मुग़ल-ए-आजम के प्रेमिल और स्नेहिल सलीम और शेखू के चेहरे के पीछे क्या था, यह हमने जाना ही है। मगर अब व्यक्तिगत क्रूरता और सनक के बारे और कुछ ज्यादा जानते हैं। नूरजहाँ एम्प्रेस ऑफ मुग़ल इंडिया में एलिसन बैंक्स फ़िडली उसके व्यवहार के बारे में लिखते हैं और उसकी क्रूरता के बारे में बताते हैं। वह लिखते हैं कि जहाँगीर के व्यवहार में सबसे अजीब उसकी क्रूरता थी। उसे लोगों को दर्द में देखकर मजा आता था, और वह अपनी सनक के आधार पर ही लोगों को सजा देता था। और साथ ही अपनी कल्पना को संतुष्ट करने के लिए ही वह अपनी क्रूरता के कामों को प्रशंसा से देखता था।
वह लिखते हैं कि सबसे ज्यादा परेशान करने वाला तथ्य यह था कि उसकी सजा देने का इकलौता सिद्धांत था कि जब उसका खुद का कोई विचार खंडित होता था।
फिर वह उदाहरण देते हैं कि एक बार उसने कुछ चम्पा के पेड़ों को नीचे काटने पर एक नौकर के अंगूठे को काट दिया था क्योंकि वह चम्पा के पेड़ नदी के किनारे लगी बेंच से ऊंचे हो गए थे, तो छंटाई करते समय उन पेड़ों को उस नौकर ने कुछ ज्यादा काट दिया था, जिसके कारण जहांगीर को बुरा लगा और उसे लगा कि उस जगह की सुन्दरता में कमी आ गयी। इसलिए उसने उस नौकर के अंगूठों को ही कटवा दिया था।
दूसरी घटना वह जिसका उल्लेख करते हैं वह है कि नूरजहाँ की एक बूढ़ी कनीज को केवल इसलिए तीन दिनों तक बांधकर एक गड्ढे में धूप में रखा था क्योंकि उसने एक हिजड़े को चुम्बन कर लिया था। उसने आदेश दिया था कि उस औरत को एक गड्ढे में बांहों तक गाढ़ कर रखा जाए, और तीन दिनों तक उसे भूखा प्यासा रखा जाए, अगर वह तीन दिनों तक जिंदा रह जाती है तो उसे माफी मिलेगी” मगर वह डेढ़ ही दिनों में मर गयी थी। और मरने से पहले वह “ओह मेरा सिर, ओह मेरा सिर” चीखती रही थी।
वह जहाँगीर की रखैल भी रह चुकी थी, मगर चूंकि अब उसकी उम्र तीस से अधिक हो गयी थी तो वह दूसरे कामों में लग गयी थी। और उसका अपराध यही था कि उसने एक हिजड़े का चुम्बन ले लिया था।
दुःख होता है यह देखकर कि ऐसे अय्याश और घटिया मानसिकता वाले इंसान को हमारे इतिहासकारों ने प्यार का मसीहा बनाकर पेश कर दिया, जिसके भीतर इस हद तक औरतों को गुलाम मानने की आदत हो कि रखैल किसी और को चुम्बन भी नहीं ले सकती, उसे औरतों की इज्जत करने वाला बनाकर हमारे इतिहासकारों और फिल्म निर्माताओं ने पेश किया।
जहाँगीर की सनकीपन वाली क्रूरता का एक किस्सा और है कि उसने मात्र चीनी मिट्टी के बर्तन टूटने पर लोगों को पिटवाया था और मरवा दिया था। और इतना ही नहीं, उसने दो ऐसे अर्मीनियाई बच्चों को जबरन मुसलमान बनने को बाध्य किया था जो ईसाई थे और उसने उनका खतना जबरन कराया था और साथ ही उन्हें सुअर का मांस खाने के लिए बाध्य किया था।
वह उन नौकरों को मरवा देता था, जो उसके शिकार में जरा भी ध्यान भटकाते थे।
इसी पुस्तक में आगे लिखा है कि टेरी के अनुसार “जब वह दुष्टता पूर्वक कोई कदम उठाता था तो उससे दुष्ट कोई नहीं हो सकता था और वह अपने जूनून और इच्छा के कारण ही मौत की सजा सुनाता था, न कि न्याय के लिए।”
एक और घटना वह हॉकिन्स के हवाले से लिखते हैं कि वर्ष 1612 में जहाँगीर अपने सात साल के बेटे शहरयार को, यह देखने के लिए मार रहा था, कि वह रोता है या नहीं। जब वह नहीं रोया, तो जहाँगीर का गुस्सा और भी बढ़ गया और वह बच्चे को और तेज मारने लगा।
पिछले लेख में लिखा ही है कि उसने अपने बेटे खुसरो को ही अंधा कर दिया था, क्योंकि उसके बेटे ने उसके खिलाफ विद्रोह किया था।
जहाँगीर ने वराहअवतार की प्रतिमा केवल इसलिए तुड़वा दी थी क्योंकि उसे वह देखने में बदसूरत लगी थी।
युद्ध में जो हत्याएं हुईं, यह हत्याएं उनसे अलग थीं और कनीज वाली तो सबसे भयावह! वामपंथी जिस पितृसत्ता का रोना रोते हैं और आदमियों द्वारा किए गए औरतों के शोषण की बात करते हैं, यह घटना उसका उदाहरण है कि जहाँगीर ने खुद उस औरत को रखैल रखा, और जब वह बेकार हो गयी तो उसे यह भी अधिकार नहीं कि वह किसी हिजड़े को भी चूम सके, फिर भाव कोई भी हो? यह औरतों को अपना गुलाम मानने की भावना थी, जिसने उस औरत को इस हद तक दर्दनाक मौत दी। मगर औरतों को गुलाम मानने वाले इस जहाँगीर को वामपंथी प्यार करते है और इतना प्यार करते हैं कि वह अब तक झूठा इतिहास ही नहीं, झूठा साहित्य भी पढ़ाते हुए आए और हमारे बच्चों को भी गुलामी मानसिकता का आदी बनाते हुए आए!
परन्तु दुःख की बात यह है कि ऐसे जाहिलों को कोई भारत का निर्माता कह देता है तो कोई उनका महिमामंडन करने के लिए फ़िल्में बनाता है और हमारे बच्चे आज तक “जब प्यार किया तो डरना क्या” जैसे गानों पर नाचते हैं और हमारी लडकियां अनारकली बनकर खुश होती हैं!
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