कल रात को अचानक से ही पूरी दुनिया में फेसबुक का चलना बंद हो गया और उसके शेयर्स कल जून के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गए थे। दरअसल हुआ यह था कि एक डेटा साइंटिस्ट और फेसबुक व्हिसलब्लोअर फ्रांसेस होगन (Frances Haugen) ने 60 मिनट इंटरव्यू में फेसबुक के बारे में कई ऐसी बातें बताईं, जिससे फेसबुक संभवतया परेशान हो गया। इससे ऐसा भी प्रतीत हुआ कि जो फेसबुक डाउन हुआ, वह कहीं ऐसा तो नहीं कि फेसबुक ने अपनी सभी सेवाएं कुछ देर के लिए बंद कर दीं हों! इस पूरे साक्षात्कार को इस लिंक पर देखा जा सकता है:
फ्रांसेस ने इस कार्यक्रम में बताया कि फेसबुक हमेशा झूठ बोलता है और जनता के लिए भले और फेसबुक के लिए भले के बीच फेसबुक अपना भला देखता है और उन्होंने बताया कि फेसबुक हमेशा ही नफरत फ़ैलाने वाली बातों पर रोक लगाने के स्थान पर अपने खुद के फायदे देखता है।
फ्रांसेस वर्ष 2019 में फेसबुक के साथ जुड़ने से पहले गूगल और पिंटरेस्ट के साथ काम करती थीं, उन्होंने कहा कि उनसे कंपनी के एक ऐसे क्षेत्र में काम करने के लिए कहा गया, जो गलत सूचनाओं से लड़ता था, और चूंकि उनकी एक मित्र ऐसी ही कांस्पीरेसी थ्योरी का शिकार हो चुकी थी।
फ्रांसेस ने कहा कि फेसबुक “खतरों से बचाने के लिए” अधिक निवेश नहीं कर रहा है। उनका कहना था कि वर्ष 2020 में राष्ट्रपति चुनाव के बाद जिस प्रकार से सिविक इन्टीग्रेटी टीम को समाप्त कर दिया गया, जो यूजर्स की रक्षा करने के लिए था, तब से उनका विश्वास फेसबुक से हट गया। फेसबुक का कहना था कि उसने अपना काम कई लोगों में बाँट दिया, मगर फ्रांसेस का कहना था कि फेसबुक ने ध्यान देना बंद कर दिया और जिसके कारण कैपिटल हिल में 6 जनवरी वाली घटना हुई।
फ्रांसेस ने कई इंटरनल डोक्युमेंट की कॉपी की और कहती है कि यह सब दिखाता है कि फेसबुक ने अपने यूज़र्स से झूठ बोला कि वह नफरत फैलाने वाली स्पीच और हिंसा और गलत सूचना वाली पोस्ट पर रोक लगा रहा है।
फ्रांसेस ने इसके लिए वर्ष 2018 के एल्गोरिदम को दोषी बताया जिसके अनुसार उन पोस्ट को अधिक प्राथमिकता देनी थी, जिसमें ज्यादा यूजर्स इंगेजमेंट हों, और जितना ज्यादा लोग गुस्सा होंगे, भावनात्मक होंगे, उतना ही अधिक लोग जुड़ेंगे!
वह कहती हैं कि “फेसबुक ने यह अनुभव किया कि अगर वह एल्गोरिदम या नियमों को सुरक्षित कर देंगे तो लोग साईट पर कम आएँगे, वह कम विज्ञापन पर क्लिक करेंगे और फिर उनके पास पैसा कम आएगा।”
फ्रांसेस का साफ़ कहना है कि फेसबुक ने ऐसे कदम नहीं उठाए हैं जिनसे गलत सूचनाएं न फैलें, बल्कि उसने विज्ञापनों के लिए ऐसे कदम उठाए जिनके कारण जनता में असंतोष जागा है और अशांति फ़ैली है। हिंसा फ़ैली है।
फ्रांसेस ने यह भी कहा कि राजनीतिक रूप से भी फेसबुक देशों की राजनीति को प्रभावित कर रहा है।
फ्रांसेस ने फेसबुक में नौकरी की थी और उन्होंने कई दस्तावेज़ कॉपी भी किये, क्योंकि उन्हें कहीं न कहीं फेसबुक की कथनी और करनी में अंतर लगा था। फ्रांसेस ने एक स्टडी में बताया कि फेसबुक ने हेट स्पीच पर 3 से 5 प्रतिशत ही कदम उठाए हैं और “हिंसा और भड़काने” वाली गतिविधियों के अंतर्गत केवल 1% पर।
सीनेटर रिचर्ड ब्लुमेंथल, एक Connecticut Democrat, और जो सबकमिटी की अध्यक्षता कर रहे हैं, उन्होंने एक स्टेटमेंट में कहा कि वह फ्रांसेस के साहस से बहुत प्रभावित हैं क्योंकि उन्होंने जिस तरह से दुनिया के सबसे ताकतवर कॉर्पोरेट के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया है, वह सहज नहीं है। और फिर उन्होंने यह भी कहा कि फ्रांसेस के दस्तावेजों से ही हमें यह पता चला है कि फेसबुक बच्चों को कितना नुकसान पहुंचाता है और अपना फायदा कमाने के लिए जानबूझकर कैसे शोषण करता है।”
कल जैसे ही फ्रांसेस का यह इंटरव्यू वायरल होने लगा, वैसे ही पूरी दुनिया में फेसबुक बंद हो गया। हालांकि फेसबुक ने फ्रांसेस के इस इंटरव्यू का उत्तर दिया और सीबीएस न्यूज़ को दिए गए एक साक्षात्कार में लेना पीत्श्च ने जो फेसबुक की पालिसी कम्युनिकेशन की निदेशक हैं, उन्होंने कहा कि हर रोज हमारी टीम अपने प्लेटफॉर्म को सुरक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है और हम हर रोज लाखों, करोड़ों लोगों को गलत सूचनाओं से बचाते हैं, यह कहना सही नहीं है कि हम गलत कंटेंट पर कदम नहीं उठाते हैं।”
यह तो फेसबुक का आधिकारिक उत्तर था, परन्तु यह तय है कि सोशल मीडिया कंपनी अब राजनीतिक दलों के हाथों का नया उपकरण हैं। हमने भारत में भी देखा है कि एक विशेष अर्थात वाम विचारधारा वाले ग्रुप और पेज बहुत ही कम प्रतिबंधित होते हैं और उन पर की गयी रिपोर्ट का भी कुछ विशेष प्रभाव नहीं होता है।
कैसे नागरिकता आन्दोलन से लेकर कथित किसान आन्दोलन के दौरान गलत सूचनाओं ने स्थिति को बिगाड़ा है, हिंसा को फैलाया है, वह सभी ने देखा। हमने देखा था कि कैसे दिल्ली दंगों के दौरान कई लोग लाइव प्रसारण फेसबुक के माध्यम से कर रहे थे।
फ्रांसेस का यह तेरह मिनट का साक्षात्कार और फेसबुक से लेकर इन्स्टाग्राम का बंद होना, कहीं किसी बड़े षड्यंत्र का सूचक तो नहीं है।