शीघ्र ही शिवाजी का स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्होंने राम सिंह के माध्यम से औरंगजेब को खत लिखकर अपने साथियों को वापस भेजने की अनुमति मांगी।
“क्या, उनकी सेहत ठीक नहीं है! उनके लिए आगरा के सबसे सबसे अच्छा, सबसे योग्य हकीम की व्यवस्था की जाए! उनकी जान हर हाल में सलामत रहनी चाहिए, नहीं तो मुगलों की शान में एक काला धब्बा होगा! इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा कि हमारी सरपरस्ती में यह सब हुआ! और उनके जो भी साथी जाना चाहते हैं, उनके जाने की व्यवस्था की जाए!”
उस दिन औरंगजेब बहुत प्रसन्न था! उसने जिस चिड़िया को फांसा था, उसके फंसने की आज पुष्टि हो गयी थी। फुलाद्खान ने अपना काम बखूबी किया था। न किसी को आने दिया था और न ही जाने दिया! औरंगजेब ने मन ही मन शिवाजी की मूर्ति पर तलवार मारते हुए कहा “कहा था न इतना तिल तिल मारूंगा कि न मरते बनेगा और न जिंदा रहते! एक दिन अपनी मौत की कामना लेकर तुम खुद आओगे! कयामत का दिन होगा वह तुम्हारे लिए शिवा, कयामत का!”
शिवाजी के प्रति अपनी हिंसा को औरंगजेब ने कभी छिपाया नहीं था। बल्कि वह तो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी। औरंगजेब को यह खतरा नहीं दिख रहा था कि अंग्रेज अपनी छावनियां विकसित करते चले आ रहे थे, और धीरे धीरे वह एक बड़ी शक्ति बनते जा रहे थे। उसे केवल शिवाजी ही दिख रहे थे। अंग्रेजों ने अभी तक मुगलों से सीधी टक्कर नहीं ली थी, मगर शिवाजी मुगलों और अंग्रेजों दोनों से ही टक्कर ले चुके थे। शिवाजी को न ही अंग्रेजों का शासन चाहिए था और न ही मुगलों का। हालांकि यह विरोधाभास ही था कि शिवाजी की स्वराज्य सेना में बहुत से मुस्लिम थे और शिवाजी को उन मुस्लिमों से कोई भी समस्या नहीं थी जो दूसरे धर्म का आदर करते थे।
औरंगजेब को शिवाजी के इन्हीं गुणों से अंतहीन नफरत थी और इस नफरत की आंच जेठ की तपती दोपहरी से भी बहुत अधिक थी। इस ताप में झुलस कर औरंगजेब शिवाजी के प्रति और हिन्दुओं के प्रति अत्यंत असहिष्णु होता जा रहा था।
मगर औरंगजेब यह देखने में नाकाम रहा कि किस तरह शिवाजी ने आगरा में अपने संपर्क बनाने आरम्भ कर दिए थे। शिवाजी का गुप्तचर तंत्र औरंगजेब की कल्पना से भी कहीं अधिक मजबूत था। जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता, वह सर्वश्रेष्ठ ही होते हैं। जिन लोगों को शिवाजी ने अपनी सेना में लिया था, उनमें से अधिकतर का बचपन बहुत ही संघर्षमय रहा था और सभी परिस्थितयों से तपे हुए थे। ऐशो आराम और विलासिता में बढ़े नवाबों और संघर्ष कर अपनी कहानी लिखने वालों में बहुत अंतर होता है, क्योंकि किसी भी संघर्ष करने वाले के साथ कलम नहीं होती, इतिहास नहीं होता! इतिहास हमेशा ही ताकतवरों का होता है,जो पैसे देकर खरीद ले! शिवाजी के किसी साथी और शिवाजी के पास इतना धन नहीं था कि वह इतिहास को धन से खरीद सकते, वह मात्र अपने कर्मों से इतिहास बदलने की तैयारी में थे।
औरंगजेब से जैसे ही यह सूचना आई कि उनके साथी जा सकते हैं वैसे ही उन्होंने अपने साथियों को बुलाया और कहा “मेरा जाना नियत नहीं है, मगर मैं आप सबको यहाँ व्यर्थ में कैद नहीं रख सकता! अत: आप लोग यहाँ से जाइए! उस दोपहर हवाएं रुक गईं थीं, भीतर जो वार्ता हुई, उसका एक भी शब्द लेने से हवाओं ने इनकार कर दिया। मुग़ल उसी तरह बेफिक्र थे!
अपने दोस्तों को वहां से विदा करने के बाद, शिवाजी उदास रहने लगे! एक तो मौसम का अंतर था और दूसरा बाहर न निकल पाने की निराशा!
शिवाजी का स्वास्थ्य दिनों दिन बिगड़ने लगा था। इतना बिगड़ने लगा कि उन्होंने शिविर से जाना बंद कर दिया। शिविर से शिवाजी की अस्वस्थता की खबर औरंगजेब के लिए नित नए हर्ष ला रही थी।
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परन्तु उन्हें कौन रोक सका था, वह भाग गए थे:
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शिवाजी दक्कन की तरफ कदम बढ़ा रहे थे, उधर आगरा में अजीब स्थिति थी।
आगरा में एक सन्नाटा छाया था। औरंगजेब तक यह सूचना कैसे पहुंचाई जाए और कौन है जो यह सूचना पहुंचा सकता है, प्रश्न यह भी था!
“राम सिंह जी, आप ही उस चूहे के संग रहते थे, अब वह चूहा कहाँ भागा है और कैसे भागा है, यह आप ही बादशाह को बताएं!” फौलाद खान क्रोध और दुःख की मिश्रित आवाज़ में बोल रहा था!
“मैं?” राम सिंह चौंका
“मैं तो खुद ही आपके जितना हैरान हूँ, कि वह कहाँ चले गए! आपको नहीं पता है कि अब मैं अपने पिता को क्या उत्तर दूंगा? मुझ पर उनका उत्तरदायित्व था! मैं अब कैसे और क्या कहूँगा!” राम सिंह दुःख के कारण रोने लग गया था!
“यह नकली आंसू अपने पास रखिये राम सिंह जी, जाकर जहापनाह को बताइए कि वह नहीं रहा हमारे बीच!” जाइये
राम सिंह धीरे धीरे महल की तरफ बढ़ रहे थे! उन्हें बार बार लग रहा था कि शिवाजी कहाँ गए होंगे? यदि उन्हें दोबारा पकड़ लिया गया तो? उनके लिए जो नया किला बना रहे थे, कहीं उन्हें कैद कर उसमें डाल दिया गया तो? मन में कई तरह के विचार लिए उन्होंने महल में कदम रखा
इतना भी उनींदा कोई समय हो सकता है, कि शहर में इतनी बड़ी घटना हो जाए और महल को पता ही न हो! यह महल जनता से और शहर से कट क्यों जाते हैं? राम सिंह सोचते हुए जा रहे थे! अब वह बादशाह को यह खबर कैसे दें कि शिवाजी भाग गए हैं!
“आओ राम सिंह, कैसे आना हुआ? क्या शिवाजी की तबियत के बारे में कुछ सूचना है?”
राम सिंह को असमय आए हुए देखकर मनचाही खबर पाने की प्रसन्नता ने औरंगजेब के चेहरे पर एक प्रसन्नता की किरण ला दी थी
“जान की बख्शीश मिले तो कुछ अर्ज करूँ!” राम सिंह ने अपने स्याह पड़े मुख से बामुश्किल कुछ शब्द निकालते हुए कहा
“तुम्हारी तबियत ठीक नहीं लगती, कहीं शिवा ने तो कुछ नहीं कर दिया है, वैसे भी अफजल काण्ड के बाद उस पर भरोसा तो किया ही नहीं जा सकता है!” वह धीरे धीरे बोलता जा रहा था!
“नहीं बादशाह, ऐसा नहीं है दरअसल! दरअसल…………।”
राम सिंह चुप हो गए!
उमस और गहराने लगी थी! औरंगजेब के लिए अब सब्र रखना कठिन होता जा रहा था। “अब बोलिए भी राम सिंह!”
“शिवाजी महाराज! शिवाजी महाराज हमारे बीच…………….।।।”
“क्या वाकई? शिवाजी हम लोगों के बीच नहीं रहा! अब इसमें तो खुदा की मर्जी है कोई क्या कर सकता है? तुम्हे सब्र रखना होगा राम सिंह! और जय सिंह को भी यह समाचार भिजवा दो!” अपनी प्रसन्नता को दिल में दबाकर दुखी होने का नाटक करते हुए बोला
“नहीं आलमपनाह, वह बात नहीं है, दरअसल शिवाजी महाराज, जयपुर भवन में कहीं नहीं हैं! सुबह से ही वह गायब हैं ऐसा प्रतीत होता है कि वह हमारी कैद से भाग गए!” राम सिंह ने शीघ्र ही अपना वाक्य समाप्त किया और अपनी गर्दन धड से अलग होने की आशंका से अपनी आँखें बंद कर लीं
“क्या, क्या कहा तुमने? फिर से कहो?” औरंगजेब को लगा जैसे उसने कुछ गलत सुन लिया हो!
“बादशाह, शिवाजी हमारी कैद से भाग गए हैं!”
“वह कैसे भाग सकता है! कैसे? उसे जमीन निगल गयी या आसमान खा गया। वह कहाँ गया है? बारह सौ मील दूर तक का सफर है, उसे पकड़ो! कहाँ गया है?” वह पागल हो रहा था, पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ था कि हुआ क्या है? कैसे? कैसे? कैसे?
पूरे आगरा में उसकी चीखें गूँज रही थी और उसके बाद उसकी आँखों में हिंसा और बदला उतर आया। उसे अब हर कीमत पर खून चाहिए था। चिड़िया उड़ गयी थी और बहेलिया अब पूरी दुनिया की आँखों में हास्य का पात्र बन गया था।
“किसी को नहीं छोडूंगा! किसी को भी नहीं! उस भवन में जो लोग उसकी तीमारदारी कर रहे थे उन्हें पेश किया जाए! और राम सिंह आपको जो दंड देना है वह बाद में सोचेंगे!”
औरंगजेब के दुःख और पीड़ा का पारावार न था! यह कैसा दिन था, कुछ ही क्षण पहले तक शिवाजी की मृत्यु के बारे में सोच सोच कर वह कितना प्रसन्न हो रहा था और अब? अब क्या करे वह! गुस्से में उसे लगा अपने ही बाल नोच ले, अपने चेहरे पर कई थप्पड़ मारे!