जिन दिनों भारत में लव जिहाद की समस्या अपने सबसे विकराल रूप में है और देखा जा रहा है कि कैसे कुछ कट्टरपंथी इस्लामी तत्व हिन्दू लडकियों को हर कीमत पर निशाना बनाना चाह रहे हैं, फिर उसके लिए लिए खुद ही जेल क्यों न जाना पड़ जाए, वैसे समय में हिन्दुओं के प्रति सॉफ्ट षड्यंत्र भी कहीं न कहीं जारी हैं। आवश्यकता जब इस बात की है कि मुस्लिम समुदाय के उदार स्वर अपने लोगों में इस बात की प्रतियोगिता का आयोजन कराएं कि कैसे उनके युवक नाम बदलकर हिन्दू लड़कियों को अपने जाल में न फंसाएं, वह लोग प्रतियोगिता आयोजित करा रहे हैं कि कैसे वर्तमान समय में एक दूसरे की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को लोग समझ नहीं रहे हैं।
और इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन कराया जा रहा था। सबसे अधिक हैरान करने वाली बात यह थी कि यह प्रतियोगिता केवल गैर मुस्लिमों के लिए थी। इस प्रतियोगिता के विषय में पता चलते ही हिन्दू संगठन हलचल में आए और इसका विरोध होना आरम्भ हो गया। फेसबुक पर इसका विरोध हुआ और कई लोगों ने इसके विरोध में लिखा।
इस प्रतियोगिता में यह शर्त ही लोगों का संदेह बढ़ाने के लिए पर्याप्त थी कि यह गैर मुस्लिमों केलिए है। विश्व हिन्दू परिषद ने इसका विरोध किया और शासन से अनुरोध किया था कि इस शरारतपूर्ण प्रतियोगिता पर रोक लगाई जाए। इस विषय में गृहमंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा जी को भी अवगत कराया गया था और यह कहा गया था कि प्रतियोगिता के नाम पर यह लोग इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद की जीवनी पढ़ाकर लोगों का धर्मान्तरण न करने लगें!
सोशल मीडिया पर भी यही बात बार बार उठी थी कि आखिर इस प्रतियोगिता का उद्देश्य हो क्या सकता है? सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने यह भी आशंका व्यक्त की थी कि इससे हिन्दू लड़कियों और लड़कों का डेटाबेस भी उनके पास बन जाएगा। सभी का मोबाइल नंबर तो पहुँच ही जाएगा! डेटा बेस से अर्थ यह कि अमुक लड़की या लड़का किस स्कूल में पढता है, उम्र, घर के लोग, घर कहाँ है, परिवार में कौन क्या है आदि आदि!

इस प्रतियोगिता का औचित्य सभी की समझ से परे था। लोगों का यह भी आरोप था कि इस प्रतियोगिता के बहाने पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी पर किताब बांटना चाहते हैं।
मीडिया के अनुसार बजरंग दल के सह संयोजक पिंटू कौशल ने विरोध दर्ज कराते हुए कहा था कि
“इंसानियत गजवा हिंद सोसायटी द्वारा आयोजित इस प्रतियोगिता मे सिर्फ हिंदुओं को ही प्रतियोगिता में शामिल किया जा रहा था। उन्हें मोहम्मद पैगंबर पर जीवनी लिखनी थी। इसके लिए बकायदा सोसायटी द्वारा रजिस्ट्रेशन कर एक किताब भी उपलब्ध करवाई जा रही थी। इसका नाम रहमत-ए-आलम था। यह मोहम्मद साहब की जीवनी पर आधारित थी।“
परन्तु इस प्रतियोगिता के विषय में जब मध्यप्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा को पता चला तो उन्होंने उज्जैन के एसपी को इस प्रतियोगिता को स्थगित कराने के निर्देश दिए।
उन्होंने भी कहा कि यह समझ नहीं आया कि यह कैसा तरीका है, यह समझ नहीं आ रहा है। उनके संज्ञान में जैसे ही यह बात आई उन्होंने तुरंत ही एसपी को निर्देश दिया कि वह इसे स्थगित कराएं।
गृहमंत्री से आदेश पाने के उपरान्त एसपी सत्येन्द्र कुमार शुक्ला ने कहा कि आयोजकों के विषय में जानकारी जुटाई जा रही है। और इस प्रतियोगिता पर इतना शोर मचने के बाद प्रतियोगिता कराने वाले आयोजक पैगाम-ए-इंसानियत संगठन ने प्रतियोगिता को हाल फिलहाल के लिए टाल दिया है।
प्रतियोगिता को आयोजक सैयद नासिर ने बताया कि हर जाति व मजहब के लोगों को हजरत मोहम्मद के बारे में बताने के लिए इस प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा था। इस प्रतियोगिता के पीछे हमारा मकसद गलत नहीं था लेकिन इसका गलत मतलब निकाला गया। एसपी सत्येंद्र कुमार शुक्ला से हुई चर्चा के बाद इस प्रतियोगिता को निरस्त कर दिया गया है। इसकी सूचना भी सार्वजनिक कर दी है।

यह प्रतियोगिता तो निरस्त हो गयी है, परन्तु ऐसा हर प्रयास हर उस जख्म पर नमक बुरकने जैसा है, जो मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा बहुसंख्यक हिन्दू समाज को दिया जा रहा है। ऐसा हर कदम हर उस लड़की की लाश पर अट्टाहस करने जैसा है जो जिहादी सोच का शिकार हुई है।
क्या यह बेहतर नहीं होता कि ऐसे कदम पैगाम ए इंसानियत सोसाइटी द्वारा उठाए जाएं, जिनमें बढ़ती हुई जिहादी प्रवृत्ति पर रोक की बात हो, जिनमे इस पर अपने समाज के आदमियों को जागरूक करें कि वह वह गैर मुस्लिम लड़कियों का आदर करें, उन्हें मनोरंजन की वस्तुएं न समझें।
समाज से लव जिहाद के मामले कम करे, ऐसी अपीलें क्यों नहीं होती हैं?
यह घटना एकदम वैसे ही है जैसे तनिष्क का विज्ञापन था, जब लव जिहाद के मामलों को लेकर हिन्दू समाज आक्रोश में था तब उसके जख्मों पर नमक छिडकने के रूप में वह विज्ञापन सामने आया था। तब वह कथित रचनात्मकता की आड़ में किए गए छल से हतप्रभ रह गया था और इस बार कथित उदारता के आवरण में किए जा रहे छल से हतप्रभ रह गया!
परन्तु विरोध तब भी किया था और विरोध अब भी किया! इसी विरोध का परिणाम है कि यह अत्यंत शरारतपूर्ण प्रतियोगिता रद्द करनी पड़ी!