इन दिनों जहाँ कांग्रेस हिन्दू और हिंदुत्व पर प्रवचन देती आ रही है, वहीं हिन्दुओं के आराध्य प्रभु श्री राम पर अश्लील टिप्पणी करने वाले कॉमेडियन्स की रक्षक बनी दिखाई देती आ रही है। परन्तु उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या तो सीमित है, या इतनी लच्छेदार है कि इंसान उसमें फंसकर दम ही तोड़ दे! बात हो रही है, इन दिनों रायपुर में कांग्रेस द्वारा आयोजित धर्म संसद की।
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में रायपुर में धर्मसंसद का आयोजन किया। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसका उद्देश्य कांग्रेसी हिन्दू या फिर कांग्रेसी भगवान निर्मित करने तक सीमित था। क्योंकि इस धर्मसंसद में कालीचरण जी महाराज ने गांधी जी पर कुछ अपशब्द कह दिए। हालांकि उन शब्दों से असहमत होना चाहिए, क्योंकि किसी भी व्यक्ति को इस प्रकार सार्वजनिक अपशब्द कहे जाने से बचा जाना चाहिए, परन्तु कांग्रेस की यह बात कि गांधी जी की आलोचना ही न हो, या वामपंथी पत्रकारों द्वारा गांधी जी को एक नया खुदा बना दिया जाना, और उनकी आलोचना पर पैगम्बर निंदा/ईशनिंदा जैसा अघोषित कानून लागू किया जा रहा है।
हर समय उनके क़दमों की आलोचना हुई है
क्या गांधी जी की आलोचना आज हो रही है? या उनके क़दमों से असहमति हर काल में रही है? यह सत्य है कि मोहनदास करमचंद गांधी अंग्रेजों के खिलाफ कथित रूप से सबसे बड़ा चेहरा थे, परन्तु क्या उनके क़दमों पर पहले से ही प्रश्न नहीं उठ रहे हैं? क्या यह सत्य नहीं है कि वह और नेहरु जी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों को सौंपने के लिए तैयार हो गए थे?
या फिर जैसा यह प्रचारित किया जाता है कि अंग्रेजों भारत छोड़ों आन्दोलन के कारण ही भारत से अंग्रेज गए थे, तो इस विषय में गरुड़ प्रकाशन से प्रकाशित कल्याण कुमार डे की पुस्तक नेताजी- भारत की स्वतंत्रता और अंग्रेजों के अभिलेखागार में भी यह लिखा गया है कि यह सत्य नहीं है कि महात्मा गाँधी के भारत छोडो आन्दोलन के कारण अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, सच्चाई यह है कि यह आन्दोलन तो वर्ष 1944 तक समाप्त हो गया था। जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली से वर्ष 1956 में इस आन्दोलन के प्रभाव के विषय में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि इस आन्दोलन का प्रभाव नगण्य था। इतिहासकार डॉ रमेश चन्द्र मजूमदार ने इसे अपने संस्मरण में लिखा है, और कहा है कि एटली ने स्वयं वर्ष 1956 में कलकत्ता के राजभवन के एक कार्यवाहक राज्यपाल से कहा था कि अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने में सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिन्द फ़ौज की तुलना में गाँधीजी की भूमिका बहुत कम थी।
क्या कांग्रेस लिखित दस्तावेजों को भी गांधी जी की आलोचना समझेगी?
खैर यह तो तथ्यगत आलोचना है। वामपंथी पत्रकार जो एक ओर स्वयं की हिन्दू पहचान से किसी न किसी कारण से पीछा छुड़ाते हुए दिखाई देते हैं, वह भी गांधी जी की आलोचना को पैगम्बर निंदा/ईशनिंदा जैसा ही कुछ बना रहे हैं, परन्तु महात्मा गांधी का तत्कालीन वामपंथी विरोध करते थे। और वह विरोध इसलिए नहीं करते थे, कि वह गांधी जी की नीतियों से सहमत नहीं थे, बल्कि वह इसलिए विरोध करते थे क्योंकि गांधी जी का झुकाव आध्यात्म की ओर था।
अरुंधती रॉय ने भी की है गांधी जी की आलोचना:
उसी काल के वामपंथियों ने गांधी जी की आलोचना की हो ऐसा नहीं है। हाल ही में अरुंधती रॉय की एक पुस्तक आई थी एक था डॉक्टर, एक था संत’, उसके कुछ अंश आंबेडकरवादी विचारों वाली वेबसाईट स्त्रीकाल में प्रकाशित हुए थे और उसमें अरुंधती रॉय ने गांधी जी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों की आलोचना तो की ही थी परन्तु साथ में उन्हें भारतीय व्यापारियों का भी पक्षधर बताया था, जिसका कोई भी लेना देना भारतीय गरीबों से नहीं था।
“जब गांधी टॉलस्टॉय फार्म में गरीबी के क्रिया-कलापों की अदाकारी कर रहे थे, इसे विडम्बना ही कहेंगे कि तब वो चन्द हाथों में धन-पूंजी के एकत्रीकरण के खिलाफ या धन-सम्पत्ति के असमान बंटवारे के ऊपर प्रश्न नहीं खड़ा कर रहे थे।“
इसी लेख में आगे लिखा है
“गांधी का दो (या तीन या चार) स्त्रियों के साथ एक ही बिस्तर पर सोना और उन प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर मूल्यांकन करके इस परिणाम पर पहुंचना कि गांधी ने अपनी विषय-लिंग काम-इच्छाओं पर काबू पा लिया है या नहीं, इससे यह साफ जाहिर होता है कि वे महिलाओं को एक विशिष्ट व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक श्रेणी या वर्ग के रूप में देखते थे। इसीलिए उनके लिए ये दो-तीन-चार जिस्मानी नमूने, जिनमें उनकी अपनी पौत्री भी शामिल थी, एक पूरी महिला प्रजाति का प्रतिनिधित्व करते थे।“
इस पुस्तक को लेकर कांग्रेस ने और वामपंथी लेखकों, पत्रकारों ने कुछ नहीं कहा! खैर, वह अपनों की बातें थीं और अपनों की कैसी बुराई? पर कांग्रेसियों के लिए गांधी केवल तभी अपमानित होते हैं, जब कोई भगवाधारी कुछ कहता है या फिर अपना एजेंडा सेट करना होता है!
खैर अब आते हैं कि हिन्दू गांधी जी से गुस्सा क्यों हैं? हर हिन्दू गुस्सा नहीं है, परन्तु बहुत सारे हैं, और इसलिए भी क्रोधित हैं क्योंकि कई सत्य जो दबा दिए गए थे, वह अब पब्लिक डोमेन में आ गए हैं। और वह गांधी को महात्मा बनाने के लिए और जोर शोर से जैसे प्रचारित किए जा रहे हैं। जैसे 7 अप्रेल 1947 को प्रार्थना सभा में उनका भाषण, जो उन्होंने दिल्ली में दिया था। उसमें उन्होंने रावलपिंडी के एक हिन्दू की दुखभरी कहानी कहनी शुरू की। जिसका सार था कि
“रावलपिंडी के एक युवक ने उन्हें अपनी पीड़ा बताई और साथ ही वहां पर घटने वाली घटनाएं भी बताईं। उसके अट्ठावन साथी केवल हिन्दू होने के कारण मारे गए थे। वह और उसका बेटा ही बच पाए। रावलपिंडी के आसपास के गाँव अब राख का ढेर बन गए हैं। यह कैसी विडंबना है कि वह रावलपिंडी जहाँ पर सिख और मुस्लिम मेरे और अली भाइयों के स्वागत में मिलकर आए थे, गैर मुस्लिमों के लिए खतरनाक स्थान बन गया है। पंजाब के हिन्दू गुस्से से उबल रहे हैं। सिख कह रहे हैं कि वह गुरु गोबिंद साहब के अनुयायी हैं, जिन्होनें तलवार चलाना सिखाया है। पर मैं हिन्दू और सिखों से बार बार कहना चाहूंगा कि बदला न लें. मैं कहना चाहूंगा कि अगर हिन्दू और सिख मुस्लिमों के हाथों अपने जीवन का बलिदान बिना किसी क्षोभ और बदले के कर देते हैं, तो वह केवल अपने ही धर्मों के नहीं बल्कि इस्लाम और पूरी दुनिया के रक्षक हो जाएंगे.
शरणार्थियों से बात करते हुए भी उन्होंने हिन्दुओं को लताड़ा है कि “यदि पंजाबी दूसरों को मारे बिना ही एक एक कर अंतिम पंजाबी तक मारे गए होते, तो पंजाब अमर हो जाता.—————— मेरी शर्त यही है कि यदि हमारे सामने मौत भी खड़ी है तो भी हमें उनके विरुद्ध हथियार नहीं उठाने हैं. मगर आप लोग उनसे लड़ने के बाद मेरे पास आए हैं, तो मैं क्या कर सकता हूँ?
उन्होंने शरणार्थियों से कहा कि आप लोग मेरे पास क्यों आए हैं, यदि आपने मेरी बात सुनी होती और खुद को उनके हवाले कर दिया होता तो मैं पंजाब में शान्ति ला देता। आप लोग अहिंसा से शान्ति ला सकते थे और खुशी खुशी बलिदान हो सकते थे! मगर आपने लड़ा और फिर हारकर आए हैं, तो मैं क्या कर सकता हूँ!
आज आम लोग भी इन पर प्रश्न उठा रहे हैं, तो कांग्रेस चाहती है कि हिन्दू अपने साथ हुए अन्याय पर बात भी न करे?
इतना ही नहीं एक ओर कांग्रेस हिन्दुओं को मुस्लिमों की भीड़ के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहने वाले गांधी जी की आलोचना को पैगम्बर निंदा/ईशनिंदा के समानांतर खड़ी करती है तो वहीं हिन्दुओं के आराध्य प्रभु श्री राम को गाली देने वाले मुनव्वर फारुकी के शो का आयोजन भी कराती है।
पाठकों को याद होगा कि कैसे मुनव्वर फारुकी ने माता सीता का अपमान उड़ाया और गोधरा काण्ड को बर्निंग ट्रेन कहकर अपनी कॉमेडी का उपहास उड़ाया था
और माता सीता और प्रभु श्री राम के प्रति कैसी भाषा का प्रयोग कर रहा था:
धर्मसंसद का आयोजन कराया कांग्रेस ने, और गांधी जी के प्रति कालीचरण जी महाराज का विरोध करने वाला भी कांग्रेसी
धर्मसंसद का आयोजन कहीं न कहीं कांग्रेस द्वारा हिन्दू और हिंदुत्व की बहस का ही विस्तार है। जिसमें कालीचरण जी महाराज के गांधी जी के प्रति कहे गए शब्दों को हिंदुत्व कहा गया और फिर एक महंत राम सुन्दर दास ने उसका विरोध किया और उसका वीडियो लगभग हर लिबरल पत्रकार ने साझा किया। और नवाब मलिक जैसे नेताओं ने भी साझा किया।
परन्तु यह भी पता चला कि महंत राम सुन्दर दास जो छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष हैं, वह कांग्रेस की ओर से पूर्व में विधायक रह चुके हैं और जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ है।
ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए ही यह जाल कांग्रेस द्वारा बिछाया गया हो और अपने ही धार्मिक नेता को हिन्दू बनाकर प्रस्तुत किया। फिर इस वीडियो को प्रोपोगैंडा मीडिया ने साझा किया
परन्तु महंत राम सुन्दर दास, सबसे पहले कांग्रेसी हैं, फिर हिन्दू हो सकते हैं, उनकी ट्विट्टर प्रोफाइल से सारा पता चलता है कि कैसे वह कांग्रेसी हैं।
यह नाटक करते हुए कांग्रेसी यह भूल गए कि अब सोशल मीडिया का ज़माना है, जहाँ पर वह प्रभु श्री राम की बात करते हैं और उनके अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का अध्यक्ष, उच्चतम न्यायालय के राम मंदिर के निर्णय को नकारता है
कांग्रेस के नेता लगातार महंत रामसुंदर दास का वीडियो साझा कर रहे हैं, परन्तु वह यह क्यों नहीं बता रहे हैं, कि वह कांग्रेस के दयापात्र महंत हैं:
ऐसे में यह प्रश्न बार बार उभरता है कि क्या यह हिन्दू-हिंदुत्व की बहस को एक नया मोड़ देने की कांग्रेस का षड्यंत्र था जिसमें अपने ही विधायक को असली हिन्दू घोषित कर दिया जाए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में हिन्दू देवी देवताओं को गाली देने वालों को भी नायक बनाती रहे? और एक प्रश्न यह भी है कि क्या कांग्रेस के लिए गांधी जी की आलोचना ईशनिंदा समान और हिन्दुओं के राम, कृष्ण, देवी माँ और महादेव की आलोचना और उपहास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?