वामपंथी और इस्लामी साहित्य पढने पर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कि मुस्लिमों के आने पर ही भारत का विकास हुआ। परन्तु भारत के ग्रन्थ बार-बार इस झूठ की पोल खोलते हैं। आज हम आपको चाणक्य के अर्थशास्त्र से कुछ ऐसे सन्दर्भों का विवरण देंगे, जो वाम और इस्लाम द्वारा प्रचारित हर झूठ की धज्जी उड़ाता है। वैसे तो हिन्दू भारत की प्रशंसा बाबर ने ही अपनी आत्मकथा में की है, जो हमने कल ही पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया था।
भारत कृषि प्रधान देश के स्थान पर उद्योग प्रधान देश अधिक प्रतीत होता है क्योंकि भारत में चहुँ ओर कई प्रकार के उद्योगों के विवरण प्राप्त होते हैं, उनके विवरण, उनके उद्गम, कच्चा माल आदि सब कुछ भारत के प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। आज हम चाणक्य के अर्थशास्त्र से कुछ सन्दर्भ पढेंगे कि वाम और इस्लाम के “पिछड़े” इतिहासकारों ने भारत के विषय में कितना झूठ बोला है!
यद्यपि रामायण और महाभारत से भी प्रसंग कभी कभी लेंगे, परन्तु चाणक्य की बातें बार-बार इसलिए स्मरण कराना आवश्यक है क्योंकि वाम और इस्लाम दोनों ही एकमार्गी धाराएं भारत के इतिहास का उद्गम मौर्य वंश से मानती हैं! हिन्दुओं के लिए तो उनका इतिहास वेद, पुराण, और रामायण और महाभारत आदि से है!
जो लोग कहते हैं कि भारत में मुस्लिमों के आने से पहले “सुई” भी नहीं बनती हैं, वह चाणक्य द्वारा खनिज पदार्थों के व्यवसाय का संचालन कैसे किया जाता है, वह पढ़ें:
चाणक्य लिखते हैं
“खानों का अध्यक्ष तांबा, अदि धातुशास्त्र, पारा निकालना, मणिक पहचानना, आदि विद्याओं को जानकार या जानकार लोगों एवं मेहनती मजदूरों को साथ लेकर, कच्ची धातु, कोयला, राख, खुदाई अदि चिन्हों को भूमि या पहाड़ी टोले पर पाकर- भार, रंग, गंध तथा स्वाद के अनुसार खान की परीक्षा करे।”
आगे वह स्वर्णाध्यक्ष के विषय में क्या लिखते हैं:
“सुवर्णाध्यक्ष सोने चांदी के गहने बनवाने के लिए अक्षशाला (सुनारघर टकसाल) बनवाए जिसमें पृथक पृथक चार कमरे हों और एक दरवाजा हो। विशिखा नामक सड़क के बीच में कुलीन, विश्वसनीय चतुर सुनार को रखा जाए!”
“श्रेष्ठ सोने में से कुछ कुछ सफेद रंग का सोना नहीं मिलता है। यदि कहीं पर मिल जाए तो इसमें चार गुना जस्ता मिलाया जाए और इसको पट्टे में पीटकर तपाया जाए। तपाने के बाद लाल पड़ने और पिघलने पर इसको तेल और गौमूत्र में डाल दिया जाए। जो सोना खान से निकला हो, जस्ता मिलाकर उसके पत्रे पीते जाएं और खरल में उसे कूटा जाए। इसके बाद उसे तपाया जाए और पिघलाया जाए, तथा उसको केला और वज्रकंद के कल्क में डाला जाए!”
स्वर्ण के बाद चांदी का विवरण देखिये
“तुत्थोग्द्त, गौडिक, काममल, कवक तथा चाकवालिक के भेद से चांदी पांच प्रकार की है। श्वेत चिकनी तथा मृदु चांदी श्रेष्ठ होती है। इससे विपरीत जो चांदी तपाने पर फटे, उसको निकृष्ट समझना चाहिए। एक चौथाई जस्ता मिलाकर निकृष्ट चांदी को शुद्ध किया जाए।”
कौन से स्वर्ण को सुवर्ण कहते हैं, चाणक्य कहते हैं
“कसौटी पर कसने के बाद जब सोने का रंग हल्दी की तरह हो उसे सुवर्ण कहते हैं। एक सुवर्ण में से एक काकणी से सोलह काकणी तक तांबा मिलाने से सोना सोलह प्रकार का हो जाता है। कसौटी पर पहले उत्तम सोने की रेखा बनाकर उसके बाद दूसरे सोने की रेखा खींची जाए।”
स्वर्ण कैसा शुद्ध होता है, जानिये क्या लिखा है चाणक्य ने:
यह चाणक्य के अर्थशास्त्र में लिखा है। जो वाम और इस्लामी लेखक बार बार यह कहते हैं कि मुस्लिमों के आने से पहले भारत में सुई तक नहीं बनती थी, संभवतया वह उन्हीं इस्लामी मदरसों में पढ़े हुए हैं जहाँ पर भारत के विषय में संभवतया यह सब पढ़ाया जाता हो। क्योंकि यदि वह भारत के इतिहास को समझते तो यह नहीं लिखते।
भारत में सुई तक नहीं बनती थी कहने वालों के मुख पर चाणक्य का अर्थशास्त्र बार बार तमाचा मारता है, जब वह लिखते हैं कि सोने तीन काम हैं:
क्षेपण: अर्थात सोने में हीरादि जड़ना क्षेपण कहाता है।
गुण: सोने का सूत खींचना तथा उसका बटना गुण कहाता है।
क्षुद्रक: ठोस सोने में छेद करना या उसको पोला करना क्षुद्रक कहाता है।
सोने के पत्तक चढ़े गहनों का भी उल्लेख चाणक्य करते हैं।
चाणक्य का अर्थशास्त्र में दंड एवं पारितोषिक आदि सभी का वर्णन है। भारत में सुई तक नहीं बनती थी कहने वाले लोग यह और पढ़ें कि चाणक्य के समय में दुर्गविधान क्या था?
जो भूमि जोती, बोई जाती है उस पर पशुओं के लिए चरागाहें बनी जाएं। धर्म, कर्म तथा तपस्या के लिए ब्राह्मणों को ऐसे जंगल दिए जाएं जिनमें जंगली जानवरों का भय न हो।
“दुश्मन के आक्रमण से बचने के लिए राष्ट्र के अंत में चारों ओर स्वाभाविक दुर्ग बनाए जाएं।”
“जनपद के मध्य में राजस्व एकत्रित करने के योग्य एवं आपत्ति पड़ने पर शरण स्थान के रूप में उपयोगी स्थानीय नामक दुर्ग या कस्बा बनाया जाए। मकान बनाने के लिए प्रशस्त – देश, नदी, संगम, सदा पानी से भरी रहने वाली झील, ताल, या तालाब के किनारे गोल, लम्बा, या चौकोर , चारों ओर पानी से घिरा हुआ तथा अंसपथ तथा वारिपथ (जलमार्ग) से युक्त पक्का मकान तैयार किया जाए, जो कि मंडी का भी काम दे (इसके चारों ओर, एक दूसरे के दो गज की दूरी पर तीन खाइयां खोदी जाएं)
स्रोत: कौटिल्य अर्थशास्त्र का हिन्दी अनुवाद: अनुवादक श्रीयुत प्राणनाथ विद्यालंकार प्रोफ़ेसर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
भारत में यह सबसे बड़ी विडंबना है कि जो पढ़ना चाहिए था, वह पढ़ा नहीं जा रहा है और जो त्याज्य होना चाहिए था, उसका महिमामंडन किया जा रहा है। नगर योजना जो रामायण से लेकर अर्थशास्त्र में विस्तार से दी गयी है, उसका वर्णन हमारे बच्चो की पाठ्यपुस्तकों से गायब है। बच्चों को वास्तु के नाम पर बौद्ध, उसके उपरान्त मुग़ल वास्तु पढ़ाई जाती है। अर्थशास्त्र में यह सब लिखा है, यह नहीं बताया जाता है, फिर बच्चे “फक हिन्दुइज्म” नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?
वह वाम और इस्लामी लेखकों और फेमिनिस्टों की हरम के प्रति उसी कुंठा से रचा हुआ साहित्य पढेंगे जिसमें कहा जाता है कि “हम कैंची नहीं लाते तो तुम्हें कपड़े काटना कौन सिखाता?”
जबकि चाणक्य सोने के पत्ते वाले गहने भी बता रहे थे और वह सुई भी नहीं खोज पा रहे?