खेलों के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा। खेलों के लिए दिया जाने वाले इस सर्वोच्च पुरस्कार को हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के नाम पर दिए जाने की मांग काफी समय से हो रही थी। कल ओलम्पिक्स में हॉकी में भारत की पुरुषों की टीम ने कांस्य पदक जीता था तो आज भारत की हॉकी महिला टीम भी सेमीफाइनल में पहुंचकर कर ब्रिटेन से हारी। परन्तु फिर भी यह भारत के लिए उपलब्धि ही है। और इसी बहाने बार बार यह मांग उठ रही थी कि अब सही समय है जब हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद को सम्मान दिया जाए और खेल का सर्वोच्च पुरस्कार उन्हीं के नाम पर क्या जाए!
आज भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि
“देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाए। लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है।“
देश को गर्वित कर देने वाले पलों के बीच अनेक देशवासियों का ये आग्रह भी सामने आया है कि खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद जी को समर्पित किया जाए। लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है।
जय हिंद!
— Narendra Modi (@narendramodi) August 6, 2021
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1991-92 में की गयी थी। और इसे देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के नाम पर रखा गया था। और इसे खेल के क्षेत्र में प्रोत्साहन के लिए दिया जाता है। हालाँकि इसके नाम को लेकर कई वर्षों से विरोध हो रहा था और लोग पूछते थे कि स्वर्गीय प्रधानमंत्री का आदर तो ठीक है, परन्तु खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला पुरस्कार तो खेल से जुड़े व्यक्ति के ही नाम पर होना चाहिए।
और बार बार जनता की ओर से यह मांग की जाती थी कि इस पुरस्कार का नाम हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद के नाम पर दिया जाए।
कौन थे मेजर ध्यानचंद:
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1926 से 1949 तक हॉकी खेली थी और उन्होंने 185 मैचों में 570 गोल किए थे। उनका नाम ध्यान सिंह था, मगर चूंकि वह रात में ही अपने खेल की प्रैक्टिस किया करते थे। इसलिए उनके नाम के आगे चंद जुड़ गया था।
कहा जाता था कि उनकी हॉकी में चुम्बक था और बॉल अपने आप ही उनकी ओर चली आती थी। उन्होंने 1928, 1932 और फिर 1936 में ओलंपिक्स में अपने देश को स्वर्ण दिलाया था। उस युग में भारत हॉकी के क्षेत्र में पूरे विश्व में राज करता था। मेजर ध्यान चंद ने 12 मैचों में 37 गोल किए थे और उनके भाई रूप सिंह भी बहुत शानदार हॉकी खिलाड़ी थे और उनके साथ ही खेलते थे।
वर्ष 1936 बर्लिन ओलंपिक्स में तो हिटलर भी भारत और जर्मनी के मैच में मौजूद था और मेजर ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने सेना में सबसे ऊंचे पद का प्रस्ताव दिया था। मगर मेजर ध्यानचंद ने इतने बड़े तानाशाह से न डरते हुए इस प्रस्ताव को सहजता से इंकार कर दिया था। इससे उनकी निर्भीकता, साहस एवं देश प्रेम का भी बोध होता है!
वह कितने महान खिलाड़ी थे इसका पता उससे भी चलता है कि उनकी हॉकी स्टिक को एक बार तुड़वाकर देखा गया था कि कहीं इसमें चुम्बक तो नहीं है।
मेजर ध्यानचंद वर्ष 1956 में सेना से मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए और झांसी में रहने लगे थे और उनके पुत्र अशोक कुमार सिंह भी 1970 में भारत की हॉकी टीम के सदस्य थे और उन्होंने ही 1975 विश्व कप प्रतियोगिता में जिताऊ गोल किया था।
29 अगस्त को मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन भारत में हर वर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के इस निर्णय के बाद भारत के खेलप्रेमियों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। और ट्विटर पर भी काफी संख्या में लोगों का संतोष झलक रहा है। लोग कह रहे हैं कि यह एक उचित निर्णय है। हॉकी के इस जादूगर के नाम पर ही देश में खेल का सर्वोच्च पुरस्कार दिया जाना चाहिए, यही कृतज्ञ राष्ट्र की उनके प्रति श्रद्धांजलि है
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