हिन्दी टीवी क्वीन कहलाने वाली एवं भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित एकता कपूर पर उच्चतम न्यायालय ने अत्यंत ही कठोर टिप्पणी करते हुए कहा है कि वह युवाओं के दिमाग को प्रदूषित कर रही हैं।
हालांकि इस बात पर आम लोग न जाने कब से प्रश्न उठा रहे हैं कि एकता कपूर को आखिर कैसे इतनी विकृति फ़ैलाने की छूट मिली हुई है।
मनोरंजन उद्योग एवं साहित्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो नंगा नाच हुआ है, उसने हिन्दू संस्कृति को कितना दूषित किया है, उसकी आंकलन भी किया जाना सम्भव नहीं है। ऐसा नहीं है कि एकता कपूर ने हाल फिलहाल में ही कुछ ऐसा किया है, जिससे यह पता चले कि यह युवाओं के दिमाग को दूषित कर रही है!
एकता कपूर को हाल फिलहाल यह फटकार उनकी ऑल्ट बालाजी पर प्रसारित हुई वेब सीरीज XXX सीजन 2को लेकर लगी है। एकता कपूर पर बिहार के बेगूसराय में एक पूर्व सैनिक शम्भु कुमार ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि उसमें सैनिक की पत्नी से सम्बन्धित कई दृश्य आपत्तिजनक हैं। इस पर उन्हें बेगूसराय की एक अदालत से वारंट जरी किया गया था। अब एकता कपूर इसी मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय पहुँची थीं।
एकता कपूर का पक्ष रखने वाले मुकुल रोहतगी ने कहा कि चूंकि यह सीरीज सब्सक्रिप्शन के बाद ही देखी जा सकती है, तो यह लोगों पर निर्भर करता है कि वह क्या देखें और क्या न देखें। इस पर न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार ने एकता कपूर की तब आलोचना की जब यह कहा गया कि इस सम्बन्ध में पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी है, परन्तु उन्हें नहीं पता कि सुनवाई कब होगी”?
अब इस बात से एकता कपूर जैसों का धनवान होने का घमंड झलकता है, जिसमें वह अपने पैसों के दम पर जैसे सब कुछ कर सकती हैं।
इसी भाव को भांपकर ही उच्चतम न्यायालय ने उन्हें फटकार लगाते हुए कहा कि आप इस देश के युवाओं के दिमाग को दूषित कर रही हैं। यह ओटीटी के हर प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है। आप लोगों को किस तरह की चॉइस दे रही हैं?’। इसके अलावा कोर्ट की तरफ से फिल्म मेकर एकता कपूर को वॉर्निंग भी दी गई। उन्होंने निर्माता को फटकार लगाते हुए कहा, ‘आप जिस तरह से हर बार इस कोर्ट में आती हैं, हम उसकी सराहना नहीं करते। हम इस तरह की याचिका दायर करने के लिए आपसे एक लागत लेंगे, मिस्टर रोहतगी ये बात आप अपने क्लाइंट तक पहुंचा दें’।
एकता कपूर को पद्म पुरस्कार दिए जाने पर भी लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया था
यह बहुत ही हैरानी वाला मामला है कि एक ओर तो भारत सरकार द्वारा एकता कपूर जैसों को पद्म सम्मान से विभूषित किया जाता है और दूसरी ओर जनता ही प्रश्न पूछती है कि आखिर एकता कपूर ने ऐसा किया क्या है, जो उन्हें ऐसा सम्मान दिया जा रहा है? यह प्रश्न आना स्वाभाविक इसलिए भी है क्योंकि एकता कपूर ने एडल्ट कॉमेडी के नाम पर इतनी अश्लीलता लोगों के दिमाग में भरी थी कि लोग हैरान हो गए थे कि अंतत: एकता कपूर को क्यों यह सम्मान दिया जा रहा है?
एकता कपूर ने जो फ़िल्में बनाई थीं, उनमें बोल्डनेस के नाम पर अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी थीं। क्या कूल हैं हम से लेकर वीरे दी वेडिंग , क्या कूल हैं 3 तक, एकता कपूर ने युवाओं को वह परोसा था, जिनसे तमाम तरह की विकृतियाँ ही सामने आई थीं। कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता की हर सीमा पार कर दी थी!
और सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यही है कि जब एकता कपूर के पास सब कुछ था, तब एकता कपूर ने वर्ष 2011 एक ऐसी अभिनेत्री के जीवन पर आत्मकथ्यात्मक फिल्म बनाई, जिसने नग्नता एवं अश्लीलता के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया था। अर्थात सिल्क स्मिता पर! इसमें गंदगी थी, इसमें अश्लीलता थी और सबसे हैरानी की बात यह भी थी कि इस फिल्म में अभिनय के लिए वर्ष 2012 में विद्या बालन को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था!
अभिनय कैसा है, कोई कैसे रोया, कैसे गाने हैं, इन सबसे बढ़कर है कि मनोरंजन के इस माध्यम के जरिये युवाओं को क्या परोसा जा रहा है?
डर्टी पिक्चर में सिल्क स्मिता के जीवन को महिमामंडित करके हमारी युवा पीढ़ी को क्या संदेश दिया गया? क्या कूल हैं हम जैसी कॉमेडी के माध्यम से क्या संदेश दिया गया? यह अत्यंत बचकाना तर्क है कि यदि पसंद नहीं है तो न देखा जाए? जिन्हें यह पसंद नहीं है, वह नहीं ही देखते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि एक ऐसी उम्र के मस्तिष्क को किसी विशेष कुंठा के माध्यम से कुंठित किया जाए, जो अभी अपरिपक्वता में है!
आज ओटीटी के माध्यम से न जाने क्या क्या परोसा जा रहा है, परन्तु इसमें एकता कपूर का योगदान इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि परिवार में विखंडन की कहानियां भी एकता कपूर ने दिखानी आरम्भ की थीं,
परिवार विखंडन की कहानियों से वह अश्लीलता तक आईं और अब उन्होंने सेना पर भी हमला कर दिया था, परन्तु दुर्भाग्य यही है कि सरकार द्वारा सम्मान भी इन्हीं लोगों का होता है, फिर अपरिपक्व मस्तिष्क पर कैसे दोष दिया जा सकता है कि वह बिगड़ रहा है!
सरकार का नैतिकता के प्रति उत्तरदायित्व क्या है, क्या मूल्यों के विखंडन को इस प्रकार सम्मानित किया जाना चाहिए? यह प्रश्न हर व्यक्ति के हैं, हर आम व्यक्ति के हैं!
और अब उच्चतम न्यायालय की इस फटकार के बाद तो यह प्रश्न और भी विशाल हो गए हैं!
जब भी कोई मुद्दा गरमा जाता है, तो हम सब लोग प्रतिक्रिया देने पर उतर आते हैं, या कुछ माननीय जज फटकार भी लगाने लग जाते हैं, पर इससे क्या एकता जैसे लोगों से भरे बालीवुड पर कोई असर पड़ता है? नहीं नये नये रूपों लगे रावण के दस सिरों जैसे फिर से सामने आ ही जाते हैं। यह नैरेटिब तब तक कमजोर नहीं पड़ने वाला, जब तक या तो कोई मजबूत कानून नहीं बनता या फिर समाज पूर्ण संगठित होकर इनका बहिष्कार नहीं करता।