भाजपा के पूर्व नेता बाबुल सुप्रियो ने आज टीएमसी के साथ नाता जोड़ लिया। हालांकि इस बात की संभावना बहुत पहले से जताई जा रही थी। जिस दिन बाबुल सुप्रियो ने राजनीति छोड़ने की बात कहकर भाजपा को छोड़ा था, उसी दिन से यह समझा जाने लगा था कि देर सवेर वह तृणमूल कांग्रेस में जाएंगे ही जाएँगे। आज तृणमूल कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल ने यह घोषणा कर ही दी कि वरिष्ठ नेता अभिषेक बनर्जी और डेरेक ओ ब्रायन की उपस्थिति में बाबुल सुप्रियो ने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर ली।
हालांकि एक पार्टी से दूसरी पार्टी में आना दलगत राजनीति में कोई नई बात नहीं है, और ऐसा होता आया है और होता रहेगा। परन्तु भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच जो सम्बन्ध है, उसमें यह सहज नहीं लगता है। परन्तु यही राजनीति है। जब बाबुल सुप्रियो ने यह कहा था कि वह राजनीति छोड़ रहे हैं, तो यह निर्णय बाबुल ने तब लिया था जब उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था।
कई लोग कह रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का आतंक है, इसलिए बाबुल सुप्रियो का यह कदम उचित है। परन्तु फिर एक प्रश्न उठता है कि यदि उन्होंने राजनीति छोड़ने की बात की थी तो, तृणमूल कांग्रेस में वह क्यों आए? इसका अर्थ यही है कि वह राजनीति या कहीं राजनीतिक रसूख से खुद को दूर नहीं रख पाए। हालांकि उन्होंने कहा कि जब उन्होंने राजनीति छोड़ने के लिए कहा था तो उन्होंने, दिल से कहा था। पर अब उन्हें लगता है कि उन पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गयी है। उनके सभी दोस्त कहते थे कि राजनीति छोड़ना गलत है और भावुक होकर उठाया गया कदम है। और अब मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मैं बंगाल की सेवा करने के लिए दीदी और अभिषेक बनर्जी के साथ काम करने जा रहा हूँ।
बाबुल सुप्रियो आसनसोल से सांसद थे। उन्होंने मोदी लहर में ही आसनसोल की सीट जीती थी और उन्हें 43 वर्ष की उम्र में ही मंत्री बना दिया गया था। पार्टी के भीतर उनका कद काफी बड़ा था और शायद उन पर विधान सभा चुनावों में भी पार्टी को मजबूत करने का उत्तरदायित्व था। वह दूसरी मोदी लहर में भी सांसद बन गए।
परन्तु पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में हार के बाद समीकरण बदल गए थे। और ऐसे में बाबुल सुप्रियो से कार्यकर्ता भी नाराज थे, कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी जान बचाए जाने पर उन्होंने कहा था कि उनकी गाड़ी पर हमला हो सकता है, तृणमूल कांग्रेस के गुंडे उनकी जान के प्यासे हैं और दंगे कर रहे हैं। इसलिए वह कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुँच सकते हैं।
और उनकी इस कार की बात को ट्विटर पर भी कई लोगों ने उठाया
कुछ लोगों का कहना यह भी है कि अगर भाजपा अपने कैडर के साथ खड़ी नहीं होगी तो यही होगा। परन्तु कुछ लोगों का कहना है कि बाबुल जैसे लोग राजनीतिक प्रतिरोध का सामना नहीं कर सकते। या फिर कुछ पाने का लालच!
मगर कार पर चुटकुले चल निकले हैं:
ट्विटर पर ट्रेंड भी चल गया है:
और लोग इस कदम को धोखा भी कह रहे हैं:
अंशुल सक्सेना ने भी कार बचाने को लेकर ताना मारा:
लोगों का प्रश्न यही है कि जिस पार्टी ने आपके कार्यकर्ताओं को निर्दयता पूर्वक मारा, आप उसी पार्टी में कैसे जा सकते हैं?
पर यही राजनीति है, और दलगत राजनीति में यही शायद अंतिम कदम है