भारत के विषय में एक बात हमेशा कही जाती रही, और वह भारत को नीचा दिखाने के लिए की जाती थी कि भारत सपेरों का देश है। और हर उपलब्धि को इसी दायरे में देखा जाता रहा। परन्तु क्या सांप और सपेरे भारत में उस दृष्टि से देखे जाते थे, जैसा उन्हें हेय इस पंक्ति के माध्यम से दिखाया गया? क्यों भारत की हर उपलब्धि को बार बार यह कहते हुए अपमानित किया गया कि भारत सपेरों का देश है।
भारत के हिन्दू दर्शन में सदा ही सह-अस्तित्व की भावना थी। सर्वे भवन्तु सुखिन: की अवधारणा थी, और हर जीव में और कोई नहीं, बस प्रभु ही तो हैं। सभी जीवों में प्रभु की ही आत्मा का अंश है, तभी वह चेतन है। इसलिए सांप, बिच्छू आदि कैसे हेय या त्याज्य हो सकते थे? पर समस्या थी, समस्या उनकी ओर से थी जिन्होंनें सांप को हेय माना, और जो सांप को दोषी मानते हैं। हिन्दू दर्शन में तो शेषनाग हैं, नागचंद्रेश्वर महादेव हैं, एवं नागों का समृद्ध इतिहास है। वह हेय कैसे हो सकते हैं? वह तो पूज्य हैं।
पहले वर्ष में एक दिन खुलने वाले श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर की बात और फिर उस रिलीजियस सिद्धांत की, जिसके कारण आज की पीढ़ी के लिए सांप केवल एक सरीसृप होकर रह गया है।
महादेव की नगरी उज्जैन में नागचंद्रेश्वर का मंदिर एक अद्भुत मंदिर है, जो वर्ष में मात्र एक ही दिन के लिए भक्तों के लिए खुलता है और फिर वर्ष भर के लिए भक्तों के लिए बंद हो जाता है। इस मंदिर में महादेव की भी अद्भुत प्रतिमा है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु के स्थान पर महादेव नाग की शय्या पर विराजे हैं। मंदिर में प्राचीन मूर्ति में फन फैलाए नाग के आसन पर विराजे हैं महादेव, और पार्वती। और उनके साथ हैं उनके पुत्र गणेश। इस मंदिर के विषय में पौराणिक मान्यता यह है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए नागराज तक्षक ने कई वर्षों पर घनघोर तप किया था।
नागराज तक्षक की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने तक्षक को वरदान दिया कि वह अमर हो जाएंगे। तब से तक्षक उन्हीं के सानिध्य में निवास कर रहे हैं,। यही कारण है कि उनकी मूर्ति शिव जी के साथ ही स्थापित की गयी। फिर तक्षक ने उनसे एकांत में विघ्न न होने का वरदान माँगा, अत: वह मंदिर में मात्र एक ही दिन के लिए भक्तों के लिए उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में यह मंदिर वर्ष भर बंद रहता है।
इस मंदिर का महत्व बहुत अधिक है, इस मंदिर में नागपंचमी के दिन दर्शन करने से व्यक्ति के सर्पदोष दूर हो जाते हैं, यही कारण है कि इस दिन लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुँचते हैं।
नागपंचमी को मनाए जाने को लेकर कई कथाएँ हैं, परन्तु नागों का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक है, इसलिए न ही सांप, न ही नाग और न ही सपेरों को तब तक हेय दृष्टि से देखने की परम्परा प्राप्त होती है, जब तक इस मान्यता वाले नहीं आए थे कि साँप के उकसाने के कारण इंसान को स्वर्ग से नीचे आना पड़ा था।
बाइबिल में सांप:
बाइबिल में सांप को शैतान/चतुर कहा गया है। जब God ने इंसान बनाया, और सारी दुनिया बनाई और फिर मैन (आदमी) जब सो रहा था तो उसकी एक पसली निकालकर उसमें मांस भर दिया और कहा कि यह वुमन (औरत) है क्योंकि यह मैन से निकली है और फिर आदेश दिया कि वह दोनों नग्न ही रहेंगे।
मगर उसमें सांप सबसे दुष्ट था, और उसने मैन और वुमन को उस फल को खाने के लिए उकसाया जो गॉड ने मना किये थे। जैसे ही उन दोनों ने वह फल खाया तो उन्हें बोध हो गया और फिर वह गॉड के सामने नंगे नहीं आ सके। फिर गॉड को सारा मसला पता चला और उन्हें पता चला कि यह सब सांप की कारस्तानी है तो उन्होंने सांप को श्राप दिया कि वह जीवन भर रेंग कर चलेगा और उसके बच्चे और वुमन के बच्चे आपस में दुश्मन होंगे, वुमन इतनी बड़ी उसकी दुश्मन होगी कि वह सांप का सिर कुचल देगी!
यही कारण है कि वह सांप, सपेरों और नागपंचमी को समझ नहीं पाएंगे:
जो यह सिद्धांत पढ़कर ही रिलीजियस रूप से परिपक्व हुआ है, वह कभी भी इस प्रतिमा की या महादेव की गले में सर्प लिपटी हुई प्रतिमा को समझ नहीं पाएगा। जिस जीव के कारण वुमन को गर्भावस्था की पीड़ा का सामना करना पड़ा और जिस जीव के कारण उसे सदा मैन की गुलामी या प्रभुत्व झेलना पड़ रहा है, उसे वह देव या कुछ और कैसे समझ सकती हैं और जिस जीव के कारण मैन को धरती पर खेती करनी पड़े, पसीना बहाना पड़े, और मेहनत करने के बाद ही उसे खाना मिले, तो वह उस जीव के प्रति आदर से भरे कैसे हो सकते हैं? और इस सिद्धांत को भी कैसे समझ सकते हैं कि नागराज तक्षक हो सकते हैं?
या फिर वह यह कैसे समझ सकते हैं कि मानव जन्मेजय द्वारा क्रोध में की जा रही नागों की हत्या से नागों की रक्षा किसी आस्तिक नामक मानव ने की थी!
यही कारण है कि नागपंचमी मनाने वाला हिन्दू कभी सर्प का उपहास नहीं करता और भारत इसीलिए सांप और सपेरों का देश है क्योंकि उसके मूल में सह अस्तित्व का भाव है और साथ ही स्वयं की रक्षा के लिए प्रकृति से अनुरोध का भाव और वहीं जो लोग सांप और सपेरों का उपहास करते हैं, वह इसीलिए क्योंकि वह क्रोध में भरे हुए हैं और उसे चतुर और निकृष्ट मानते हैं।
अत: अपने सभी पर्वों की महत्ता को समझना आवश्यक है, कथाओं को सनातन की विराट दृष्टि से देखना और समझना है, उनकी दृष्टि से नहीं, जिनकी दृष्टि में श्रम, प्रसव एवं हर कष्ट किसी सांप या नाग की देन है!
क्या आप को यह लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।
हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .