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Friday, March 29, 2024

जारी है हर बोर्ड का हिन्दुओं के प्रति घृणात्मक दृष्टिकोण

हमने अभी तक एनसीईआरटी की पुस्तकों में हिन्दुओं के प्रति विद्वेषपूर्ण व्यवहार देखा था, परन्तु यह रोग अन्य शिक्षा बोर्ड में नहीं है, ऐसा नहीं है।  परन्तु इन सभी में सबसे आगे अभी भी शायद  एनसीईआरटी की सीबीएसई बोर्ड की ही पुस्तकें होंगी। पहले सीबीएसई बोर्ड की पुस्तकों पर एक दृष्टि डालते हैं और फिर नैरेटिव निर्माण की बात करते हैं। एनसीईआरटी की सीबीएसई बोर्ड की पुस्तकों में एक नहीं कई झूठ हैं। और यह झूठ वह तीन विषयों के माध्यम से फैला रही हैं जिनमें सबसे ऊपर है हिंदी, और फिर इतिहास और बड़ी कक्षाओं में राजनीतिक विज्ञान आदि भी।

परन्तु इन सबकी नींव और भी बचपन से डाल दी जाती है। इसका एक उदाहरण हम कक्षा पांच की हिंदी की पुस्तक रिमझिम से देख सकते हैं। कक्षा पांच की रिमझिम में अध्याय 4 “नन्हा फनकार” है। यह अध्याय कहने को ऐतिहासिक है, परन्तु काल्पनिक है। और सबसे मजे की बात यह है कि जहां हर अध्याय के लेखक का नाम दिया है, वहीं इस कथित ऐतिहासिक कहानी में लेखक या लेखिका या सन्दर्भ का नाम ही नहीं है।

कहानी एकदम प्रोपोगैंडा परक है, अर्थात एक कुत्सित उद्देश्य को लेकर ही लिखी गयी है। कहानी में बादशाह अकबर है और वह एक नन्हे कलाकार को प्रोत्साहित कर रहा है। सर्वप्रथम फनकार शब्द ही फ़ारसी मूल का शब्द है, फ़नकार शब्द के स्थान पर कहानी के लिए मूर्तिकार या शिल्पी प्रयोग किया जा सकता था।  परन्तु इस प्रोपोगैंडा कहानी में चूंकि अज्ञात लेखक को एक ऐसा प्रोपोगैंडा चलाना था, जो हमारे बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर प्रभाव डाल दे और उन्हें एक व्यक्ति अकबर के प्रति उदार बना दें, तो शब्द भी उसी प्रकार चुना गया है।

नन्हा फ़नकार एक छोटा लड़का केशव है, जो अकबर के लिए आगरा के किले में पत्थर तराशने का कार्य कर रहा है और जो घंटियां भी तराश रहा है, उसकी तराशी गयी घंटियों ने बादशाह अकबर को प्रभावित कर दिया है और वह किले में घंटियों की सुन्दरता में मोहित हुआ जा रहा है।  जबकि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि आगरा का दुर्ग अकबर के आने से पहले ही था, और अकबर ने इसे तुड़वाकर दोबारा बनवाया था।

इस पूरे अध्याय में यह स्थापित करने का प्रयास किया गया है कि अकबर एक ऐसा व्यक्ति था जिसने हिन्दू प्रतीकों को अपने महल में स्थान दिया, एवं हिन्दू स्थापत्य कला को आगरा के किले में बनाया। अकबर के दिल में हिन्दुओं के प्रति प्रेम था। जबकि कई स्रोत यह भी बताते हैं कि आगरा का यह दुर्ग पृथ्वीराज चौहान का दुर्ग था। तथा यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि दिल्ली और आगरा और मथुरा तक मुगल काल के दौरान एक भी निर्मित मंदिर नहीं है। दिल्ली में पांडव कालीन मंदिर के उपरान्त जो भव्य एवं विशाल तथा हिन्दुओं की अस्मिता को स्थापित करने वाला बिरला (बिड़ला) मंदिर प्राप्त होता है, उसका निर्माण अंग्रेजों के काल में हुआ था। अर्थात मुगल काल में दिल्ली और आगरा में निर्मित कोई भव्य मंदिर परिलक्षित सहज नहीं होता है, परन्तु पुस्तक में बच्चों को यह पढ़ाया जा रहा है कि अकबर स्वयं हिन्दू स्थापत्य उदाहरणों का निर्माण करा रहा है।

यह कहानी पूर्णतया भ्रामक है क्योंकि इसमें तनिक भी यह घोषणा नहीं है कि यह कहानी है या सत्य? यदि यह सत्य है तो स्रोत क्या है और यदि यह कहानी है तो इसमें घोषणा क्यों नहीं है कि यह कल्पना है। यह केवल और केवल हमारे बच्चों को उस इतिहास की ओर धकेलने का प्रयास है जो हमारा था ही नहीं! वह आक्रमणकारियों का इतिहास था।

इसी के साथ यदि अन्य बोर्ड की पुस्तकों के विषय में बात करते हैं तो पाते हैं कि अन्य बोर्ड भी हिन्दू घृणा को समय समय पर प्रदर्शित करते रहते हैं। कल से ट्विटर पर यह दो चित्र वायरल हो रहे हैं, जो अब कहे जा रहे हैं कि केरल के हैं, परन्तु यह अभी निर्धारित नहीं हो सका है।

यह दोनों ही चित्र बच्चों के दिमाग में धीमा जहर भरने के लिए पर्याप्त हैं। पिछले कुछ दिनों में एक ख़ास मज़हब के मानने वालों द्वारा गैर मजहबी लोगों के खाने में थूक मिलाने के वीडियो सामने आए थे, तो एक बड़ा अकादमिक और लेखक वर्ग इनके इस अपराध पर पर्दा डालने आ गया था।  बल्कि यह उन्हें संभवतया गलत नहीं लगा था।

बच्चों के दिल में ऐसी कोमल छवि बनाई गयी है जिसके कारण जब वह आमिर खान द्वारा अभिनेत्रियों की हथेली में थूकने की बात सुनते हैं तो वह हँसते हैं। वह समझ ही नहीं पाते कि इसमें कुछ गलत है क्योकि उनके दिमाग में मीठा जहर भर दिया गया है। उन्हें अपने कश्मीरी हिन्दू भाइयों से लगाव अनुभव नहीं हो पाता बल्कि वह आज़ादी के नाम पर उसी एजेंडे के साथ खड़े हो जाते हैं, जिस एजेंडे ने भारत के आध्यात्मिक केंद्र को हिन्दू विहीन कर दिया है।

इसी के साथ एक और ट्वीट आया जिसमें आईसीएसई बोर्ड की एक हिंदी की पुस्तक का उल्लेख था कि कैसे साम्प्रदायिक हिंसा के नाम पर ख़ास मज़हब को निशाना बनाया जाता है और कैसे वह मज़हब जो छोटी सी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाता है, उसे शांति के प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया गया है।

कहानी में कितनी चतुराई की गयी है कि मदरसा को स्कूल बनाकर प्रस्तुत कर दिया है। जबकि मदरसे में क्या होता है उसके विरुद्ध मुस्लिम समुदाय से ही आवाजें उठने लगी हैं।  शिया बोर्ड के अध्यक्ष ने यह मांग उठायी थी कि मदरसों की शिक्षा पर नियंत्रण किया जाए, इतना ही नहीं पूरे विश्व से मदरसों के विरुद्ध स्वर उठ रहे हैं, और हमारे यहाँ बच्चों को मदरसा का अर्थ स्कूल सिखाया जा रहा है। हाल ही में असम में मदरसा पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।

यह तो वह उदाहरण हैं जो सामने आये हैं, जैसे जैसे लोग जागरूक होते हुए प्रश्न उठाते जा रहे हैं, वैसे वैसे संभवतया इन प्रकाशकों पर दबाव बढ़ना चाहिए कि वह एकतरफा एजेंडा चलाना बंद करें।  परन्तु निकट भविष्य में तो यह दिखता प्रतीत नहीं होता है क्योंकि नई शिक्षा नीति के उपरान्त भी छोटे बच्चों के मस्तिष्क के साथ खेलने का खेल लगातार चल रहा है।   अब यह खेल शीघ्र समाप्त होना चाहिए।


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