकनीकी साक्ष्य सत्यापित किए जाएंगे।”
यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि ‘द वायर’ ने मेटा को लेकर दो रिपोर्ट प्रकाशित की थीं। जिन पर पलटवार करते हुए मेटा ने कहा था कि वायर ने जिन साक्ष्यों का उपयोग किया था वह झूठे हैं। इसके पश्चात ‘द वायर’ ने एक और रिपोर्ट प्रकाशित की थी और उल्टा मेटा को ही गलत बताया था। लेकिन अब चूंकि अब उसका भांडा फूट गया है, ‘द वायर’ को क्षमा याचना करने को विवश होना पड़ा है, और उसने अपनी खबरों को जांचने के लिए अपनी वेबसाइट से हटा दिया है।
हालांकि जैसी आशा थी, द वायर ने यह क्षमा मांगते हुए भी कुछ जानकारियों को छुपाने का प्रयत्न किया है। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि मेटा स्टोरी पर काम करने वाले उसकी टीम के कुछ सदस्य ‘टेक फॉग’ नामक झूठे समाचार को बनाने में लिप्त थे। इस साल जनवरी में डॉकिंग सेवाएं प्रदान वाले लंदन स्थित संगठन Logically.ai से जुड़े देवेश कुमार और आयुष्मान कौल ने टेक फॉग से सम्बंधित लेख लिखे थे। लेकिन अब अब ‘द वायर’ ने ‘टेक फॉग’ के उन सभी लेखों को भी वापस ले लिया गया है, लेकिन माफीनामे में टेक फॉग के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है।
क्या थी टेक फॉग स्टोरी?
टेक फॉग स्टोरी में ‘द वायर’ ने कुछ अज्ञात विशेषज्ञों के सन्दर्भ ले कर कुछ निष्कर्षों को ‘सत्यापित’ करने का दावा किया था। टेक फॉग को इतना प्रचारित किया गया कि यह सभी प्रमुख समाचार चैनलों और मीडिया पोर्टल्स पर बहस का हिस्सा बन गया था। एनडीटीवी इंडिया के ‘कथित’ पत्रकार रवीश कुमार ने इसे नाटकीय रूप से अपने प्राइम टाइम कार्यक्रम में प्रस्तुत भी किया था। इस विषय को संसद में भी उठाया गया था और इसकी गहन जाँच की माँग भी की गई थी।
इन लेखों में ऐसा दिखाने का प्रयास किया गया था कि भाजपा और उसकी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय इतने शक्तिशाली हैं कि वह सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर लोगो की बातचीत, उनके विचारों, उनके पसंद नापसंद, और उनके क्रियाकलापों को नियंत्रित करने में सक्षम थे। हालाँकि, बाद में पता चला कि मोदी विरोध के चलते ‘द वायर’ ने यह झूठी कहानी गढ़ी थी, और अपना पक्ष सुदृढ़ करने के लिए उन्होंने नकली साक्ष्यों, गलत सन्दर्भों को जोड़ कर एक झूठा प्रचार किया । इसके लिए उन्होंने मेटा और माइक्रोसॉफ्ट के कुछ कर्मचारियों के नाम ले कर झूठे साक्ष्य दिए, जिनका उन लोगों ने ना सिर्फ सोशल मीडिया पर आ कर खंडन किया, बल्कि ‘द वायर’ के झूठ को उजागर भी किया।
अब द वायर ने एक ‘माफीनामा’ प्रकाशित किया है, जिसमें वह अपने कथित संपादकीय मूल्यों की समीक्षा करने की बात कही है। उन्होंने क्षमा मांगने की विशुद्ध नौटंकी की है। उन्होंने झूठे साक्ष्यों द्वारा एक राजनीतिक दल को बदनाम करने के लिए लेख लिखे, लेकिन आज उनका झूठ पकडे जाने पर उन्होंने टेक फॉग के लेख तो वापस ले लिए हैं, लेकिन झूठे साक्ष्य बनाने और उनका राजनीतिक दुरूपयोग करने के लिए क्षमा नहीं माँगी। इसे अव्वल दर्जे की बेशर्मी ही माना जाएगा।
‘द वायर’ अपनी झूठी कहानियों से समाज में वैमनस्यता फैलाने और देश की छवि खराब करने के लिए जाना जाता है। चाहे असहिष्णुता हो, किसान आंदोलन हो, नागरिकता अधिनियम कानून हो, लव जिहाद हो, ‘द वायर’ ने हर विषय पर झूठ बोला है, लोगों को भ्रमित किया है, लेकिन आज तक उन्होंने भूल सुधारने और क्षमा माँगने का दिखावा तक नहीं किया । इस मामले में मेटा जैसी दुनिया की सबसे बड़े प्लेटफार्म द्वारा उनके झूठ को पकडे जाने के पश्चात उनकी दुनिया भर में छिछालेदर हुई है, जिसने ‘द वायर’ को क्षमा मांगने की नौटंकी करने को विवश कर दिया है।
भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय करेंगे ‘द वायर’ के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही
अमूमन इस प्रकार के मामलों में भाजपा कार्यवाही नहीं करती, लेकिन इस बार भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ‘द वायर’ पर कानूनी कार्यवाही करने का मन बना लिया है। अमित मालवीय ने अपने ट्विटर हैंडल पर बताया है कि वह इन झूठे लेखों को छापने वाले पोर्टल के विरुद्ध सिविल और क्रिमिनल कार्यवाही शुरू करने जा रहे हैं। मालवीय का कहना है कि ‘द वायर’ ने फर्जी दस्तावेजों का उपयोग कर उनकी छवि को खराब करने का षड्यंत्र किया है, और इसके लिए उन्हें दंड मिलेगा और आर्थिक हर्जाना भी देना पड़ेगा।
एक मीडिया समूह को सदैव निष्पक्ष रहना चाहिए, इस मामले में ‘द वायर’ ना मात्र एक राजनीतिक दल के प्रति द्वेष की भावना से प्रेरित था, बल्कि उसने उस दल के विरुद्ध नकली साक्ष्यों को बना कर एक षड्यंत्र ही रच दिया। यह पत्रकारिता की भावना और मूल्यों का अवमूल्यन है और एक जघन्य अपराध भी है।