देश भर में इस्लामिक वक्फ बोर्ड के बारे में इस समय बहुत चर्चा हो रही है, यह एक ऐसी इस्लामिक संस्था है जिस पर लाखों एकड़ भूमि पर अवैध कब्ज़ा करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। पिछले ही दिनों हमने देखा है कि कैसे वक्फ बोर्ड ने तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में 7 हिंदू बहुल गांवों और 1500 साल पुराने एक मंदिर के स्वामित्व का दावा किया है, और स्थानीय लोगों को अपनी भूमि खरीदने और बेचने से पहले वक्फ बोर्ड से अनुमति प्रमाण पत्र लेने पर विवश किया जा रहा है।
इसके पश्चात देश भर में वक्फ बोर्ड को दी गयी असीमित शक्तियों को समाप्तः करने और इसे तुरंत प्रभाव से प्रतिबंधित करने की मांग उठने लगी है। जब यह विवाद चल रहा है, इसी मध्य यह जानकारी मिली है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले दिल्ली के लुटियंस इलाके में 123 अत्यंत महत्वपूर्ण और सैंकड़ो करोड़ मूल्य की सरकारी संपत्तियों को वक्फ को उपहार में दिया था। प्रमुख समाचार चैनल टाइम्स नाउ के अनुसार, यह निर्णय तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कैबिनेट द्वारा लिया गया था।
उस समय लोकसभा चुनावों की तैयारियां चल रही थी, और चुनावों से कुछ ही दिन पहले एक गुप्त नोट के माध्यम से इस निर्णय के बारे में सबको अवगत कराया गया था। ये संपत्तियां दिल्ली के अतिमहत्वपूर्ण और महंगे इलाकों जैसे कनॉट प्लेस, अशोक रोड, मथुरा रोड और अन्य वीवीआईपी एन्क्लेव जैसे प्रमुख स्थानों पर स्थित हैं।
टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली वक्फ बोर्ड के पक्ष में 123 सरकारी संपत्तियों की पहचान करने के लिए किसी भी प्रकार की प्रक्रिया का पालन नहीं किया, मात्र एक फोन कॉल पर यह निर्णय ले लिया गया था। समाचार चैनल ने एक गुप्त नोट भी साझा किया, जो 5 मार्च, 2014 का है, और तत्कालीन अतिरिक्त सचिव जेपी प्रकाश द्वारा हस्ताक्षरित है।
क्या लिखा है उस गुप्त नोट में?
शहरी विकास मंत्रालय के सचिव को संबोधित नोट में कहा गया है, ‘भूमि एवं विकास कार्यालय (एलएनडीओ) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के नियंत्रण में दिल्ली में 123 संपत्तियों की अधिसूचना रद्द करने से औपचारिक ब्योरा जारी होने तक मंत्रालय को सूचित किया जाए। टाइम्स नाउ के अनुसार, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने 27 फरवरी, 2014 को भारत सरकार को एक पूरक नोट लिखा था, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में 123 प्रमुख संपत्तियों पर अपना दावा किया गया था।
महत्वपूर्ण और चौकानें वाली बात यह है कि प्रस्ताव मिलने के एक सप्ताह के भीतर, बिना किसी प्रक्रिया का पालन किये ही यूपीए कैबिनेट द्वारा ‘गुप्त नोट’ जारी किया गया था। समाचार चैनल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक नोटिस का भी पता लगाया, जिसमें कहा गया है, “केंद्र सरकार निम्नलिखित शर्तों के अधीन एलएनडीओ और डीडीए के नियंत्रण में उल्लिखित इन वक्फ संपत्तियों से नियंत्रण वापस ले रही है।
कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया में स्वीकार किया कि 123 संपत्तियां दिल्ली वक्फ बोर्ड की ही हैं, और बोर्ड द्वारा एक नोट दिए जाने के पश्चात उन्होंने तुरंत उन सम्पत्तियों से अपना स्वामित्व वापस लेने का निर्णय कर लिया था। यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि उक्त संपत्तियां ब्रिटिश सरकार से विरासत में मिली थीं और 5 मार्च, 2014 तक उनकी स्थिति अपरिवर्तित रही।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अधिसूचना रद्द करने की प्रक्रिया जल्दबाजी में की गयी, आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे यह जानकार कि यह काम आदर्श आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले किया गया था। 123 संपत्तियों में से 61 एलएनडीओ के स्वामित्व में थीं, जबकि शेष 62 संपत्तियां डीडीए के स्वामित्व में थीं, और इन सबको को वक्फ बोर्ड को दे दिया गया था।
मोदी सरकार ने इस सम्पत्तियों को वापस लेने के लिए कार्यवाही शुरू की,लेकिन काम अभी भी अधूरा
फरवरी 2015 की शुरुआत में, प्रधानमन्त्री मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को सरकारी संपत्तियों को उपहार में देने के निर्णय की जांच करवाने का निर्णय किया। वहीं दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इस निर्णय के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
विश्व हिन्दू परिषद् ने तर्क दिया था कि बेशकीमती संपत्तियों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 48 के अंतर्गत इस प्रकार से जारी और पहचाना नहीं जा सकता है। इस बारे में बोलते हुए तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा था कि, ‘मुझे सलमान खुर्शीद के खिलाफ एक प्रतिवेदन मिला है, पिछले साल पद छोड़ने की पूर्व संध्या पर उन्होंने वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखते हुए इन संपत्तियों के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मई 2016 में भाजपा सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी जेआर आर्यन के नेतृत्व में एक जांच समिति का गठन किया था। इसे 6 महीने की अवधि के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम दिया गया था। जून 2017 में, यह बताया गया था कि समिति ने सिफारिश की थी कि 123 संपत्तियों के स्वामित्व पर अंतिम निर्णय दिल्ली वक्फ आयुक्त द्वारा लिया जाना चाहिए। एक अधिकारी ने बताया कि जेआर आर्यन कमेटी डी-नोटिफिकेशन के मुख्य मुद्दे की जांच करने में विफल रही यानी क्या संपत्तियां वास्तव में वक्फ की थीं।
यह इस तथ्य के बावजूद था कि इसे सभी हितधारकों के विचार जानने का काम सौंपा गया था। भले ही इसे अतिरिक्त 6 महीने का विस्तार दिया गया, लेकिन जांच समिति एक ठोस समाधान के साथ आने में विफल रही और वक्फ बोर्ड आयुक्त पर उत्तरदायित्व डाल दिया। इसमें सुझाव दिया गया कि डीडीए और एलएनडीए समाधान के लिए वक्फ आयुक्त के समक्ष मामले को उठाएं।
यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड आयुक्त की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है, जो अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी द्वारा संचालित है। अमानतुल्लाह खान ही वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष हैं, जिन्हे कल ही गिरफ्तार किया गया है। क्या केंद्र सरकार अब इस मुद्दे को पूरी तरह से सुलझाने के लिए आगे बढ़ रही है ?