खालिस्तानियों का आश्रय स्थल बन चुके कनाडा में दिवाली मना रहे भारतीयों को परेशान करने का प्रयास किया गया है। खालिस्तान का झंडा लिये कई खालिस्तानियों ने भारतीय लोगों को घेर लिया और उनका दिवाली कार्यक्रम भंग कर दिया, इसके अतिरिक्त इन लोगों ने भारतीय ध्वज के साथ भी अपमानजनक व्यवहार किया। जिससे आक्रोशित भारतीयों ने खालिस्तान समर्थकों को उन्हीं की भाषा में कड़ा उत्तर दिया।
यह घटना कनाडा के मिसिसॉगा शहर में घटित हुई, जहां दिवाली मनाने के लिए भारतीय समुदाय इकठ्ठा हुआ था। दिवाली मनाने के दौरान वहां खालिस्तानी अलगाववादी आ गए और त्यौहार मना रहे भारतीयों को अपशब्द कहने लगे। इसके पश्चात दोनों गुटों में कहासुनी हो गयी, जो जल्दी ही धक्कामुक्की और मारपीट में बदल गयी। इसके पश्चात खालिस्तानियों ने अपने ध्वज दिखाने और नारेबाजी करनी शुरू कर दी।
इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें भारतीय समर्थक तिरंगा झंडा दिखा रहे हैं तो वहीं खालिस्तानी समर्थक खालिस्तान का झंडा दिखा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इसके पश्चात खालिस्तानियों ने भारतीय ध्वज का अपमान किया, जिससे गुस्सा हो कर भारतीय लोगों ने खालिस्तानियों को मुहतोड़ जवाब दिया और भारतीय समुदाय का गुस्सा और प्रतिरोध देखकर खालिस्तानी तत्व वहां से चले गए।
पुलिस के अनुसार इस हिंसक झड़प में एक व्यक्ति घायल भी हुआ है, जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उसका उपचार चल रहा है। हालांकि पुलिस ने अभी तक किसी भी खालिस्तानी समर्थक को गिरफ्तार नहीं किया है। पुलिस कांस्टेबल मनदीप खत्रा के अनुसार दिवाली पर अलग-अलग झड़पें हुई हैं, सौभाग्य से कोई बड़ी हिंसक घटना नहीं हुई है।
उन्होंने आगे बताया कि हमें जानकारी मिली कि दो गुटों के बीच लड़ाई हुई है, जिसके पश्चात पुलिस मौके पर पहुंची। वहां सैंकड़ों लोग एकत्रित थे, जो दिवाली का त्यौहार मना रहे थे। वहीं कुछ लोगों के बीच लड़ाई भी हो रही थी। पुलिस ने वहां पहुंच कर दोनों पक्षों से शान्ति रखने का निवेदन किया। दिवाली के कारण इलाके में पुलिस की अतिरिक्त तैनाती थी, इस घटना के पश्चात पुलिस दल ने रात भर गश्त की।
स्थानीय लोगों ने अनुसार पिछले कुछ समय से खालिस्तानी समर्थक भारतीयों के विरुद्ध इस तरह के हिंसक हमले कर रहे हैं। इसके पहले भी ब्राम्पटन शहर में निर्मित श्रीमद् भगवद् गीता पार्क में तोड़फोड़ हो चुकी है, जिस पर स्थानीय प्रशासन ने किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की थी। पुलिस मात्र दिखावे के लिए कार्यवाही करती है, लेकिन कभी भी खालिस्तानी तत्वों को गिरफ्तार नहीं करती, जिसके कारण उन लोगों का मनोबल बहुत बढ़ गया है।
कनाडा में खालिस्तानी आतंक को पुनर्जीवित करने का षड्यंत्र
मिस्सीसौगा में खालिस्तान समर्थकों की हिंसा एक तरह से भारत के विरुद्ध खालिस्तानी आतंक को पुनर्जीवित करने के षड्यंत्र का ही एक हिस्सा है। इस तरह की हिंसा से खालिस्तानी आतंकी कनाडा में रह रहे भारतीयों पर दबाव बनाने का प्रयत्न करते हैं, जिससे उन्हें डरा कर उनका समर्थन लिया जा सके और फिर उनका दुरूपयोग खालिस्तानी रेफेरेंडम जैसे कार्यक्रम में किया जा सके।
आपको ज्ञात ही होगा कि कनाडा के कई शहरों में प्रतिबंधित ‘सिख फॉर जस्टिस’ नामक भारत विरोधी आतंकवादी संगठन एक जनमत संग्रह करवा रहा है। इस जनमत संग्रह को कनाडा सरकार का आंतरिक रूप से समर्थन माना जा रहा है। इस संदर्भ में भारत ने अपने नागरिकों के लिए 22 सितंबर को एडवायजरी भी जारी की थी, जिसमें हिंसा, हमले और उकसावे की कार्रवाई के प्रति उन्हें सावधान रहने को कहा गया था।
स्वतंत्र खालिस्तान के नाम पर यह संगठन कनाडा, अमेरिका और इंग्लैंड के प्रवासी भारतीय सिख समुदाय को भड़काने का काम करता है। सिख फॉर जस्टिस के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू को भारतीय सरकार ने आतंकियों की सूची में डाला हुआ है। उसकी संपत्तियों को भी एनआईए ने जब्त कर लिया है। लेकिन इसके पश्चात भी यह संगठन अपनी भारत विरोधी गतिविधियों से बाज नहीं आ रहा है।
ऐसा माना जाता है कि कनाडा की सरकार के कई मंत्री इस संगठन को खुल कर समर्थन करते हैं । वहीं प्रवासी भारतीय व्यवसायी भी इस संगठन को आर्थिक सहायता करते हैं, इसी के साथ इन देशों में जो गुरूद्वारे हैं, उनके प्रबंधन समिति में भी खालिस्तानी तत्वों का बोलबाला रहता है । यह एक बड़ा कारण है कि प्रवासी सिख समुदाय के लोगों को खालिस्तानी आसानी से प्रभावित कर लेते हैं। खालिस्तानी आंदोलन को परदे के पीछे से पाकिस्तान की सरकार और उनकी खुफिया एजेंसी आईएसआई खुला समर्थन देती है।
लेकिन एक बात और समझना आवश्यक है कि इस प्रकार के आतंकी संगठन और अलगाववादी आंदोलनों को समर्थन करने वालो को ही एक ना एक दिन हानि उठानी पड़ती है। कनाडा की सरकार अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए अभी इन तत्वों का समर्थन कर रही है, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब यही लोग कनाडा में कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर देंगे, और तब इन्हे नियंत्रित करना कनाडा के प्रशासन के लिए अत्यंत कठिन हो जाएगा।
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