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Sunday, October 6, 2024

हिन्दू लड़कियों का इस्लाम में जाना: साज़िश या प्रक्रिया?

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में लव जिहाद या कहें ग्रूमिंग जिहाद का एक अत्यंत सनसनीखेज मामला सामने आया, जिसमें शादी से केवल तीन दिन पहले ही एक मुस्लिम लड़का एक हिन्दू लड़की को भगाकर ले गया। और अब लडकी वालों को डर है कि कहीं उनकी बेटी का धर्म न बदल दिया जाए। इधर उत्तर प्रदेश एटीएस इस्लाम में मतांतरित किए जाने वाले रैकेट में रोज़ नए खुलासे कर रही है।

एक और मामले में पता चला है कि एक लड़की ने केवल इसलिए धर्म बदल लिया क्योंकि उसे दुबई में नौकरी मिलने में आसानी हो जाएगी। दिल्ली एयरपोर्ट पर काम करने वाली रेनू गंगवार ने अपना धर्म बदल लिया है और अब वह आयेशा अल्मी है। रेनू गंगवार ने कहा कि उसने दुबई में जॉब करने के लिए अपना धर्म बदल लिया है। चूंकि उसने दुबई एयरपोर्ट पर नौकरी के लिए आवेदन किया है, और वहां पर मुस्लिम लड़कियों को ज्यादा लाभ दिए जाते हैं। इसलिए उसने यह कदम उठाया है।

यह बेहद हैरान करने वाला मामला है, क्योंकि इसमें केवल नौकरी का लालच शामिल है, इसमें भौतिक स्तर सुधारने का लालच है। वहीं लखनऊ से ही 25 जून को एक अजीब मामला सामने आया था जिसमें एक युवक ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि एक मुस्लिम युवक उसकी पत्नी को भगा ले गया है और साथ ही उसकी पत्नी का धर्म परिवर्तन कर दिया है, एवं उसके गहने और पैसे आदि लेकर भाग गया है।

ऐसे एक नहीं कई मामले आते हैं, उनमें से अधिकतर यही बात कही जाती है कि बहला फुसला लिया गया, ब्रेन वाश कर लिया गया, परन्तु फिर वही प्रश्न उभरकर आते हैं कि क्या ब्रेन वाशिग केवल एक दिन, या एक महीना की बात है या फिर एक लम्बा प्रोसेस है?

आज कुछ ऐसे कारणों पर हम नज़र डालेंगे जिसके कारण लड़कियों के मन में इन कथित इंसानियत के आशिकों के लिए प्यार उपजता है। और यह कोई एक दिन या एक सप्ताह की बात नहीं बल्कि एक लम्बी प्रक्रिया है, जो शायद उसके होश सम्हालते ही आरम्भ हो जाती है।

गाने और कविता निभाते हैं सबसे बड़ी भूमिकाएं:

किसी भी परिवार में मनोरंजन के लिए या तो गाने सुने जाते हैं, या फिर किताबें पढ़ी जाती हैं। हमने कई बार उल्लेख किया है कि एनसीईआरटी की पुस्तकों में हिन्दू धर्म को नीचा दिखाते हुए बहुत कुछ सम्मिलित किया गया है। परन्तु पाठ्यपुस्तकों से इतर भी जो कविताएँ या कहें नज़्म पढ़ी जाती है, वह समाज के लिए कितनी घातक होती हैं, उन्हें सहज समझना सरल नहीं होता। यही नज़्म बच्चे सुन कर या पढ़कर बड़े होते हैं, तो अपने धर्म के प्रति हल्कापन उनकी प्रवृत्ति में सम्मिलित हो जाता है।

आम तौर पर यह देखा गया है कि मनुस्मृति के एक दो श्लोकों को आधार मानते हुए वृहद स्तर पर धारणा बनाई गयी कि भारतीय स्त्रियाँ बहुत ही पिछड़ी हुआ करती थीं। उन्हें जरा भी अधिकार नहीं थे एवं उन्हें शिक्षा नहीं प्राप्त करने की जाती थी आदि आदि! एवं उसी आधार पर एक बड़े वामपंथी साहित्य की शुरुआत हुई जिसमें कुछ कविताएँ बहुत ही लोकप्रिय हुईं जैसे

“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,

आंचन में है दूध और आँखों में पानी!”

तथा

“मैं नीर भरी दुःख की बदली,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली!”

लड़की के मन में यह अवधारणा बनने लगती है कि हिन्दू धर्म में तो स्त्रियों के साथ बहुत अन्याय होता है। जो सशक्त चरित्र थे उन्हें एकदम रोता हुआ हमारी लड़कियों के सामने प्रस्तुत किया गया, और वह भी इन कविताओं के माध्यम से!

आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव:

चूंकि हिन्दू लड़की के सामने कोई आध्यात्मिक आदर्श या मॉडल नहीं होता है तो वह उस विमर्श को स्वतंत्रता का पर्याय मान लेती जहां से औरतों की गुलामी आरम्भ हुई। जहाँ पर औरतों को इंसान ही नहीं माना जाता था। सबसे मजे की बात यह है कि एक यह धारणा कि स्त्री इसलिए पुरुष से कमतर है, क्योंकि गॉड से उसे पुरुष की पसली से बनाया है और उसका मुख्य कार्य पति को प्रसन्न करना है, पूरी तरह बाइबिल की अवधारणा है।  इसी अवधारणा पर जो स्त्रीवाद है, उसी आधार पर बनी कवितायेँ हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, जबकि मनुस्मृति के अनुसार जब सृष्टि का सृजन हुआ एवं जब भगवान ने सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए विचार किया तो ब्रह्म जो कि स्वयं ही एक दाने के रूप में था उसने स्वयं अर्धनारीश्वर का रूप लिया। मनुस्मृति में लिखा है

द्विधा कृत्वा-अत्मनो देहम अर्धेन पुरुषो अभवत, अर्धेन नारी तस्यां स विराजम असृजत प्रभु: 1-32 मनुस्मृति

अर्थात अपनी स्वयं की देह को विभाजित करते समय प्रभु आधे पुरुष एवं आधे नारी में परिवर्तित हो गए।

जबकि बाइबिल में लिखा है कि

पुरुष और स्त्री को परमात्मा ने अपनी छवि से बनाया, अर्थात पहले पुरुष को बनाया और फिर उसके लिए स्त्री को बनाया,

हमारे धर्म में मनुष्य को स्वर्ग से बाहर किसी स्त्री के कारण नहीं होना पड़ा, परन्तु जहां से कथित स्त्री विमर्श उत्पन्न होकर पूरी दुनिया में फैला वहां के धार्मिक ग्रन्थ में यह लिखा है सांप के बहकावे में आकर स्त्री ने जो फल चखा और पुरुष को चखने को विवश किया, उस कारण पुरुष को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया गया।

एवं जो प्रसव है उसकी पीड़ा शापित है।

दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे बच्चे साहित्य की उन रचनाओं को ही पढ़ते हैं, जो मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को स्त्री विरोधी बताती हैं और वास्तविक स्त्री विरोधी वामी, इस्लामी और ईसाई साहित्य उनके जीवन का अंग बन जाता है। तो यह समझना होगा कि हिन्दू लड़कियों को इस्लाम और ईसाइयत की ओर धकेलने का कुचक्र तो बचपन से ही आरम्भ हो जाता है।

*हम इस श्रृंखला को निरंतर रखेंगे, ताकि शेष कारकों पर बात कर सकें


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