भारत इस समय कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है, खालिस्तान अभियान कुछ सबसे कठिन और संवेदनशील समस्याओं में से एक है जो देश के आगे मुँह बाए खड़ी है। पिछले कुछ वर्षों से खालिस्तान एक बार फिर से सिर उठा रहा है, केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में देशभर में हुए धरने प्रदर्शन का उपयोग कर खालिस्तानियों ने एक बार फिर से अपनी जमीन बनाने की कोशिश की है। खालिस्तानी आतंकवादी संगठनो का एक ही उद्देश्य है, कथित रूप से सिखों के लिए अलग मातृभूमि बनाना, जिसे वह लोग खालिस्तान के नाम से जानते हैं।
हालांकि विडम्बना यह है कि उन्हें मात्र भारत के हिस्से का पंजाब चाहिए, जो पंजाब विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से चला गया था, उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है। खालिस्तानी आतंकवादी अपने इस सपने के लिए पिछले 30-40 वर्षों से कई आतंकवादी हमले करवा चुके हैं, हजारों लोगो की जान ले चुके हैं। 80 और 90 के दशक में पंजाब और केंद्र सरकार के कड़े क़दमों से खालिस्तान आंदोलन और इसके तत्वों का भारत से सफाया कर दिया गया था, लेकिन खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन करने वाले और इसका नेतृत्व करने वाले तत्व कनाडा,इंग्लैंड, और अमेरिका जैसे देशों से इस भारत विरोधी हिंसक आंदोलन को आज तक संचालित करते हैं।
पिछले कुछ समय से खालिस्तानी आतंकवादी और प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे), खालिस्तान नामक देश बनाने के लिए एक जनमत संग्रह करवाने का प्रयास कर रहे हैं। पहले इन्होने इसका नाम रेफेरेंडम-2020 रखा था, लेकिन कोरोना के कारण इनके प्रयास सफल नहीं हो पाए। किसान आंदोलन के समय भी इन्होने जनमत संग्रह कराने की बात करी थी, उसके पश्चात पंजाब और हिमाचल में इस तरह के जनमत संग्रह के पोस्टर और अन्य साहित्य भी देखने को मिले हैं।
अब खालिस्तानियों कनाडा में जनमत संग्रह कराने के लिए एक अभियान शुरू किया है, जिसके कारण ओंटारियो राज्य के ब्रैम्पटन शहर में स्पष्ट तनाव व्याप्त हो गया है। प्रतिबंधित भारत विरोधी आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) के कार्यकर्ता विभिन्न गुरुद्वारों के प्रवेश द्वार पर आने जाने वालों को खालिस्तानी साहित्य और जनमत संग्रह से सम्बंधित पात्र वितरित कर रहे हैं। वह भारतीयों, विशेष रूप से पंजाबियों को ब्रैम्पटन के एक सामुदायिक केंद्र में 18 सितंबर को होने वाले ‘जनमत संग्रह’ में भाग लेने के लिए कह रहे हैं।
स्थानीय पंजाबी समुदाय खालिस्तानियों के विरोध में खड़ा हो गया है
इस कदम का भारत समर्थक कनाडाई समुदाय कड़ा विरोध कर रहा है। वहां के एक स्थापित सामुदायिक अधिवक्ता और राजनेता आजाद सिंह गोयत के नेतृत्व में स्थानीय पंजाबी उठ खड़े हुए हैं, और खालिस्तानियों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग पर आपत्ति जताई है जो जनमत संग्रह की तारीख और स्थान को प्रचारित करने के लिए पोस्टर लगा रहे हैं या प्रचार कर रहे हैं।
गोयत ने प्रशासन और पुलिस को चेतावनी देते हुए कहा है कि जल्दी ही जनमत संग्रह अभियान की सामग्री को सार्वजनिक संपत्तियों से हटा दिया जाए, अन्यथा वह इन अवैध संकेतों को हटाने के लिए लोगों के सहयोग से सीधी कार्रवाई अभियान शुरू करेंगे।
वहीं जनमत संग्रह की गतिविधियों में लिप्त खालिस्तानी हरजिंदर सिंह पहरा का कहना है कि गोयत जैसे लोग समुदाय में टकराव पैदा करने का प्रयत्न कर रहे हैं। पहरा कहते हैं कि वह शांतिपूर्वक अपना कार्य कर रहे हैं और उन्हें स्थानीय समुदाय का भारी समर्थन भी मिल रहा है। उनके अनुसार पंजाब समुदाय को मतदान करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा।
कनाडा के लोकप्रिय ओमनी टीवी चैनल के लिए कार्य करने वाले पंजाबी पत्रकार जेपी पंढेर का कहना है कि प्रशासन और पुलिस तभी कार्रवाई कर सकती है जब दोनों पक्षों में से किसी की ओर से शांति भंग हो। वह इस बात से सहमत हैं कि खालिस्तानी जनमत संग्रह को प्रचारित करने के लिए कानूनी रूप से सार्वजनिक संपत्ति का उपयोग नहीं कर सकते हैं। वह प्रोपराइटरों की लिखित सहमति लेने के बाद ही मात्र निजी सम्पत्तियो पर ही पोस्टर और साइनबोर्ड चिपका सकते हैं।
विदेशी गुरुद्वारों पर है खालिस्तानियों का प्रभुत्व
यह सर्वविदित है कि विदेशों के लगभग सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन धीरे-धीरे कट्टरपंथियों और खालिस्तानियों के नियंत्रण में आ गया है। यह लोग अपने बाहुबल से प्रबंधन समितियों का गठन करने के लिए चुनाव जीतते हैं। यह लोग गुरुद्वारों का उपयोग भारत विरोधी विचारों का प्रचार करने के लिए करते हैं। अधिकांश सिख सशस्त्र खालिस्तानियों के सामने खुद को असहाय पाते हैं, क्योंकि यह तत्व हिंसा में भी लिप्त होते हैं, और इनका विरोध करने वालों को कई तरह के संकटों से दो चार होना पड़ता है।
एसएफजे ने इससे पहले अमेरिका और ब्रिटेन के कुछ शहरों में भी ‘खालिस्तानी जनमत संग्रह’ कराया था। जैसा कि अपेक्षित था, इनके जनमत संग्रह के घोषित परिणाम बहुसंख्यकों को खालिस्तान के निर्माण के पक्ष में दिखाते हैं। जनमत संग्रह का उद्देश्य खालिस्तान के निर्माण का समर्थन करने वाले मतदाताओं का डेटा एकत्र करना और इसे संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तुत कर उनका समर्थन लेने का प्रयास करना है।