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Sunday, December 8, 2024

चित्रा त्रिपाठी – एजेंडा फेमिनिस्ट भी साथ नहीं

5 सितम्बर मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत में पत्रकार चित्रा त्रिपाठी के साथ किसानों ने दुर्व्यवहार किया और गोदी मीडिया कह कह कर उनके साथ अभद्रता की।

वीडियो में दिखाई दे रहा है कि कैसे कथित किसानों ने चित्रा को घेर लिया है और गोदी मीडिया के नाम पर नारे लगा रहे हैं, और चित्रा त्रिपाठी की सहायता उसी पुलिस ने की, जिस पुलिस को वह लोग समय समय पर लताड़ते रहते हैं। इतना ही नहीं प्रदेश भले ही अलग हों, यही चित्रा त्रिपाठी जो हाथरस में एसडीएम पर चीख सकती हैं, और कथित न्याय का दावा करते हुए हर दर्जे की अभद्रता कर सकती हैं, वह समझ गयी होंगी कि कौन उनका साथ दे सकता है?

लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर पत्रकार भीड़ के सामने और वह भी एजेंडा वाली भीड़ के सामने विवश क्यों हो जाते हैं और मजे की बात यह है कि जो लोग हाथरस में चित्रा त्रिपाठी के पक्ष में खड़े थे, वह आज उनके एकदम विपक्ष में खड़े होकर उन्हें गोदी मीडिया कह रहे हैं? गोदी मीडिया कहने वाले इतने असहिष्णु हैं कि वह कोई भी आवाज़ नहीं सुन सकते हैं, हाँ जो उनके पक्ष में लिखते हैं या उनका एजेंडा चलाते हैं, उनका साथ जरूर दे रहे हैं। जैसे पत्रकार अजित अंजुम का वह वीडियो बहुत वायरल हो रहा है जिसमें एक सिख किसान उनका पसीना पोंछ रहे हैं।

और इसे कई कथित फेमिनिस्ट भी शेयर कर रही हैं। उनका कहना है कि चित्रा त्रिपाठी के साथ कुछ ख़ास गलत नहीं हुआ!

ऐसा तो होता ही रहता है! पेशा है! पेशे में तो यह सब चलता ही है। अब जब चलता ही सब कुछ तो? पुरुष एंकर्स भी तो घेर लिए जाते हैं। क्या हुआ, अगर चित्रा के साथ ऐसा हो गया। और ऐसा सामान्यीकरण और कोई नहीं, इंडिया टुडे वाले ही कर रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने ट्वीट में वीडियो साझा करते हुए लिखा कि

इंडिया टुडे की फीमेल एंकर ने चित्रा त्रिपाठी के साथ हुई घटना को सामान्य बता दिया।

खुद को फेमिनिस्ट कहने वाली कई औरतें चित्रा के पक्ष में नहीं हैं। क्यों नहीं है पक्ष में? और क्यों हाथरस में चित्रा के पक्ष में थीं? और किसान आन्दोलन के पक्ष में अपने अपने खेमे के पत्रकारों के लिए एजेंडा चलाने वाली यह महिला पत्रकार किसान आन्दोलन में हुए हर महिला उत्पीड़न पर मौन रही हैं।

किसान आन्दोलन का समर्थन करने वाली हिंदी की लेखिकाएं, इन दिनों टिकैत के गुणगान में लगी हुई हैं! मगर जैसे आज यह लोग चित्रा के साथ नहीं हैं, वैसे ही यह लोग उस बलात्कार पर चुप बैठ गए थे, जो बलात्कार किसान आन्दोलन के दौरान हुआ था और वह भी उस बंगाल से, जो उनका प्रिय प्रदेश है।

उस लड़की के साथ बलात्कार हुआ था, उसकी बात खुद योगेन्द्र यादव को भी पता थी, और उसमे एक महिला भी पकड़ी गई थी। मगर इन फेमिनिस्ट पत्रकारों ने उस लड़की की आवाज़ नहीं उठाई।

उस लड़की के पिता की शिकायत पर मामला दर्ज हुआ, मगर अस्पताल में भी पिता को अपनी बेटी की लाश लेने के लिए यही बोलना पड़ा था कि उनकी बेटी की कोरोना से मृत्यु हुई है।

मगर यह फेमिनिस्ट चुप रहीं! खुद को फेमिनिस्ट कहने वाली यह औरतें आज खुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बता रही हैं। पर दरअसल यह हिन्दू विरोधी वामपंथी औरतें हैं, जिनका उद्देश्य किसी भी स्थिति में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को दोबारा से आने से रोकना है। यह कथित फेमिनिस्ट औरतें इस हद तक उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से नफरत करती हैं, कि वह अपनी चित्रा त्रिपाठी के लिए भी आवाज़ नहीं उठाएंगी, वह यह तक नहीं कहेंगी कि गलत हुआ।

दरअसल वामपंथी राजनीति में औरत सदा से एक टूल होती है। उसे वह यूज़ एंड थ्रो की तरह प्रयोग करते हैं। वह तब तक उसका प्रयोग करते हैं जब तक आवश्यकता होती है, जैसे नक्सली भी सेना से लड़ने के लिए अपनी महिला साथियों को आगे करते हैं, उनके लिए उनकी जान की कोई कीमत नहीं होती है। ऐसा सरकार ने भी कहा है।

यही तकनीक मुस्लिम भी अपनाते हैं, सीएए के आन्दोलन में उन्होंने अपनी औरतों को आगे कर दिया।

मगर यह दोस्ती केवल तभी तक होती है जब तक आप उनके एजेंडे पर चलते हैं। जैसे ही कोई महिला नक्सली बाहर आने की कोशिश करती है तो उसे किन कठिनाइयों का सामना करना होता है, यह भी बार बार बताया गया है। तो आजतक जब टिकैत को मंच देता है और बार बार टिकैत का एजेंडा चलवाता है, भाजपा के खिलाफ बोलता है, तब तक वह ठीक है, मगर जैसे ही किसान आन्दोलन में हुई किसी ऐसी घटना का उल्लेख कर देता है जो उन्हें असहज कर दे तो वह तिलमिला उठते हैं और फिर चित्रा त्रिपाठी पर को घेरने जैसा कांड कर देते हैं।

क्या यह अभी गोदी मीडिया नहीं था?

शायद चित्रा त्रिपाठी अब एजेंडे और समाचार में अंतर समझी होंगी, जब उनके ही चैनल ने अपनी पत्रकार के साथ हुई बदसलूकी को साधारण घटना मान लिया है और एजेंडाधारी फेमिनिस्ट भी चित्रा के साथ हुई हरकत को सामान्य बता रही हैं!

यूजर महिलाएं भी इसे ठीक बता रही हैं:

कल तक ट्रैक्टर पर बैठी चित्रा त्रिपाठी एकदम से कैसे गोदी मीडिया हो गईं? या फिर यूज़ एंड थ्रो हुआ है? जिसमें संस्थान ही अपनी महिला पत्रकार के साथ नहीं है!

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