छत्तीसगढ़ में कबीरधाम के कवर्धा में इन दिनों बवाल मचा हुआ है और 37 वर्षों के बाद कवर्धा में कर्फ्यू लगा हुआ है। मगर ऐसा क्यों हुआ है और क्या हुआ है? क्या हुआ है जो छत्तीसगढ़ जल रहा है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस के लिए राजनीतिक संभावनाओं की तलाश करने के लिए उत्तर प्रदेश में कथित “किसान” आन्दोलन में अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए चले गए हैं।
पर मीडिया भी कवर्धा में किए जा रहे बवाल को कवर नहीं कर रहा है। यहाँ मुद्दा क्या है? छत्तीसगढ़ के कवर्धा से एक वीडियो सामने आया था, जिसके आधार पर यह दावा किया गया था कि यहाँ पर एक मुस्लिम भीड़ ने हिन्दू ध्वज को उखाड़ कर फेंक दिया था और उसके बाद उसका अपमान भी किया। मगर एक और बात यहाँ पर ध्यान देने की है कि वीडियो में सामने दिख रहा है कि जब भीड़ ध्वज का अपमान कर रही थी, वह पुलिस कर्मी खड़े हुए थे। ऐसा दावा किया जा रहा है।
केसरिया ध्वज से बाधाएं पैदा हो रही थीं, ऐसा दूसरे समुदाय का कहना था। पुलिस के अनुसार रविवार को उस क्षेत्र के निवासियों के साथ एक बैठक हुई। उस बैठक में, निवासियों से आने वाले त्यौहार के मौसम में धार्मिक ध्वजों को हटाने के लिए कहा गया, जिससे शांति व्यवस्था बनी रहे। पर जहाँ कुछ लोग सहमत हो गए, तो वहीं दोनों ही समुदायों के कुछ लोग वहां पहुँच गए, जिसके कारण दोनों समुदायों के बीच तनाव हुआ।”
पर कवर्धा की इस घटना में कुछ रोचक तथ्य जुड़े हैं, जो यह बताते हैं कि राजनीति किस प्रकार हिन्दुओं का प्रयोग करती है! पिछले विधानसभा चुनावों में डॉ. रमण सिंह से जनता के बीच कुछ विषयों को लेकर भयानक नाराजगी थी, और यही कारण है कि जनता ने भाजपा सरकार के बदले में कांग्रेस को चुन लिया और कबीरधाम जिले के कवर्धा नगर में कांग्रेस को चुना।
जिस जिले की जनसँख्या में बामुश्किल 3% मुस्लिम जनसँख्या है, उस जिले के एक शहर से हिन्दू जनता ने कांग्रेस की ओर से उतारे गए मुस्लिम प्रत्याशी को चुन लिया। जो लोग हिन्दुओं को असहिष्णु कहते हैं, उन्हें यह उदाहरण ध्यान में रखना चाहिए कि वहां की बहुसंख्यक जनता ने कांग्रेस के प्रत्याशी को चुना।
इससे बहुसंख्यकों की राजनीतिक सहिष्णुता का बोध हो जाता है। परन्तु यह उन्होंने भी अपेक्षा नहीं की होगी कि उनके ध्वज को ही हटाया जाएगा और वह भी उस ध्वज को जो वहां पर बहुत पहले से लगा हुआ था, क्योंकि यह घटना माँ कर्मा चौक के पास हुई थी और ऐसी वहां पर मान्यता है कि माँ कर्मा ने भगवान श्री कृष्ण को पाला था।
तो वहीं मुस्लिम आयोजन के चलते उस ध्वज के पास दूसरे समुदाय के लोग भी अपना ध्वज लगाने लगे और तभी किसी ने केसरिया ध्वज हटाकर फेंक दिया।
और फिर बवाल हो गया, और कर्फ्यू लगा जो पूरे 37 साल बाद लगा है।
स्थानीय लोगों की मानें तो पुलिस ने अमानवीयता का परिचय दिया है, एवं प्रशासन पर एक तरफ़ा कार्यवाही का आरोप लगाया जा रहा है।
परन्तु यह बेहद विचित्र है कि अपने राज्य में लोगों को मरने के लिए छोड़कर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश में किसानों को मुआवजे की घोषणा कर रहे हैं? यह कैसी विचित्र बात है? इस बात पर मीडिया भी मौन है?
मुख्यधारा का मीडिया जहां इस पर मौन हैं, वहीं सोशल मीडिया में इस बात पर भूपेश बघेल से प्रश्न किए जा रहे हैं, पर वह शायद इन दिनों उत्तर प्रदेश में प्रियांका गांधी वाड्रा को मुख्यमंत्री बनाने में अधिक श्रम करना चाहते हैं, तो इसलिए वह उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं।
और इससे भी विचित्र यह है कि फरवरी में एक रिपोर्ट थी कि छत्तीसगढ़ में फरवरी तक दस महीने में 141 किसानों ने आत्महत्या की थी। और यह घोषणा सरकार ने स्वयं विधान सभा में की थी।
तो फिर ऐसा क्यों है कि भूपेश बघेल अपने राज्य के किसानों को छोड़कर उत्तर प्रदेश में मुआवजा बाँट रहे हैं, जबकि फरवरी तक अपने किसानों के लिए वह मुआवजे के लिए कारणों की जांच ही कर रहे थे और सरकार ने कहा था कि भाजपा राजनीति कर रही है, तो क्या भूपेश बघेल जी उत्तर प्रदेश में राजनीति नहीं कर रहे हैं?
क्यों? क्योंकि वहां एक योगी की सरकार है? क्या बिना जांच के अपने राज्य के किसानों की कीमत पर वह दूसरे राज्य के किसानों को मुआवजा दे सकते हैं?
प्रश्न यही उठ रहे हैं कि जब छत्तीसगढ़ खुद इस समय संघर्ष की जद में है, तो ऐसे में एक योगी मुख्यमंत्री के खिलाफ राजनीति करने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बघेल उत्तर प्रदेश क्यों गए हुए हैं?