कानपुर देहात में कृष्णगोपाल दीक्षित अब मौन हैं, वह शोक के ऐसे सागर में चले गए हैं, जहां से वापस आना अब संभव नहीं हैं। प्रशासन ने आग बुझाने का प्रयास नहीं किया और मौन खड़ा रहा! स्त्रियाँ जान देने की बात करती रहीं और प्रशासन जान देते हुए देखता रहा। प्रशासन इस सीमा तक संवेदनहीन था, कि देहों की गंध को सूंघता रहा और फिर उस पर कहानी बनाता रहा!
यह प्रशासनिक निर्ममता के साथ ही विमर्श के दूसरे छोर पर खड़े उस वर्ग की कहानी भी है जो पीड़ित होते हुए भी अपनी पीड़ा की व्यथा इसलिए नहीं कह सकता क्योंकि उसे जातिगत विमर्श ने सबसे बड़ा अपराधी घोषित कर रखा है, क्योंकि उसे बहुत आराम से जातिसूचक गालियाँ दी जा सकती हैं क्योंकि उसे बहुत आराम से किसी भी कांड के लिए कोसा जा सकता है, क्योंकि उसे किसी भी अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है!
यह विमर्श के उस छोर पर खड़े हुए वर्ग की ही कहानी है कि वह अछूत खड़ा है! उस पर हुए अन्याय पर आप उस संवैधानिक पहचान की बात नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा करते ही आप पर आरोप आएगा कि आप जातिवाद फैला रहे हैं, परन्तु शेष पर आप कर सकते हैं। फिर भी यह जाति की बात से कहीं अलग होकर प्रशासनिक नृशंसता का मामला है। दो स्त्रियाँ जलती रहीं और प्रशासनिक मशीनरी देखती रही! यह कैसे हो सकता है?
वीडियो उभर कर आ रहे हैं। और जो आ रहे हैं, वह यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि हुआ क्या है? कथित रूप से अतिक्रमण हटाने आई मशीनरी दो जीवित स्त्रियों को लाश बनते देख रही है।
आइये देखते हैं कि क्या हुआ है:
कानपुर देहात में अधिकारी और पुलिस अधिकारी सोमवार को ‘अवैध अतिक्रमण’ हटाने के लिए पहुंचे। जैसे ही अधिकारी दरवाजा तोड़ते हैं, झोपड़ी में आग लग जाती है। हालांकि कथित नियमों के पाबन्द अधिकारियों ने नेहा और प्रमिला की चीखें सुनाई देने के बावजूद जलती हुई झोपड़ी पर बुलडोजर चलाना जारी रखा।
पुलिस और सरकारी अधिकारियों के सामने नेहा और प्रमिला जीवित ही राख बन गईं, जबकि प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल गंभीर रूप से झुलस गए। एक अन्य वीडियो में प्रमिला के बेटे रोते हुए कह रहे हैं कि “वह मेरी माँ है जो जल रही है”। वहीं एक और वीडियो में दिखाया गया है कि अधिकारी ने मंदिर को तोड़ दिया और पवित्र शिवलिंग को स्थानांतरित करने की भी आवश्यकता नहीं समझी गयी!
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए परिवार से बात की और उनकी सभी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया।
हालांकि यह घटना सोमवार को हुई, लेकिन जब तक आयुक्त राज शेखर परिवार के सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिले और अनुरोध नहीं किया कि शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाने की अनुमति दी जाए, लोगों ने विरोध प्रदर्शन जारी रखा। हिंदू महासभा, ब्राह्मण महासभा, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल प्रशासन के खिलाफ विरोध कर रहे ग्रामीणों में शामिल हो गए।
दिन दहाड़े हुए इस जघन्य हत्याकांड ने ग्रामीणों को आक्रोशित कर दिया और फिर उन्होंने आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की। इसे लेकर मैथा एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद, रूरा एसएचओ दिनेश गौतम और लेखपाल अशोक सिंह सहित 39 लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है। लेखपाल अशोक सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। वहीं, डिविजनल कमिश्नर राजशेखर ने बताया कि मैथा तहसील के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को भी निलंबित कर दिया गया है।
हालांकि प्रशासन द्वारा 13 फरवरी को जारी किए गए पत्र में यह दावा किया गया था कि कृष्ण गोपाल दीक्षित एक स्थानीय दबंग हैं, जिन्होनें सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है। पत्र के अनुसार कृष्ण गोपाल ने एक अस्थाई निवास एवं शिव लिंग का निर्माण 18 जनवरी को कर लिया था। परन्तु यह कहीं न कहीं हास्यास्पद दावा ही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि यदि कोई दबंग होगा तो क्या वह अपने परिजनों को ऐसे ही जल जाने देगा?
फिर भी कोई भी कार्यवाही इस प्रकार की जघन्य घटना और प्रशासन द्वारा की गयी असंवेदनशीलता को सही नहीं ठहरा सकती है। जबकि वीडियो में यह दिख रहा है कि सारा प्रशासनिक अमला वहां पर मौजूद है, तो क्या उन स्त्रियों को रोका नहीं जा सकता था? क्या उन्हें आग से बचाया नहीं जा सकता था? क्या आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण नहीं दिया गया था? वहीं कानपुर देहात की जिला मजिस्ट्रेट कहीं पर मनोरंजन करती हुई दिखाई दी थीं, उन्होंने सहायता मांगने आए दीक्षित परिवार को भगा दिया था।
वहीं इस भीषण घटना से पहले प्रमिला दीक्षित के एक वीडियो में, वह यह कहती हुई दिखाई दे रही हैं कि केवल उनकी ही संपत्ति को नष्ट कर दिया गया था जबकि अन्य घरों आदि को अछूता छोड़ दिया गया था। इस वीडियो में वह लेखपाल पर रिश्वत लेने का भी आरोप लगाती दिख रही हैं।
कृष्ण गोपाल के पुत्र शिवम दीक्षित ने कानपुर देहात के डीएम, एसडीएम और लेखपाल सहित कई अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपनी मां और बहन की झोपड़ी में आग लगाकर हत्या करने का आरोप लगाया।
कृष्ण गोपाल ने कहा कि लेखपाल और अन्य अधिकारी किसी गौरव दीक्षित के साथ मिले हुए थे और उनके इशारे पर काम कर रहे थे। कई ग्रामीणों ने लेखपाल पर रिश्वत मांगने का आरोप भी लगाया है। वहीं यह प्रश्न उठता ही है कि आखिर क्या लेखपाल इतना शक्तिशाली है कि वह यह सब कर सके?
यूपी में योगी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में महिला कल्याण मंत्री प्रतिभा शुक्ला ने कहा “एक महीने पहले हम परिवार से मिले और उन्हें आश्वासन दिया कि उनका घर सुरक्षित कर लिया जाएगा। मैंने डीएम नेहा जैन से बात की जिन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वह इस मामले को देख लेंगी। उसके बाद, मुझे परिवार से कोई अनुरोध नहीं मिला। लेकिन अब मुझे पता चला है कि जैन ने उन्हें भगा दिया”। पूरे मामले में डीएम जैन की भूमिका की ओर इशारा करते साक्ष्य भी सामने आए हैं। यह सारी कार्यवाही डीएम जैन के आदेश पर आरम्भ ही कहा जा रहा है कि शुरू की गयी थी।
यह मामला घटना उदाहरण है कि कैसे अधिकारी स्वयं ही सरकार बन जाते हैं! और लगभग हमेशा गरीब हिंदू ही इस व्यवस्थागत भेदभाव और भ्रष्टाचार के शिकार होते हैं क्योंकि हमने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं जहां मुस्लिम अतिक्रमणकारियों द्वारा हिंसा की गई है जिन्हें हिंदू विरोधी न्यायपालिका द्वारा छुआ तक नहीं जाता है।
इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एसआईटी की घोषणा कर दी गयी है:
कानपुर देहात प्रशासनिक प्राधिकरण के हर दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देना ही दीक्षित परिवार को न्याय दिलाने का एकमात्र तरीका है!