बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा को पूरे देश से भगाने के लिए 16 अगस्त को “खेला होबे” दिवस मनाने की घोषणा की है। भाजपा ने भी कांग्रेस मुक्त देश करने की बात करते हुए ही सत्ता की यात्रा आरम्भ की थी। इसलिए नारे और इच्छा में कोई समस्या नहीं हो सकती है किसी भी लोकतान्त्रिक देश में। परन्तु उसके क्रियान्वयन पर अवश्य प्रश्न उठने चाहिए और यह अवश्य ममता बनर्जी से पूछा जाना चाहिए कि क्या वह ऐसा पूरे देश में करेंगी? क्या वह भाजपा के समर्थकों की ह्त्या पूरे देश में करेंगी? जहाँ तक लगता है कि ममता बनर्जी से पूछे जाने की जरूरत नहीं है, वह करेंगी!
क्योंकि “खेला होबे” के नाम पर हिंसा का जो नंगा नाच ममता बनर्जी के समर्थकों ने खेला वह अभी तक चल रहा है और अभी भी भारतीय जनता पार्टी के समर्थक पेड़ पर लटके हुए पाए जा रहे हैं। यहाँ तक भारतीय जनता पार्टी के सांसद और विधायक भी सुरक्षित नहीं हैं। फिर भी ममता बनर्जी अब उसी पैटर्न को पूरे देश में लागू करने के लिए उतारू हैं और वह हर कीमत पर अब प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं।
पर 16 अगस्त ही क्यों? क्या इसलिए क्योंकि इसी दिन पाकिस्तान की मांग को लेकर डायरेक्ट एक्शन डे की शुरुआत हुई थी और देखते ही देखते 16 अगस्त 1946 को देश में अब तक के इतिहास के सबसे बड़े और भयानक दंगे हुए थे, जिनमें हिन्दुओं को घेरकर मारा गया था। किसी को भी यह अहसास नहीं था कि जिनके साथ वह रहते हुए आए हैं, वह उन्हें ही मार डालेंगे। किसी को भी ऐसा अहसास नहीं था।
Interesting @MamataOfficial has declared August 16 as “Khela hobe divas”. It is the day the Muslim League launched its Direct Action Day & began the Great Calcutta Killings in 1946. In today’s West Bengal, “Khela Hobe” has come to symbolise a wave of terror attacks on opponents.
— Swapan Dasgupta (@swapan55) July 21, 2021
पर 16 अगस्त 1946 को आतंक फैलाने के लिए और यह साबित करने के लिए कि मुस्लिम अब किसी भी स्थिति में शांत नहीं बैठेंगे, और हर हाल में पाकिस्तान पाकर ही रहेंगे और जो भी उनकी राह में आएगा उसे मार डाला जाएगा, बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। मुस्लिम लीग पाकिस्तान के लिए हताशा में भर गयी थी।
उसके परिणामस्वरुप नोआखाली का दंगा अब तक सबसे भयानक दंगा था, जिसमे हिन्दुओं का कत्ले आम हुआ था। ऐसा नहीं था कि कहीं बाहर से मुस्लिम आए थे? बल्कि समान डीएनए वाले ही थे और यहीं के मतांतरित मुसलमान थे, जिन्होनें कुछ ही सदी पूर्व के अपने भाइयों के साथ रहने से इंकार ही नहीं किया था बल्कि उनका नरसंहार भी किया था।
16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे मनाए जाने के दौरान कलकत्ता में बड़े पैमाने पर दंगे भड़के और केवल बहत्तर घंटों के दौरान ही चार हज़ार से ज्यादा हिन्दुओं को मार डाला गया। मुस्लिम लीग के उकसाने पर यह दंगे हुए थे, हिन्दुओं को मारा गया, और इस हद तक दहशत का दौर चला कि लोग अपना घर बार छोड़ने के लिए विवश हुए। गिद्धों की दावतें हुईं!
कुछ ऐसा ही दृश्य हाल ही में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के बाद नजर आया जब चुनावी रैली के दौरान “भयंकर खेला होबे” की घोषणा की गयी थी और चुनावों के परिणामों के बाद यह अपने मूर्त रूप में आई।
भाजपा समर्थकों को चुन चुन कर मारा गया, महिला कार्यकर्ताओं के साथ बलात्कार हुए, छेड़छाड़ हुई, उन्हें गनीमत का माल माना गया और यहाँ तक कि भाजपा के नेताओं से कहा गया कि अपनी पत्नी जब तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को देंगे तभी उन्हें बंगाल में आने दिया जाएगा। यह भयानक खेला हो रहा था। और इस तरह के खेला की उम्मीद किसी ने नहीं की थी।
न जाने कितने ही लोगो ने असम में शरण ली।
यह सब कहानियाँ मीडिया ने नहीं बताईं बल्कि जो भुक्तभोगियों ने उच्चतम न्यायालय में बताई और अनुरोध किया कि जांच की जाए। जैसे डायरेक्ट एक्शन डे में पुलिस की भूमिका संदिग्ध थी, वैसे ही बंगाल में हुई चुनावी हिंसा के बाद ममता बनर्जी की पुलिस पीड़ितों का साथ देने के बजाय उनका उत्पीडन करने वालों के साथ खडी रही।
न जाने कितने भाजपा कार्यकर्ताओं ने अपनी कहानियां सुनाईं और न जाने कितने भाजपा कार्यकर्ताओं ने अपने अपने सोशल मीडिया खाते बंद कर रखे हैं। न जाने कितने भाजपा के कार्यकर्ताओं ने जान बचाने के लिए तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ले ली। सभी पाठकों को राज्यपाल का वह वीडियो याद होगा जिसमें वह रोने लगे थे, इन पीड़िताओं की कहानियाँ सुनाते सुनाते!
यहाँ तक कि उच्च न्यायालय के आदेश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक जांच टीम बंगाल में गयी थी तो उसी के सदस्यों पर हमला हो गया था। और जब यह रिपोर्ट न्यायालय में सौंपी गयी थी तो इस पर भी ममता बनर्जी भड़क गयी थीं।
National Human Rights Comm enquiry report makes damning disclosures on gory violence in West Bengal after May 2 win by TMC pic.twitter.com/hPwOzoaKI9
— The Times Of India (@timesofindia) July 15, 2021
क्योंकि इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने हिंसा का नंगा नाच किया है।
यह सभी खेलाहोबे का ही प्रकट रूप था। दुर्भाग्य की बात है कि राजनीतिक नारे के हिंसक नारा बनाकर अब वह पूरे भारत में हिंसा का नंगा नाच करना चाहती हैं और इससे प्रेरणा हालांकि उत्तर प्रदेश में विपक्ष के नेता अखिलेश ले चुके हैं, जो कह रहे थे कि वह सूची बना रहे हैं और चुनावों के बाद देखेंगे। और उनके प्रशंसक यूपी में खेला होई की बात कर रहे हैं!
क्या देश “खेला होबे” के नारे के साथ एक और हिंसा के दौर की ओर बढ़ रहा है, जिसमें हिंसक राजनीतिक प्रतिरोध होगा या फिर भारत का लोकतंत्र जीतेगा? यह समय के गर्भ में है!
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