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Saturday, April 20, 2024

अजमेर से भी उठी स्वामी यति नरसिंहानंद के विरुद्ध आवाजें

हम सभी ने वह दृश्य देखा है जहां पर हिन्दुओं की ओर से अजमेर की दरगाह में चादर चढ़ाई जाती है एवं लगभग हर नेता और अभिनेता वहां जाने के लिए तैयार रहता है, हर फिल्म की सफलता के लिए हिन्दू अभिनेता और अभिनेत्री वहाँ पर चादर चढ़ाने जाते हैं। पर सभी धर्मों के अनुयाइयों का आदर करने का दावा करने वाली अजमेर की दरगाह में स्वामी यति नरसिंहानंद को गिरफ्तार करने की आवाजें।  दिल्ली में इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद के खिलाफ डासना के स्वामी यति नरसिंहानंद द्वारा कहे गए शब्दों से मुस्लिमों की भावनाएं आहत होने का आरोप लगाया गया और भारत सरकार से यह मांग की गयी कि उन्हें शीघ्र ही हिरासत में लिया जाए।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार स्वामी जी के खिलाफ कई कट्टर मुस्लिमों की भीड़ दरगाह बाज़ार में एकत्र हुई एवं एक स्वर में वह मांग कर रहे थे कि स्वामी यति नरसिंहानंद को तत्काल गिरफ्तार किया जाए। इस पूरी भीड़ का नेतृत्व और कोई नहीं बल्कि गद्दी नशीं खादिम सैयद सरवार चिश्ती कर रहे थे।  चिश्ती ने कट्टरपंथियों की इस भीड़ को भडकाते हुए कहा कि स्वामी यति नरसिंहानंद को न केवल तुरंत गिरफ्तार किया जाए बल्कि सख्त से सख्त सजा दी जाए। वह सरकार को भी कोसते हुए नज़र आए कि सरकार क्या कर रही है? क्यों सरकार क़ानून नहीं बनातीं। फिर वह कहते हैं कि हम किसी के मजहब को बुरा नहीं कहते हैं, हिन्दुस्तान में किसी के मजहब को बुरा कहने का किसी को अधिकार नहीं है।

वहां मौजूद भीड़ पूरी तरह से कट्टरपंथी इस्लामियों की भीड़ थी, जिसे किसी भी हाल में यति नरसिंहानंद का सिर चाहिए वह इसके लिए खुद ही हर तरह के कदम उठाने के लिए तैयार है।  पर यह बात सबसे ज्यादा हैरान करने वाली है जिसमें गद्दी नशीं खादिम सैयद सरवार यह कह रहे हैं कि हम किसी मजहब का अपमान नहीं करते। यदि कट्टरपंथी इस्लामी किसी अन्य मजहब का अपमान नहीं करते तो वह यह बात क्यों नहीं मान लेते हैं कि अयोध्या, काशी और मथुरा पर उन्होंने हमारे आराध्यों के मंदिर तोड़कर ही मस्जिदें बनाई हैं। यदि आपको लगता है कि आप किसी मजहब के खिलाफ नहीं बोलते तो इससे बड़ा सफ़ेद झूठ हो ही नहीं सकता है। आए दिन खबरें आती हैं की किसी मुस्लिम युवक ने मंदिर का अपमान किया, मूर्ति खंडित करी या अन्य आपत्तिजनक कार्य किया – क्यों मौलवी या चिश्ती जैसे मुस्लिम मज़हबी नेता उन्हें नहीं समझाते  की मुस्लिम समाज को हिन्दू मंदिरों, मूर्ति पूजा की प्रथा और हिन्दू देवी-देवताओं का आदर करना चाहिए?

भारत में केवल और केवल हिन्दू धर्म के साथ ही हर प्रकार के कलात्मक प्रयोग किये जाते हैं। कभी भी किसी भी प्रगतिशील मुस्लिम की ओर से भी यह आवाज़ नहीं आई कि हमारे मुस्लिम समाज के कलाकार ऐसी किसी भी फिल्म में काम नहीं करेंगे जो हिन्दू धर्म के देवी देवताओं का उपहास करती हुई होगी। जबकि कई ऐसी फ़िल्में जिन्होनें हिन्दू धर्म के खिलाफ लोगों के मन में जहर घोला वह मुस्लिमों द्वारा ही निर्देशित थीं। सलीम-जावेद ने कई ऐसी कहानियां लिखीं जिनमें हिन्दू प्रतीकों का अपमान किया गया और इस्लाम को श्रेष्ठ बताया गया। वैसे हर मज़हब के अनुयायी के लिए उसका मज़हब श्रेष्ठ होता है। और किसी को दूसरे धर्म, मत आदि का अनादर नहीं करना चाहिए, परन्तु दुर्भाग्य से यह हिन्दू धर्म के साथ नहीं हुआ। कला और फिल्मों में हिन्दू धर्म सदा से एक आसान शिकार रहा जिससे यह आम धारणा बन गयी कि आप हिन्दुओं के विरुद्ध तो कुछ भी कह सकते हैं, परन्तु इस्लाम के खिलाफ नहीं!

तथा यह मस्तिष्क में स्थापित तथ्य हो गया। यही कारण है कि आज इस्लाम के विषय में कुछ भी कहने से हल्ला मच जाता है एवं स्वामी यति नरसिंहानंद का सिर कलम करने की भी आवाजें उठाई जाने लगती हैं, वसीम रिजवी का सिर कलम करने की आवाजें उठने लगती हैं।  और यह अतीत में रंगीला रसूल के जमाने से चला आ रहा है। जब वर्ष 1929 में 6 अप्रेल को राजपाल जी की चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी, वह भी एक जिहादी द्वारा।

स्वामी यति नरसिंहानंद आज न ही पहला शिकार हैं और न ही अंतिम। इस असहिष्णुता के कई शिकार होंगे और हो भी चुके हैं, क्योंकि जब बरेली में कट्टरपंथी इस्लामी भीड़ नारा लगा ही चुकी है कि गद्दारे रसूल की सजा, सिर तन से जुदा!

यह सिर वह समय समय पर तन से जुदा करते हुए आए हैं। फ्रांस में सैम्युअल पेटी तो हम सभी को याद होगा ही, जिसका सिर केवल इस बात पर काट दिया गया था कि उन्होंने इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद का कार्टून दिखाया था। जबकि मार्चे में इसी वर्ष बीबीसी के अनुसार यह अफवाह पूरी तरह से गलत थी कि सैम्युअल पैटी ने मुहम्मद का कार्टून दिखाया था। बीबीसी की उस रिपोर्ट के अनुसार लड़की किसी बात से डर गयी थी और उसने झूठ कह दिया था। पर उसके उस झूठ ने कट्टर पंथी इस्लाम की पोल खोल कर रख दी और शान्ति का नारा लगाने वाले लोगों ने जितना विरोध सैम्युअल पेटी पर किया था, उनमें से किसी ने भी बीबीसी की इस खबर पर संज्ञान नहीं लिया।

तो जब कट्टरपंथी इस्लामियों की ओर से यह कहा जाता है कि हम तो शांतिप्रिय हैं, तो वह सबसे बड़ा मजाक है, जब आप अफवाह पर सिर कलम कर सकते हैं तो क्या कहा जाए?

परन्तु यह राहत की बात है कि अब स्वामी यति नरसिंहानंद जी को अपने धर्म के युवाओं का साथ प्राप्त हो रहा है।  परन्तु अजमेर की इस वीडियो के बाद यह प्रश्न उठता है कि क्या आम हिन्दू कभी अजमेर जाने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेगा? या फिर अपनी खून पसीने की कमाई केवल उस दरगाह पर लुटाता हुआ आएगा जो स्वामी यति नरसिंहानंद को मारने की बात कर रही है?


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