गला दबाकर मार दिया गया था विलियम टिंडेल को मात्र बाइबिल के अंग्रेजी अनुवाद के लिए और फिर असहिष्णु कहा गया सनातन को! हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुवाद लगभग हर भाषा में प्राप्त होते हैं, फिर चाहे वह यूरोपीय भाषाएँ हों, अरबी हों, फारसी हों या फिर और कोई। उन्हें सहजता से अनुवाद किया जाता रहा, कभी प्रभावित होकर तो कभी एजेंडा से संचालित।
परन्तु आज तक इतिहास में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है जब हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुवाद के कारण किसी को मृत्यु दंड दिया गया हो। रामायण और महाभारत का अनुवाद फारसी के विद्वानों ने किया। उपनिषदों का अनुवाद किया गया। मगर सनातन इतना विराट है कि वह अपनाता गया। परन्तु सबसे दुखद यह है कि उसके बाद ही सनातन पर ही सबसे अधिक प्रहार हुए। वहीं विलियम टिंडेल को केवल अपने रिलिजन के लिए अपनी भाषा में बाइबिल का अनुवाद करने के लिए मार डाला गया था।
वह सोचता था अपने मन से, वह विचारता था अपने मन से, उसने बाइबिल को पढ़ा और चाहा कि उसने जो समझा है वह उसे जनता के सामने लाए! विलियम टिंडेल ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षित था और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक इंस्ट्रक्टर बन गया था, जहाँ पर वर्ष 1521 में वह मानवतावादी विचारकों के संपर्क में आया। और वहीं पर उसे यह अनुभव हुआ कि बाइबिल एकमात्र ऐसी पुस्तक है जिसके दिशानिर्देश में चर्च के सभी निर्देश होने चाहिए और हर ईसाई रिलिजन का पालन करने वाला हर व्यक्ति बाइबिल को अपनी भाषा में समझने में सक्षम हों।
शिक्षित विलियम टिंडेल विलियम टिंडेल (William Tyndale) बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद करना चाहता था। सोलहवीं शताब्दी में उस समय हेनरी अष्टम का शासन था। उस समय तक बाइबिल का अनुवाद हालांकि Wycliffe के द्वारा हो चुका था, पर वह प्रतिबंधित था, काला बाजार में Wycliffe के द्वारा किया गया अनुवाद उपलब्ध था पर हर कोई उसे खरीद नहीं सकता था। क्योंकि चर्च के अनुसार एवं अधिकारियों के अनुसार वह व्यक्तिगत विचारों के अनुसार अनुवाद किया गया था, यही कारण था कि वह बाज़ार में नहीं था।
इसलिए विलियम टिंडेल (William Tyndale) ने बाइबिल का अंग्रेजी अनुवाद करने का निर्णय किया। वह जानता था कि वह यह काम कर सकता है पर उसे यह भी पता था कि इतने बड़े काम के लिए उसे पैसे की जरूरत होगी और लंदन में उसकी मदद के लिए कोई नहीं था, यहां तक कि उसका सबसे अच्छा दोस्त लंदन का बिशप Cuthbert Tunstall भी नहीं। चर्च की राजनीति सबसे बढ़कर थी।
विलियम टिंडेल (William Tyndale) ने जर्मनी का रूख किया। वहां पर उसने बाइबिल का अनुवाद करने का फैसला किया, पर बाइबिल की प्रिटिंग को रूकवा दिया गया। विलियम टिंडेल (William Tyndale) वहां से भागने में सफल हुआ। यह कहानी आने वाले सालों में कई बार दोहराई गई। पर कुछ सालों में विलियम टिंडेल (William Tyndale) बाइबिल का अनुवाद अंग्रेजी में करने में सफल हुआ और चर्च की निगाह में सबसे बड़ा दुश्मन बन गया।
इंग्लैंड व रोम में उसके खिलाफ अभियान छिड़ गया था। वह अपनी जान बचाने के लिए भेष बदल कर रह रहा था। न केवल विलियम टिंडेल (William Tyndale) बल्कि उसकी बाइबिल के साथ किसी भी तरह से सम्बंधित व्यक्ति की जान खतरे में थी। इंग्लैंड में थॉमस हिल्टन जो कि विलियम टिंडेल (William Tyndale) से युरोप में मिला था, उसे पकड़ा गया और जिंदा जला दिया। थॉमस बिल्ने (Thomas Bilney) नामक एक वकील जिस पर विलियम टिंडेल (William Tyndale) के साथ संबंध रखने का शक था, उसे भी जिंदा आग की लपटों में फेंक दिया गया। विलियम टिंडेल (William Tyndale) के शुरूआती समर्थक रहे Richard Bayfield पर काफी अत्याचार किए गए।
पर हेनरी अष्टम की सत्ता विलियम टिंडेल (William Tyndale) को पकड़ना चाहती थी और दंड देना चाहती थी। काफी आंख मिचौली के बाद 1535 में विलियम टिंडेल (William Tyndale) पकड़ में आया और बाइबिल के अंग्रेजी अनुवाद के अपराध के लिए उसे गला दबाकर मारा गया और फिर उसके शव को जला दिया गया। विलियम टिंडेल को heresy का दोषी पाया गया अर्थात धर्म के विरुद्ध मत रखने का, या फिर चर्च के विरोध में जो होगा वह heresy का दोषी है।
परन्तु इस विषय में यह भी कहा जाता है कि विलियम टिंडेल को हेनरी अष्टम ने मृत्युदंड दिया और उसमें कैथोलिक चर्च का कोई हाथ नहीं था। पर फिर https://christianhistoryinstitute.org/magazine/article/bible-translator-who-shook-henry-viii में एक क़ानून का वर्णन है कि उस समय एक चर्च का क़ानून लागू था जो 1408 में लागू हुआ था और जिसमें लिखा था कि देशी भाषाओं में बाइबिल के सभी अनुवाद पूर्णतया प्रतिबंधित है, जब तक कि उसे चर्च से अनुमति न मिल जाए।
उसके बाद टिंडेल के वध में हेनरी अष्टम की राजनीति की भी बात होती है, परन्तु उसका वध मात्र इसी कारण आधिकारिक रूप से किया गया था क्योंकि उसने बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया था, जो अपराध था।
असहिष्णुता की यह कहानी इसलिए बताना आवश्यक है क्योंकि जहां भारत में जहां एक धार्मिक ग्रथों के अनुवाद व पुर्नपाठ हुआ करते थे, एक के बाद दूसरी स्मृतियां लिखी जा रही थीं, न केवल रचनाओं के पुर्नपाठ हुआ करते थे बल्कि सहमत न होने पर अपना अलग ग्रंथ ही लिखने की स्वतंत्रता थी, वहीं पश्चिम के रिलीजन में धार्मिक ग्रंथ के अनुवाद करने पर भी जिंदा जला दिया जाता था। वहीं भारत में अनुवाद या ग्रंथों के पुर्नपाठ पर किसी भी तरह के दंड तक का इतिहास नहीं है। उस सनातन पर असहिष्णु होने का आरोप वह लोग लगाते हैं जो विलियम टिंडेल (William Tyndale) जैसे न जाने कितने लोगों को जलाकर अपने रिलीजन को सर्वश्रेष्ठ ठहराते हैं।
आज जब हम श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मना रहे हैं, तो वह अभिव्यक्ति और भक्ति के सर्वोच्च शिखर हैं, जिनकी भक्ति में सूरदास, मीराबाई तो रचती ही हैं, परन्तु ताज जैसी मुस्लिम महिला भी अपने मन से अपने कृष्ण को लिखती हैं।
जो अनुवाद तक को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, वह प्रगतिशील हो गए और जिस सनातन ने मुस्लिम ताज तक को सम्मान दिया, वह पिछड़ा हो गया।
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