विश्वकप में भारत की टीम तो पाकिस्तान से दस विकेट से हारी ही, साथ ही कुछ ऐसा किया, जिसने भारत को और पराजित कर दिया। भारत को ही नहीं, खेल भावना और भारत की भावना को भी पराजित कर दिया। क्रिकेट का मैदान, जहाँ पर खेल खेला जाना था, वहां पर उस मुद्दे को उठाया गया, या कहें एक ऐसे विषय पर घुटने पर टीम बैठ गयी, जिस मुद्दे का या जिस विषय का भारत से कोई भी लेना देना नहीं था।
कल भारत का मुकाबला ऐसे देश के साथ था, जिसके खिलाड़ी “दो-राष्ट्र” वाले सिद्धांत पर विश्वास करते हैं। हरभजन सिंह और शोएबअख्तर के बीच का वह वीडियो बहुत वायरल हो रहा है, जिसमें हरभजन सिंह कह रहे हैं कि आप बताइए कि आप भारत से कितना प्यार करते हैं और हम एक ही हैं, तो शोएब अख्तर यह कहते हैं कि हम टू नेशन थ्योरी में यकीन करते हैं। हमारी एक आइडियोलोजी है, अगर हम उस पर जाएँगे, तो यह बहस लम्बी हो जाएगी
अर्थात एक ऐसा देश जो, भारत के लोगों के प्रति टू-नेशन वाले सिद्धांत को अपनी पहचान बताता है, वह भारत के प्रति सैद्धांतिक घृणा से भरे हैं। मगर भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो कहने के लिए शिक्षित हैं, परन्तु ऐसे देश के प्रति उनके दिल में बहुत प्रेम है, जो भारत के साथ अलग होने को सही ही नहीं ठहराते हैं, बल्कि भारत के अस्तित्व से ही घृणा करते हैं।
पाकिस्तान द्वारा जीत के बाद विराट कोहली की रिजवान के साथ गले लगाती हुई तस्वीर वायरल हुई और उसे खेल भावना कहा गया। और मैच के बाद विराट कोहली ने कहा कि टीम घुटने पर इसलिए बैठी थी क्योंकि उन्हें प्रबंधन द्वारा यह सन्देश आया था और पाकिस्तान टीम भी इस मामले पर श्रद्धांजलि देने के लिए सहमत हो गयी थी।
टीम इंडिया की वह घुटने पर बैठी तस्वीर बहुत बहुत कुछ कहती है। हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि यह आईसीसी का निर्णय था! पर अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब पाकिस्तान के ही रमीज रजा ने कहा था कि भारतीय कारोबारी घराने ही पाकिस्तानी क्रिकेट को चला रहे हैं।
और यदि भारत के प्रधानमंत्री यह चाह लें कि हमें बर्बाद करना है, तो हम बर्बाद हो जाएंगे।
अर्थात बीसीसीआई की शक्ति बहुत अधिक है और वह अपनी बात मनवा सकती है, तो ऐसा क्या था कि बीसीसीआई ने इस वामपंथी अभियान और जो देश को तोड़ने वाला अभियान था उसके आगे समर्पण कर दिया? ब्लैकलाइव्समैटर्स एक ऐसा अभियान था जो ट्रंप के हटते और बिडेन के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका से समाप्त हो गया, तो ऐसे में आईसीसी का इस प्रकार के राजनीतिक अभियान को आरम्भ करने का उद्देश्य क्या था?
भारतीय टीम अभी तक आक्रामक खेलती रही थी, और यही कारण था कि भारतीय टीम जीतती थी, परन्तु वामपंथ का कीड़ा सबसे पहले आक्रामकता छीनकर एक अजीब प्रकार की कायरता उत्पन्न करता है। उस विषय के लिए घुटने पर बैठना, जो अब गायब हो चुका है, वोक लिब्रल्स को मान्यता प्रदान करना है, जिनके लिए हिन्दू धर्म सबसे पिछड़ा है।
भारत स्वयं रंगभेद के प्रति लड़ाई में आगे रहा है और दक्षिण अफ्रीका की टीम के बहिष्कार का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। तभी घुटने पर उस मामले के लिए बैठने का कोई औचित्य ही नहीं था, जिसका दूर दूर तक लेनादेना भारत के परिप्रेक्ष्य में नहीं था। जबकि सच कहा जाए तो भारतीय मूल के लोग कैरिबियाई देशों की संयुक्त टीम, जिसे हम वेस्ट इंडीज़ कहते हैं, में रंग भेद का शिकार होते हैं और उन्हें अश्वेत वर्चस्व वाले देशों में उनकी त्वचा के रंग के कारण शिकार होना पड़ता है।
परन्तु आईसीसी का ध्यान इस समय उस मामले पर क्यों नहीं गया, जो उनके ही खिलाड़ियों के साथ एक देश में हो रहा है? और मुस्लिम वर्चस्व वाले देश में हो रहा है! हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आई है और उसने अफगानिस्तान में उन खिलाड़ियों के पक्ष में आवाज़ इस प्रकार से सार्वजनिक मंच से आवाज़ नहीं उठाई है, जिनका खेलना ही लगभग प्रतिबंधित है। अभी तक महिला क्रिकेट टीम के लिए कोई स्पष्टता नहीं आई है और अफगानिस्तान की महिला क्रिकेटर ने तो यहाँ तक दावा किया था कि आईसीसी ने कोई मदद नहीं की थी।
अफगानिस्तान क्रिकेट टीम की सदस्य रोया शमीम अपनी दो बहनों के साथ कनाडा चली गयी थीं और उन्होंने कहा कि सभी महिला खिलाडियों ने आईसीसी से मदद माँगी थी, मगर आईसीसी ने नहीं दी थी। और इस कारण उन्हें देश छोड़ने पर विवश होना पड़ा था।
ऐसा क्या कारण है कि अपनी ही खिलाड़ियों के लिए आवाज़ न उठाने वाली आईसीसी उस राजनीतिक मामले के लिए आवाज उठा रही है, जो एक विशेष उद्देश्य के लिए ही उठाया गया था? इतना ही नहीं हाल ही में अफगानिस्तान में एक युवा महिला खिलाड़ी की सिर काटकर हत्या कर दी गयी थी, मगर आईसीसी ने उन जिहादी तत्वों के द्वारा खेल जगत को मिलने वाली चुनौती के लिए आवाज नहीं उठाई? फिर राजनीतिक मामला क्यों?
अपने घुटने पर बैठी भारतीय क्रिकेट टीम की तस्वीर और वह भी एक ऐसे मामले के लिए जिसका कोई भी लेनादेना भारत से है ही नहीं, लोगों के सामने आई तो भारतीयों का गुस्सा फूट पड़ा! और इन्टरनेट पर लोगों ने इसका विरोध करना आरम्भ कर दिया और फिर कई बहुत ही रोचक प्रश्न सामने आए! भारत के खिलाड़ियों से ही प्रश्न था और प्रश्न तो बांग्लादेश के खिलाडियों से भी होना चाहिए कि क्या वह लोग बांगलादेश में मारे गए हिन्दुओं के लिए इस प्रकार बैठे? या फिर उनकी जान इतनी सस्ती थी, कि उस विषय में बात ही नहीं की जा सकती है?
और मजे की बात यही है कि उस देश के लिए आवाज उठाई, जहाँ पर क्रिकेट खेला भी नहीं जाता है!
एक यूजर ने अफगानिस्तान में हिन्दू और सिखों के पूरी तरह से गायब हो जाने पर चुप्पी पर प्रश्न किया
यह भी देखना रोचक है कि दक्षिण अफ्रीका के 5 खिलाडियों ने ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए मैच में इस प्रकार से घुटने पर बैठने से इंकार कर दिया था।
इस मामले में बीसीसीआई की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। ऐसी भी मांग उठी
अभी तक इस शोर के बीच बीसीसीआई अपने उत्तरों के साथ सामने नहीं आई है और यह भी नहीं कहा है कि आखिर यह क्यों हुआ और यदि भेदभाव और अन्याय ही दिखाना था तो अफगानिस्तान में अपने खेल की टीम के साथ वह क्यों नहीं खड़ी हुई?
अपने ही पड़ोसी देश बांग्लादेश, जिनकी टीम वहां खेल रही है, में हिंदुओं के साथ हुई सुनियोजित हिंसा के विरुद्ध क्यों नहीं खड़ी हुई?