हिन्दुओं के त्यौहार आते ही तरह तरह के प्रचार आरम्भ हो जाते हैं, और उसमें स्पष्ट है कि बाजार के नए नए उत्पाद भी नई सज धज के साथ आते हैं और साथ ही आते हैं तमाम प्रचार के वीडियोज! और फिर आरम्भ होता है कि हिन्दू देवी देवताओं एवं त्योहारों को नीचा दिखाने के साथ ही, हिन्दू धर्म की अवधारणाओं पर प्रहार!
ऐसा ही एक वीडियो सामने आया है, और वह है अभिजेत्री देबिना बनर्जी का, जिन्होनें रामायण धारावाहिक में सीता माता की भूमिका निभाई थी।
20 सितम्बर को देबिना बनर्जी ने अपने लोकप्रिय चैनल देबिना डीकोड्स में एक व्लॉग को पोस्ट किया और लोगों क बहुत हैरानी हुई कि उन्होंने अपना मेक अप वीडियो जिन उत्पादों का बनाया है, वह वीडियो हलाल प्रमाणित मेकअप उत्पादों का था। अब जो दुर्गापूजा पूरी तरह से हिन्दू त्यौहार है, उसमें हलाल मेक अप उत्पाद कैसे महत्वपूर्ण हैं और कैसे मायने रखता है, यह प्रश्न देबिना से पूछा जाना चाहिए। परन्तु पूछेगा कौन?
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि बार बार हिन्दू त्योहारों पर हमला होता है, कभी किसी प्रकार से, तो कभी किसी प्रकार से! हर वर्ष दुर्गापूजा आते ही या फिर कोई भी त्यौहार आते ही सबसे पहले जाने अनजाने में या कहें कंडिशनिंग के चलते उसमें मुस्लिम झ्लक खोजी जाने लगती है। जैसे रक्षाबंधन की परम्परा को तो हुमायूं और कर्णावती की ही कहानी बना दिया गया है।
इसी प्रकार होली आदि को अकबर एवं जहांगीर आदि के साथ जोड़ा गया है। और पिछले कुछ वर्षों से दुर्गापूजा के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है, दुर्गापूजा के हिन्दू स्वरुप को मारने के लिए पूजाफॉरआल का ट्रेंड चलाया जाता है, और पिछले वर्ष जब बांग्लादेश में दुर्गापूजा के दौरान हिन्दुओं को मारा जा रहा था, तब भी भारत में पूजाफॉरआल का ट्रेंड चलाया जा रहा था।
परन्तु यह, कि हिन्दू पर्व पर हलाल उत्पादों को प्रमोट करना, यह एकदम ही चौंकाने वाला है क्योंकि यह सीधे सीधे हिन्दुओं पर उस कट्टरपंथ इस्लाम का हमला है, जिसके इकोसिस्टम में हिन्दू है ही नहीं क्योंकि यह केवल और केवल एक इस्लामिक प्रक्रिया है। इस्लामिक प्रमाणपत्र है। वह यह भी कह रही है कि यह ईबा कास्मेटिक पेटा से प्रमाणित है।
हिन्दू त्योहारों के प्रति पेटा का रुख क्या है, यह सभी को पता है, फिर भी न जाने क्यों, देबिना को यह बताना महत्वपूर्ण लगा कि पेटा प्रमाणित होने का ढोल पीटा जाए! क्या यह एक प्रकार की हीनता है, जो हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग में कूट कूट कर भरी है, जिसमें उन्हें हिन्दू विरोधियों से ही अपने लिए प्रमाणपत्र चाहिए।
क्या है हलाल आतंकवाद?
हलाल प्रमाणन को लेकर बहुत ही शोर मचा हुआ है और गैर मुस्लिम इसका विरोध करते हुए पाए जाते हैं। आखिर ऐसा क्या है जो इसे लेकर इसका विरोध होता है? क्या होता है हलाल प्रमाणन? क्या है हलाल व्यवस्था? हलाल इंडिया के अनुसार हलाल उत्पाद वही है जिसे इस्लामी क़ानून अर्थात शरिया के अनुसार बनाया जाए
हलाल व्यवस्था के विषय में रवि रंजन सिंह बहुत विस्तार से बताते हैं। वह कहते हैं, कि किसी भी भोज्य पदार्थ, चाहे वे चिप्स क्यों न हों, को ‘हलाल’ तभी माना जा सकता है जब उसकी कमाई में से एक हिस्सा ‘ज़कात’ में जाए – जिसे वे जिहादी आतंकवाद को पैसा देने के ही बराबर मानते हैं, क्योंकि हमारे पास यह जानने का कोई ज़रिया नहीं है कि ज़कात के नाम पर गया पैसा ज़कात में ही जा रहा है या जिहाद में। और जिहाद काफ़िर के खिलाफ ही होता है!
अर्थात देबिना जिस मेकअप उत्पाद का उल्लेख कर रही हैं, वह हलाल प्रमाणित है अर्थात उसकी कमाई से एक हिस्सा जकात में जाता है और जिसके विषय में कहा जता है कि उसका प्रयोग जिहाद के लिए किया जाता है! यह समझना कठिन नहीं है कि आखिर जिहाद किनके विरुद्ध होता है!
अर्थात हिन्दू कहीं न कहीं अपने विनाश की कामना करने वाले प्रमाणन वाले उत्पादों का प्रयोग करे, ऐसा देबिना चाहती हैं। रवि रंजन सिंह झटका मांस आन्दोलन चलाने वाले मुख्य व्यक्ति हैं एवं हलालार्थव्यवस्था पर व्याख्यान देते हैं।
कुछ महीनों पहले ही कर्नाटक में हलाल मांस को लेकर भी यही बात आई थी और सीटी रवि ने भी यही कहा था कि हलाल मांस का व्यापार एक प्रकार का आर्थिक जिहाद है क्योंकि हलाल मांस की अवधारणा का अर्थ है कि वह खुद में ही व्यापार करते हैं:
अब देबिना से पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्हें अपने व्लॉग के लिए वह दर्शक चाहिए जो हलाल में विश्वास रखते हैं, तो फिर प्रश्न उठता है कि क्या हलाल व्यवस्था वाले लोग पूजा में विश्वास रखते हैं? और यह प्रश्न तो देबिना से भी पूछा जाना चाहिए कि जब उन्हें माँ सीता की भूमिका निभाने के बाद हिन्दुओं से ही प्रसिद्धि मिली एवं हिन्दुओं के कारण ही उन्हें यह पहचान मिली है कि वह किसी भी प्रोडक्ट का चेहरा बन सकें, तो फिर उन्होंने हिन्दुओं के साथ ऐसा घात क्यों किया?
क्या यह हिन्दुओं का दुर्भाग्य है कि जिसे भी वह आदर देते हैं, जिन्हें वह पहचान देते हैं, वही आकर उनके कातिलों के साथ खड़े हो जाते हैं? क्या छल ही हिन्दुओं की नियति है? देबिना को देखकर एक बार फिर यही प्रतीत हुआ!