जैसा कि उम्मीद की जा रही थी, जॉर्ज फ्लोएड की बेरहमी से पुलिस हत्या के बाद अमेरिका में रेस के दंगे भड़कने के साथ ही बॉलीवुड उदारवादी भी उनके साथ खड़े दिखाई दिए।”ब्लैक लाइव्स मैटर” या इसके रूपांतर “ऑल लाइव्स मैटर” को उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल पर प्रदर्शित किया जा रहा है।
बेबाकी से अपने मन की बात सबके सामने रखने, या कभी भी किसी के भी दबाव में ना आने के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री, कंगना राणावत ने पिंकविला पत्रिका की एक ऑनलाइन साक्षात्कार के दौरान एक बहुत ही मान्य बिंदु उठाया है: “जब पालघर, महाराष्ट्र, में कुछ ही दिनों पहले हिंदू साधुओं की निर्मम हत्या हुई तब तो इनमे से किसी ने भी एक आवाज तक नहीं उठाई, जबकि इनमें से अधिकांश हस्तियां यहीं महाराष्ट्र में निवास करती हैं।”
यही सवाल कई आम लोगों के मन में भी उठा था जो कि पालघर में हुई क्रूरता से बहुत दुखी थे, जहां की डरावनी फुटेज में एक 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरी महाराज को पुलिसकर्मी द्वारा भीड़ के हवाले करते हुए देखा गया था जबकि वह बुजुर्ग साधु पुलिसकर्मी से दया और मदद की गुहार करते रहे। इतने भयावह तरीके से एक कोमल, पवित्र आत्मा को मौत के घाट उतारने की छवि बॉलीवुड उदारवादी गिरोह की आत्मा को झिंझोडने के लिए पर्याप्त नहीं थी, जैसा कि कंगना ने सही ही कहा है।
अमेरिका में प्रदर्शनकारियों द्वारा शुरू किए गए “ब्लैकआउट ट्यूसडे” आंदोलन के लिए अपना समर्थन प्रदर्शित करने वालों में से एक करीना कपूर खान थीं, पटौदी की बेगम, जिन्होंने अपने बेटे का नाम 14वीं सदी के एक नरसंहारी आक्रमणकारी के नाम पर रखा है, जो कभी राहुल गांधी को डेट करना चाहती थी। उन्होंने विभिन्न रंगों के लोगों के साथ अपनी एकजुटता दिखाई।
याद दिला दें, कि यह वही करीना कपूर हैं जिन्होंने कभी बिपाशा बसु को “काली बिल्ली” कहकर अपमानित किया था, यह भूलते हुए की उन्हें तो कपूर खानदान से होने की वजह से इंडस्ट्री में विशेषाधिकार प्राप्त था परंतु बिपाशा बसु ने सिर्फ अपनी कड़ी मेहनत के बल पर इंडस्ट्री में प्रवेश किया और अपना एक मुकाम बनाया था।
करीना ने कठुआ बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए सूचना पत्रक (प्लेकार्ड) भी उठाया था, लेकिन मुस्लिम अपराधियों द्वारा किए गए हिंदू बच्चों के बलात्कारों के मुकदमों पर चुप्पी बनाए रखी थी। लेकिन फिर, हम करीना को भी पूरी तरह से दोष नहीं देते हैं। जो अभिनेत्री जब पूरे देश में मंगलयान के बारे में बातें चल रही थी तब उन्हें इसके बारे में कोई इल्म नहीं था, उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उन्हें भारत में चल रहे हर महत्वपूर्ण मुद्दे का ज्ञान होगा। शायद वह वही पोस्ट करती हैं जिसका उन्हें निर्देश दिया जाता है।
वर्षों से हमने देखा है कि अधिकांश बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेत्री सिर्फ शैक्षणिक रूप से सामान्य औसत से कम नहीं है, बल्कि स्थानीय और वैश्विक घटनाओं से भी अनजान होते हैं। इनमें से अधिकतर कभी किसी सिद्धांत, आंदोलन या संगठन के साथ अपनी आवाज नहीं उठाते बल्कि सिर्फ उन आंदोलनों को अपनी आवाज किराए पर देते हैं जो इन्हें ज्यादा से ज्यादा पैसे देते हैं। इस “पेड पीआर” (PR) का एक उपयुक्त प्रदर्शन हमने तब देखा जब महाराष्ट्र सरकार और सीएम उद्धव ठाकरे के द्वारा राज्य में कोरोना महामारी से निपटने का सबसे असफल प्रदर्शन होने के बावजूद, बॉलीवुड सेलेब्स उनका समर्थन करते हुए दिखाई दिए। इस तरह यह साबित होता है कि मनोरंजन उद्योग से प्रेरक आवाजों को किराए पर लाना मुश्किल नहीं, या उन्हें प्रचलित वाम उदारवादी एजेंडा के अनुसार किसी फिल्म के प्रचार के लिए मनाना मुश्किल नहीं। अभिनेता, निर्देशक, और गायक, युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं, इसलिए सतही ज्ञान या बिना किसी ज्ञान के भी वह लोगों के विचारों को आसानी से प्रभावित कर सकते हैं।
करीना के अलावा कई अन्य बॉलीवुड हस्तियों ने भी अपने इंस्टाग्राम को काला करके अमेरिकी पुलिस क्रूरता का विरोध करने के लिए “ब्लैकआउट ट्यूसडे” मनाया, परंतु करीना की ही तरह मुंबई के इन सभी सैलैब्स में से किसी ने भी पालघर में दो हिंदू साधुओं और उनके ड्राइवर की क्रूर हत्या के लिए निंदा का एक शब्द भी नहीं बोला, जब की इस घटना स्थल से बॉलीवुड की करिश्मा कपूर, तारा सुतारिया और कृति खरबंदा सिर्फ 2 घंटे की दूरी पर रहती हैं।
उनके पास शिवसेना- कांग्रेस- एनसीपी शासन और महाराष्ट्र पुलिस के लिए अस्विकृति या निंदा के कोई शब्द नहीं थे, जो कि पालघर पीड़ितों पर हो रहे अत्याचार को चुपचाप खड़े देखते रहे। जब पश्चिम बंगाल में शांतिपूर्ण विरोध करने वाले 2 छात्रों को ममता बनर्जी की पुलिस ने सितंबर 2018 में गोली मार दी थी, तब भी मुंबई या कोलकाता फिल्म उद्योग का कोई भी अभिनेता विरोध में नहीं उठा था। लेकिन वे सभी जॉर्ज फ्लोएड के लिए न्याय मांगने के लिए कूद पड़े। यह अलग बात है कि अमेरिका में कोई भी इस बात की परवाह नहीं करता कि इन लोगों को उनकी सरकार के बारे में क्या कहना है, पर “कूल” और “वैश्विक” दिखने की ललक इन “अमेरिकी दिखना चाहने” वालों में कितनी स्पष्ट है, यह शर्मनाक है। बेशक, पाखंडी हैं यह लोग।
दीया मिर्जा, एक थमे हुए अभिनय कैरियर के बाद सक्रियतावाद में अपना हाथ आजमा रही हैं। वह किताबों से सजी एक शेल्फ के सामने, लकड़ी के फर्श वाले अपने भव्य ड्राइंग रूम में खड़ी हो कर पर्यावरण के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आंसू बहाती हैं। अमेरिका में हुए दंगों के साथ सहानुभूति रखने के लिए, “रहना है तेरे दिल में” की अभिनेत्री ने इस मामले की सतही समझ के साथ एक प्रारंभिक इंस्टाग्राम पोस्ट किया। उसने अपनी पोस्ट में एक अनुदारवादी हैशटेग का प्रयोग किया, जिसने पश्चिम के क्रोधित उदारवादियों के झुंडो के रोष को आमंत्रित किया। उनके खिलाफ उन्हीं श्रोताओं द्वारा “बिंबो” “डंबो” “अज्ञानी” जैसे कुछ बहुत ही कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया गया, जिन्हें लुभाने का उनका लक्ष्य था। अर्ध-सूचित अभिनेत्री ने तब अपने लक्षित दर्शकों के अनुरूप अपने पोस्ट को चुपचाप संपादित कर दिया।
उदाहरण तो बहुत हैं लेकिन निष्कर्ष सबका समान है। अधिकांश बॉलीवुड, भारत या हिंदुओं के लिए खड़ा नहीं होता, जैसे कि कंगना राणावत ने सही कहा है, “यह उनके लिए शर्म की बात है कि वे एक बुलबुले में रहते हैं और कभी भी उस बैंडवैगन (गाडी) पर कूदने में असफल नहीं होते जो उन्हें 2 मिनट की प्रसिद्धि दिला सकता है, बशर्ते कि गोरे लोग उस बैंडवैगन को चला रहे हों। शायद यह उनकी स्वतंत्रता के पूर्व की औपनिवेशिक गुलामी वंशाणु (जीन) के कारण है।”
(रागिनी विवेक कुमार द्वारा इस अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद)
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