कांग्रेस के राहुल गांधी इन दिनों ‘भारत जोड़ो’ यात्रा पर हैं और दिनों दिन उनके ऐसे बयान वायरल हो रहे हैं, जो समाज के लिए ठीक नहीं हैं। ऐसा लग रहा है जैसे वह वही विमर्श आगे लेकर जा रहे हैं, जो हिन्दुओं के एक ऐसे वर्ग को लक्षित कर रहा है जिसे सदियों से परम्पराओं के निर्वहन को लेकर निशाने पर लिया जा रहा है!
इन दिनों कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को ‘तपस्वी’ बताए जाने की होड़ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा जारी है, और बार-बार उनके इस सर्दी में टीशर्ट पहने जाने को ‘तपस्या’ बताया जा रहा है। यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि कैसे इस नितांत व्यक्तिगत बात को हिन्दू धर्म की तपस्या के साथ जोड़ा जा रहा है और आखिर क्या तपस्या का अर्थ भी कांग्रेस के इन रणनीतिकारों को पता है, यह भी एक प्रश्न है?
तपस्या का अर्थ क्या है और तपस्वी का अर्थ क्या है? इतना ही नहीं राहुल गांधी की टीशर्ट को लेकर यह कहा गया कि इतनी सर्दी में केवल तपस्वी ही टीशर्ट में घूम सकता है! हिन्दू धर्म की अवधारणाओं को इतना नीचे क्यों समझ लिया जाता है?
‘सॉफ्ट हिन्दू’ की अवधारणा का विकास करने के लिए क्या राहुल गांधी के सलाहकार इस हद तक बेचैन हो गए हैं कि वह तपस्वी की अवधारणा को ही बदनाम करने के लिए आग्रही हो गए हैं। इस बार वह इस हद तक राहुल गांधी को तपस्वी साबित करने के लिए जमीन आसमान एक कर रहे हैं कि हास्यास्पद एवं हिन्दुओं के प्रति अपमानजनक हो रही है। उन्होंने हरियाणा में कहा कि कांग्रेस तपस्या का संगठन है जबकि भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि लोग उनकी पूजा करें। यह देश तपस्वियों का है पुजारियों का नहीं!
फिर उन्होंने यह भी कहा कि “गीता में कहा गया है कि कर्म करो, फल की चिंता न करो! जब अर्जुन मछली की आँख पर निशाना लगा रहे थे तो उन्होंने यह नहीं कहा कि निशाना लगाने के बाद वो क्या करेंगे!”
यह दोनों ही वक्तव्य हिन्दू धर्म के लिए अपमानजनक हैं। क्योंकि पहला वक्तव्य तो पुजारियों पर सीधा-सीधा आघात है और यह प्रहार है कि उस वर्ग पर जो तमाम परम्पराओं और धार्मिक मान्यताओं को सहेजकर रखे है और उन्हें आने वाली पीढ़ियों को प्रदान करता है। यह देश पुजारियों का नहीं है, कहकर क्या राहुल गांधी उन तमाम मंदिरों के पुजारियों पर हो रहे हमलों को सही नहीं ठहरा रहे हैं, जिन पर हर आए दिन हमले हो रहे हैं?
यदि राहुल गांधी यह कहते हैं कि यह देश पुजारियों का नहीं है तो क्या वह पालघर में साधुओं पर हुए हमलों का समर्थन नहीं कर रहे हैं? राजनीति में अपने विरोधियों पर आक्रमण एक परम्परा है और यह होना भी चाहिए, परन्तु इसके लिए हिन्दू धर्म के एक बड़े वर्ग पर हमला करना कहाँ की परम्परा है?
इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर ही नहीं पुरोहित और पुजारी वर्ग द्वारा भी उनका विरोध किया जा रहा है। राहुल गांधी के पुजारी वाले बयान पर वरिष्ठ पत्रकार हर्ष वर्धन त्रिपाठी ने सही ही पीड़ा व्यक्त की कि राहुल जी हिम्मत करके पुजारियों, ब्राह्मणों का बहिष्कार कर दीजिये, हैं ही कितने?
परन्तु एक ओर राहुल गांधी यह कह रहे हैं कि यह देश पुजारियों का देश नहीं है तो वहीं वह पुजारियों से दिशा निर्देश लेते हुए दिख रहे है। यह कैसी विसंगति की बात कर रहे हैं राहुल गांधी?
राहुल गांधी के इस बयान को लेकर पुजारी वर्ग में बहुत आक्रोश है। संत समाज ने राहुल गांधी के बयान की निंदा की है और उसे आहत करने वाला बताया है।
और उन्होंनें गीता के उस कथन की भी विकृत व्याख्या ही की है। महाभारत में अर्जुन जब द्रौपदी के स्वयंवर में लक्ष्य साध रहे थे तो उनके मस्तिष्क में पूरी तरह से स्पष्ट था कि उन्हें क्या करना है! वह द्रौपदी को पाने के लिए ही मछली की आँख में निशाना लगा रहे थे। यह बात महाभारत में पूरी तरह से स्पष्ट है। क्या स्वयंवर बिना किसी लक्ष्य के हुआ करते थे? स्वयंवर में रखी गयी शर्त स्वयं में ही यह बताती थी कि इसका लक्ष्य क्या है और उसके बाद क्या करना है?
और राहुल गांधी ने अर्जुन के प्रति भी अपमानजनक तरीके से बोला है कि जब “अर्जुन मछली की आँख में तीर मार रहा था तो क्या उसने कहा कि आँख में तीर मारने के बाद मैं क्या करूंगा!” अर्जुन जो श्री कृष्ण के मित्र थे, जो साक्षात धर्म का पर्याय थे उनके लिए राहुल जी जिस प्रकार से बोल रहे हैं, वह अत्यंत ही क्षोभ से भरने वाला है!
इतना ही नहीं राहुल गांधी ने तो पांडवों के लिए भी यह कह दिया कि उनके साथ सभी धर्मों के लोग थे। राहुल गांधी को क्या यह नहीं पता कि उस समय कौन कौन से धर्म थे? महाभारत कालीन धर्म कौन सा था? और धर्म का अर्थ क्या होता है? महाभारत पर अपने अल्पज्ञान पर राहुल यहीं नहीं रुकते हैं, उन्होंने यह तक कह दिया कि क्या उस समय के धनवान पांडवों के साथ थे? अगर ऐसा होता तो पांडवों को जंगलों में क्यों घूमना पड़ता? पांडवों को घर से क्यों निकाला गया, क्योंकि उनके साथ अमीर लोग नहीं थे!:”
राजनेताओं को यह अधिकार कौन देता है कि वह धार्मिक ग्रंथों की मनमानी व्याख्या कर सकें? क्या अमीरी और गरीबी के चलते पांडवों को वनवास मिला था? क्या उस समय के धनवान लोगों अर्थात राजाओं का समर्थन पांडवों के पास नहीं था? यदि नहीं होता तो उन्हें युद्ध में इतने राजाओं का समर्थन क्यों मिलता?
राहुल गांधी की समस्या कहीं न कहीं यह प्रतीत होती है कि उन्हें खुद नहीं पता है कि उन्हें क्या करना है? कहीं न कहीं यह भारत जोड़ो यात्रा बिना किसी उद्देश्य या लक्ष्य के ही चल रही है जिसमें तरह तरह के लोग आकर मिल रहे हैं, और जो मिल रहे हैं उनमें से कई ऐसे लोग हैं, जिनकी विचारधारा देश ने बार-बार देखी है। मगर जो सबसे शर्मनाक है वह है स्वयं को हिन्दू प्रमाणित करने के लिए इस तरह ही हरकतें जो हिन्दुओं के विरुद्ध हैं। मगर इससे भी अधिक शर्मनाक है बच्चों का दुरूपयोग! इस यात्रा में एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसने इस पूरे “तपस्वी” के एजेंडे की पोल खोलकर रख दी!
इन दिनों जब पूरा उत्तर भारत ठण्ड से बेहाल है और “तपस्वी” की इमेज बनाकर राहुल गांधी को मात्र टीशर्ट पहनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, हालाँकि बाद में यह भी लोग दावा कर रहे हैं कि वह थर्मल इनर वियर पहने हुए हैं। और इस आशय की तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं! इस सम्बन्ध में लोग यह कह सकते हैं कि क्या विमर्श अब इनर वियर तक चलेगा तो प्रश्न यही उठता है कि यह कथित टीशर्ट और तपस्वी वाला विमर्श आरम्भ क्यों कुछ कथित लिबरल पत्रकारों ने किया था? तपस्वी जैसे शब्द को इस प्रकार विमर्श में क्यों लाया गया?
तप का अर्थ बहुत व्यापक है। तप के अर्थ में बच्चों का स्वयं की छवि चमकाने के लिए उपयोग न करना भी सम्मिलित है। क्या राहुल गांधी ने यह किया? राहुल गांधी और कांग्रेस के रणनीतिकारों ने एक बच्चे के स्वास्थ्य के साथ खेल कर दिया।
क्या यह दिखाने के लिए कि भारत जोड़ों यात्रा को बच्चों का समर्थन मिल रहा है एक बच्चे को ठिठुरती ठंड में नंगे बदन चन्द्रशेखर आजाद के उस गेटअप के साथ घुमाया गया जो जनेऊ धारण किए थे? यह तस्वीर अभी तक कांग्रेसी नेता श्रीनिवास की वाल पर है, जिसमें साफ़ देखा जा सकता है कि जहां सारे लोग ठंड में खुद को गर्म करने वाले कपडे पहने हुए हैं, एक बच्चे को उघारे हुए शरीर में राहुल गांधी अपने साथ लेकर चल रहे हैं। और उस पर जनेऊ भी उल्टा पहनाया गया है।
लोगों ने इस मामले पर राहुल गांधी एवं कांग्रेस को घेरा और कहा कि कम से कम इतनी तो मानवीयता दिखाई जाए और इतनी कड़ाके की सर्दी में बच्चे को नंगा चलने को मजबूर करना या चलने देना दोनों ही अमानवीय है!
लोगों ने कहा कि इतनी भीषण ठण्ड में सब जहां जैकेट पहनने को मजबूर है तो वहीं एक मासूम नाबालिग बच्चे को नंगे बदन लेकर चलना बच्चे के साथ अत्याचार है!
प्रश्न यही उठता है कि क्या तपस्वी की इमेज बनाने के लिए हिन्दू धर्म की हर अवधारणा को तोडा मरोड़ा जा रहा है? क्या राहुल गांधी की तपस्वी की इमेज स्थापित करने के लिए हिन्दू धार्मिक ग्रंथों की और तप जैसी अवधारणाओं की मनचाही व्याख्याएं की जाएंगी?
एक यूजर ने लिखा कि बच्चे को उलटा जनेऊ क्यों पहनाया गया है?
राजनीति अपने स्थान पर है, लोकतंत्र में राजनीतिक विरोध भी बहुत आम बात है, परन्तु जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि राजनीति कहीं धार्मिक अवधारणाओं पर तो प्रहार नहीं कर रही? राजनीतिक फायदे के लिए सदियों से चली आ रही परम्पराओं और अवधारणाओं को तो मनचाही व्याख्या के अनुसार तोडा मरोड़ा नहीं जा रहा?
परन्तु हाल फ़िलहाल में भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से स्वयं को अधिक हिन्दू दिखाने के चक्कर में राहुल गांधी इस प्रकार की व्याख्याएं कर रहे हैं, जो न ही किसी दल एवं न ही हिन्दू धर्म के लिए उचित है।
राजनीति के लिए धार्मिक व्याख्याओं की अनुकूलित व्याख्याओं पर कहीं न कहीं रोक लगाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे धर्म पर अवधारणात्मक चोट तो लगती ही है वहीं समाज में भी परस्पर बैर भाव एवं विषमताएं उत्पन्न होती है!