अंतर्राष्ट्रीय विमर्श में बार बार हिन्दू धर्म को इस बात को लेकर पिछड़ा कहा जाता है, यह कहा जाता है कि हिन्दू अपनी स्त्रियों को अधिकार नहीं देते? हिन्दू अपनी स्त्रियों को परदे में रखते हैं। आदि आदि! परन्तु इन दिनों गरबा में जिस प्रकार से जिहादी तत्व प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हैं, वह इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि कैसे जब संस्कृति तहजीब में बदलती है, वैसे ही क्या अंतर हो जाता है?
इन दिनों पूरे देश में दुर्गोत्सव मनाया जा रहा है। पूरे नौ दिनों तक जगत जननी माता की आराधना की जाती है, और माँ की शक्ति इस पूरे देश में जैसे व्याप्त हो जाती है एवं अन्याय से लड़ने की शक्ति भी देती है। भारत में उत्सव का अर्थ ही रंग, श्रृंगार आदि होते हैं। बिना रंग और बिना श्रृंगार के कैसे अपने आराध्य की आराधना होगी? हमारे आराध्य तो अपने भक्तों के साथ नृत्य भी करते हैं! माता की आराधना के लिए एक ओर बड़े बड़े पंडाल बनाए जाते हैं, जिनमें माता की प्रतिमाओं को विविध रूप से सजाया जाता है,। तो वहीं गुजरात एवं महाराष्ट्र में गरबा खेला जाता है।
उत्तर भारत में माता की आराधना स्वरुप पूरे आठ दिन व्रत रखा जाता है। पुरुष एवं महिलाऐं दोनों ही व्रत रखते हैं एवं फिर नौंवी के दिन नौ कन्याओं को भोज कराया जाता है एवं व्रत खोला जाता है। कहने का तात्पर्य यही कि इन दिनों जैसे हर हिन्दू शक्ति से ओतप्रोत रहता है! माँ अपनी शक्ति अपने भक्तों को प्रदान करने आती हैं, ताकि माँ के भक्त इस धरती पर होने वाले अन्याय का सामना कर सकें।
परन्तु अंतर्राष्ट्रीय मीडिया एवं अकादमिक जगत हिन्दुओं को लगातार पिछड़ा या फिर कहें स्त्रियों का विरोधी बताया जाता है, शोषक उत्पीड़क कहा जाता है, मगर यह उनके चेहरे पर एक बहुत बड़ा तमाचा है कि जब भारत की स्त्रियाँ स्वतंत्रता के साथ अपना उत्सव मना रही हैं, उसी समय भारत के पड़ोस में अफगानिस्तान में लडकियां अपने जीवन की हर प्रकार से लड़ाई लड़ रही हैं।
जब भारत में सृजन की शक्ति अपने नए रूपों में भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं, तो उन्हीं दिनों अफगानिस्तान में बालिकाओं को निशाना बनाकर बम विस्फोट हो रहे हैं और वह भी कथित रूप से “अल्पसंख्यक” शिया समुदाय की लड़कियों पर! उनका दोष क्या था? उनका दोष पढ़ाई करना था। इस बात को लेकर पश्चिमी मीडिया, जो बार बार हिन्दू समुदाय को पिछड़ा बताता रहता है, वह एकदम मौन है! उसके लिए यह मायने ही नहीं रखता कि अफगानिस्तान में लड़कियों पर हमला हो रहा है, और न ही पश्चिम के अकादमिक जगत की दृष्टि ईरान में जा रही है, जहाँ पर लडकियां सड़क पर इसलिए हैं क्योंकि वहां पर उन्हें इस्लामिक कट्टरपंथी शासन द्वारा बाल तक खोले जाने की आजादी नहीं है।
पूरा सोशल मीडिया उन मरने वाली मासूम शिया लड़कियों के चेहरे से भरा पड़ा है, जो काबुल में हुए इस विस्फोट का शिकार हुई हैं। परन्तु पश्चिम का अकादमिक जगत हिन्दूफोबिया में इस हद तक अंधा हो गया है, कि वह यह नहीं देख पा रहा है कि शक्तिपर्व ही नहीं बल्कि शेष दिनों भी भारत में महिलाऐं स्वतंत्र हैं और उनकी स्वतंत्रता दरअसल उसी समुदाय के कट्टरपंथी तत्वों द्वारा खतरे में आ रही है, जो उनका प्रिय है अर्थात कट्टरपंथी मुस्लिम तत्व! लव जिहाद को लेकर हिन्दू लडकियां असमय मारी जा रही हैं, अब इस विषय को ग्रीस का भी मीडिया उठा रहा है, परन्तु पश्चिम का अकादमिक जगत इस बात को नहीं मानता है।
हिन्दुफोबिया इस हद तक हावी है, या कहें हिन्दुओं से इस सीमा तक घृणा है कि उसके चलते मुस्लिम लड़कियों की लाशों पर भी बात करना वहां पर जैसे अपराध है। शुक्रवार को अफगानिस्तान में हुए बम धमाकों में 46 लड़कियों सहित 53 लोगों की मौत हुई थी
वहीं लोगों में इस बात को लेकर भी गुस्सा हैं कि जहां ईरान में मसाह अमीनी की मृत्यु पर पूरे विश्व में इतना विरोध किया जा रहा है, तो वहीं अफगानिस्तान में इतनी लड़कियों के मारे जाने पर भी बात नहीं हो रही है? प्रश्न तो सही है कि आखिर पश्चिम का अकादमिक जगत उन लड़कियों के विषय में बातें करने से क्यों डरता है, जो कट्टरपंथी इस्लाम का शिकार हो रही है?
वहीं दूसरी ओर एक और बम विस्फोट का समाचार आया था, परन्तु उसमें कितने लोग मारे गए थे, अभी यह नहीं पता चला है
लोग वहां पर मारी गयी लड़कियों की तस्वीरें साझा कर रहे हैं! प्रश्न यही है कि इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथों मारी जा रही इन लड़कियों के असमय मरते सपनों पर बात क्यों नहीं की जाती है?
भारत में जब लडकियां स्वतंत्र होकर माँ की आराधना में अपने तमाम आभूषणों सहित स्वतंत्रता के साथ गरबा कर रही हैं, बंगाल में वह माँ दुर्गा के पंडालों में जा रही हैं, शेष भारत में उत्सव के विविध रूपों के माध्यम से अपनी सृजनशीलता का परिचय दे रही हैं, उस समय भारत के पड़ोस में अल्पसंख्यक शिया-हजारा समुदाय की लडकियां धमाकों का शिकार हो रही हैं!
उनका कत्ल कौन कर रहा है? उनकी जान इस तरह कौन ले रहा है? क्या हिन्दू या यहूदी उन्हें मार रहे हैं?
वहां पर शिया हजारा समुदाय की महिलाऐं उसी प्रकार से प्रदर्शन कर रही हैं, जैसे ईरान में लडकियां विरोध प्रदर्शन कर रही हैं, फिर भी पश्चिम का मीडिया और पश्चिम का अकादमिक वामपंथी जगत इस बात को लेकर हैरान परेशान है कि दुर्गा पूजा के गरबे में मुस्लिमों का प्रवेश क्यों नहीं है?
मुस्लिमों को हिन्दू धार्मिक त्योहारों में प्रवेश न देने देना, जो किसी भी समुदाय का धार्मिक अधिकार है, वह पश्चिम की मीडिया की दृष्टि में “अल्पसंख्यकों” के प्रति असहिष्णुता है, हिन्दू कट्टर हो रहा है और वहीं अफगानिस्तान में “शिया-हजारा” समुदाय की लड़कियों को बम धमाके में उड़ा देने के लिए उनके पास शब्द नहीं है!
लोग बम विस्फोट से पहले की वहां की तस्वीरें साझा कर रहे हैं
और इन्हीं लड़कियों में से कुछ मांस के लोथड़े बन गए थे, परन्तु विमर्श में क्या है, यह महत्वपूर्ण है! विमर्श में यह है कि हिन्दू अपने ही धार्मिक पर्व में उन्हें नहीं आने दे रहे हैं, जो हिन्दुओं के धार्मिक पर्व को आदर नहीं देते हैं, विमर्श में यह है कि हिन्दू असहिष्णु हैं क्योंकि वह अपने पर्वों का सेक्युलरीकरण नहीं कर रहे हैं!
विमर्श में तहजीब संस्कृति पर हावी हो रही है, जबकि वास्तविकता में और जीवन में यह संस्कृति ही है, जो मानव जीवन को बचाएगी, क्योंकि संस्कृति में वह देवी हैं, वह शक्ति है, जो सृजन करती है, जो शक्ति का विस्तार करती है!