ब्रिटेन में हिंदुओं पर कट्टर इस्लामवादियों द्वारा मजहबी रूप से प्रेरित हमलों ने दुनिया भर के हिन्दुओं को भौंचक्का कर दिया है। हमलों से ज्यादा हतप्रभ लोग हुए हैं एक व्यवस्थित दुष्प्रचार अभियान से, जो हिन्दुओं के विरोध में चलाया जा रहा है, और उन्हें ही इन घटनाओं के लिए उत्तरदायी बताया जा रहा है, जबकि वह तो स्वयं पीड़ित हैं।
इस पूरे प्रकरण में सुरक्षा, पुलिसिंग और सामुदायिक संबंधों पर कई कठोर प्रश्न खड़े हो गए हैं। वहीं इस दुष्प्रचार अभियान ने हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद को निकृष्ट दिखाने के प्रयासों को भी उजागर कर दिया है, और यह भी दर्शाया है कि बेशक हिन्दू इतने दशकों से वहां रह रहे हों, लेकिन एक दुष्प्रचार अभियान से उनके प्रति धारणा को बदला जा सकता है। इस दुष्प्रचार रणनीति को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने भविष्य में होने वाले ऐसे अभियानों का प्रारूप भी समझने में सहायता मिलेगी।
अगर हम एक वृहद्द दृष्टि से देखें तो पाएंगे कि पांच मूल सिद्धांत हैं, जो इस प्रकार के दुष्प्रचार अभियान बनाने में सहायता करते हैं। इन अभियानों का एकमात्र उद्देश्य हिंदुओं की नकारात्मक छवि बनाना है और उन पर भविष्य में किये जाने वाले हमलों के लिए उचित आधार भी बनाना है। इन रणनीति द्वारा हमलवार मजहबी समाज को पीड़ित बताया जाता है, उनके प्रति समाज में सहानुभूति की भावना पैदा करने के प्रयास किये जाते हैं, वहीं हिन्दुओं को आक्रांता बताया जाता है। इस व्यापक परिसंचरण के लिए इन लोगों ने सामाजिक संस्थाओं और मीडिया दोनों को नियोजित भी कर लिया है।
यह पांच रणनीतियां इस प्रकार हैं :
धार्मिक पहचान छुपाना – अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि इन मजहबी हमलों को तथाकथित कट्टर हिंदुत्व के विरुद्ध एक निवारक कार्रवाई के रूप में उचित ठहराया गया है। इस्लामिक और वामपंथी तत्वों द्वारा हिंदुत्व को एक ‘विभाजनकारी विचारधारा’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, ब्रिटेन के बहु-धार्मिक और बहु-नस्लीय समाज को तोड़ सकती है। लीसेस्टर में मार्च करने वाले हिंदू प्रदर्शनकारियों को हिंदू राष्ट्रवादी और गुजराती (नरेंद्र मोदी के गुजराती मूल के संदर्भ में) के रूप में बताया गया।
जबकि बाद में पुलिस जांच में पाया गया कि कई लोग तो गैर-राजनीतिक थे, जो उस क्षेत्र में मुसलमानों के आक्रामक हमलों और व्यवहार के विरोध में एकत्र हुए थे। ‘हिंदुत्व-लेबलिंग’ हिंदू विरोधी दुष्प्रचार का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि यह हिंदू धर्म (हिंदू धर्म) और हिंदुत्व के बीच एक कृत्रिम और बाहरी रूप से थोपा गया भेद है। इसका उपयोग कर यह लोग हिन्दुओं को भ्रमित करते हैं, और उनके मन में एक संशय की भावना भी पैदा कर देते हैं।
आप सितंबर 2021 में आयोजित अकादमिक डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व सम्मेलन के व्यावहारिक आयाम को देख सकते हैं। इसमें आपको भारतीय वैचारिक और राजनीतिक समूहों की मिलीभगत भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। आप कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हिंदू धर्म और हिंदुत्व को अलग करने का अभियान देख सकते हैं, जिसमे वह हिंदुत्व को बुरा बताते हैं। इस भेद को गढ़ने का उद्देश्य हिंदुओं को खलनायक की तरह प्रस्तुत पेश करना और हिंदुत्व पर हमला करने की आड़ में हिन्दुओं पर हमलों को वैध बनाना है।
वैचारिक अपराध – हमलों को हिंदुत्व के प्रतिरोध के रूप में चित्रित किया गया है, वहीं मीडिया प्रतिष्ठानों और सोशल मीडिया ने भी स्पष्ट रूप से इस हमलों को ब्रिटेन में हिंदुत्व विचारधारा कथित रूप से बढ़ते नकारात्मक प्रभाव से जोड़ा है। 21 सितंबर को बर्मिंघम मंदिर के बाहर इकट्ठा हुई हिंसक भीड़ में एक नकाबपोश जिहादी ने कहा था कि हिंदुत्व का पालन करने वाले लोगों का ब्रिटेन में स्वागत नहीं है।
इन सब घटनाओं के द्वारा इस्लामिक और वामपंथी तत्वों ने एक वैचारिक संदेश दिया है, कि आरएसएस-भाजपा विचारधारा के रूप में हिंदुत्व एक वैचारिक अपराध है और इसका पालन करने वाला कोई भी व्यक्ति एक वैचारिक अपराधी है। हिंदुत्व की तुलना नाजीवाद और फासीवाद के साथ कर संवेदनशील यूरोपीय समाज के सामने हिंदुत्व को ही अपराध के रूप में प्रसारित किया जा रहा है। यूरोप के लोग फासीवाद और नाजीवाद के प्रति अत्यंत संवेदनशील है, और ऐसा कोई भी प्रयास उन्हें हिंदुत्व से दूर ले जा सकता है, जिसके भयानक दुष्परिणाम हिन्दुओं को झेलने पड़ सकते हैं।
डीड क्राइम – एक झूठ प्रचारित किया गया था कि लीसेस्टर में विरोध मार्च निकालने पर हिंदुओं द्वारा एक मस्जिद पर हमला किया गया था। पुलिस ने इस घटना पर स्पष्टीकरण भी दिया था कि मस्जिद पर किसी प्रकार का हमला नहीं किया गया था। लेकिन इस झूठी खबर का उपयोग कर इस्लामिक तत्वों ने लीसेस्टर और बर्मिंघम में भीड़ इकठ्ठा कर मंदिरों पर हमला किया।
यहाँ आपको समझना पड़ेगा कि मिथ्या प्रचार द्वारा एक सूचना को प्रचरित्य किया जाता है और लक्षित पक्ष को ही दोषी ठहराया जाता है, जिससे आक्रामक भीड़ को जुटाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। जब प्रशासन या पुलिस द्वारा ऐसे मिथ्या प्रचार को झूठा बताया जाता है, तब यही लोग एक नया प्रचार करते हैं कि लक्षित पक्ष (इस मामले में आरएसएस-भाजपा के हिंदुत्व समर्थक) पिछले कई अवसरों पर इसी प्रकार के हमले कर चुके हैं, तो इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया होगा। यही बात मजहबी गुटों को हिन्दुओं पर जवाबी हमले के लिए औचित्य प्रदान करती है।
इस रणनीति को आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं। 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा कर 59 हिन्दू तीर्थ यात्रियों की नृशंष हत्या कर दी गयी थी। प्रशासन द्वारा की गयी जांच में यह पता लगा था कि मजहबी तत्वों ने यह प्रचार किया था कि इस ट्रैन में जो लोग आ रहे हैं, वह 1992 में विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे के विध्वंस के लिए उत्तरदायी थे।
असामाजिक अतिक्रमण से सुरक्षा – हिंदू विरोधी हमलों में नेतृत्व की भूमिका निभाने वाले माजिद फ्रीमैन के ट्विटर हैंडल ‘मजस्टार7’ ने दावा किया कि लीसेस्टर की सड़कों को “सामान्य असामाजिक व्यवहार” से मुक्त कर दिया गया था। सुबह 3 बजे हैं, और अब ना कोई संगीत बज रहा है ना यहाँ शराबियों की भीड़ है “।
यह हिंदुओं पर मुस्लिम युवाओं के अपहरण और मुस्लिम लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने के पहले लगाए गए आरोपों के साथ सामंजस्य में था, यह आक्षेप लगाते हुए कि लक्षित पक्ष (हिन्दू) अराजक गुंडे हैं, और उनके साथ जो भी हिंसा हुई है, वह उसी के लायक हैं। जबकि स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने अपहरण और छेड़छाड़ के आरोपों को खारिज कर दिया था।
यह लोग हिंदुत्व और हिन्दुओं पर ब्रिटिश समाज में असामाजिक अतिक्रमण करने का आरोप लगते हैं। यह लोग हिंदुत्व को कई कुरीतियों के लिए उत्तरदायी बताते हैं। इसीलिए यह लोग हिन्दुओ से मांग कर रहे हैं कि हिंदू ब्रिटेन के समाज में स्वीकृति पाने के लिए भाजपा-आरएसएस की विचारधारा से अपनी गैर-संबद्धता को खुल कर घोषित करें।
संस्थागत कब्जा करना – दुष्प्रचार को सुदृढ़ किया जा सकता है, अगर सम्मानजनक लोग और संस्थाएं उसका पुरजोर समर्थन करें। अगर आप ब्रिटेन में हिन्दुओं पर हुए हमलों को देखेंगे तो पाएंगे कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली मीडिया दिग्गजों ने स्थानीय इस्लामवादियों के दावों को ना मात्र प्रतिध्वनित किया, बल्कि उन्होंने हिंदू पीड़ितों को ही आक्रामक हिंदुत्व अपराधियों के रूप में प्रस्तुत कर दिया।
ब्रिटेन का गार्जियन अखबार अपने पक्षपाती व्यवहार के लिए जाना जाता है। 20 सितंबर को, जिस दिन बर्मिंघम मंदिर पर हमला किया गया था, गार्जियन के दक्षिण एशिया संवाददाता ने तथ्यात्मक अशुद्धियों के साथ हिंदुत्व और आरएसएस पर एक लेख प्रकाशित किया और लीसेस्टर में मुसलमानों की भूमिका और उनकी गिरफ्तारी को छिपाते हुए हिंदुत्व को ही बुरा बताया और हिन्दुओं का अपराधीकरण किया।
वहीं मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन (एमसीबी) ने इन नस्लीय हमलों के लिए आरएसएस द्वारा “मुसलमानों और सिखों को जानबूझकर निशाना बनाने, धमकाने और हमला” करने के लिए उत्तरदायी बताया। यहाँ एमसीबी द्वारा सिखों का समावेश करने का उद्देश्य हिन्दुओं के प्रति उन्हें उकसाना था। इस्लामिक तत्वों ने व्यापक रूप से प्रसारित ‘मुस्लिम-हिंदू एकता वक्तव्य’ की छद्म भावना के माध्यम मुस्लिमों, सिखों और छद्म धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं को यह समझाने का प्रयत्न किया कि उनकी समस्याओं के लिए “बाहरी लोग” दोषी हैं।
इन रणनीतियों को अगर गहराई से समझा जाए तो आप यह देखेंगे कि किस तरह इस्लामिक और वामपंथी तत्वों ने हिन्दुओं की छवि को हानि पहुचायी है, वहीं उन्होंने हिन्दू समाज को भी विभाजित करने का प्रयास किया है। हिन्दू समझ को इन रणनीतियों का संज्ञान लेना होगा और इनसे बचाव के निरंतर प्रयास करने ही होंगे।
अंग्रेजी लेख को यहाँ पढ़ा जा सकता है! अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद – मनीष शर्मा