पिछले वर्ष दिसंबर में एक हिन्दू किशोरी से सातवीं शादी करने जा रहे असलम के विषय में समाचार आया था और यह भी पता चला था कि झारखण्ड का असलम फरार हो गया था।
असलम संजय कसेरा बनकर लड़कियों को फांसता था और विशेषकर जनजातीय समुदाय की लड़कियों को निशाना बनाता था और फिर उनके साथ शादी करता था। अब असलम पुलिस की गिरफ्त में आ गया है। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है।
पुलिस के अनुसार उसने बताया है कि वह छह शादियां पहले ही कर चुका है। बीते साल दिसंबर में हरला में वह एक नाबालिग किशोरी से सातवीं शादी करने की कोशिश कर रहा था लेकिन पुलिस के आने की भनक लगते ही वह भाग निकला।
झारखण्ड में ऐसी एक नहीं कई घटनाएं हो रही हैं, जिनमे सुनियोजित तरीके से हिन्दू जनजातीय लड़कियों को जिहादी निशाना बना रहे हैं। उनसे शादियाँ कर रहे हैं और फिर जमीन खरीद रहे हैं।
पुलिस के अनुसार असलम पर कई थानों में मामले दर्ज है। पुलिस के अनुसार वह फर्जी पुलिस बनकर वसूली करता था। दरअसल उसके अब्बा निज़ामुद्दीन खान पुलिस में नौकरी करते थे और इसी कारण उसे पुलिस के स्टार की जानकारी थी। और वह पुलिस में नौकरी का रौब दिखाकर ही लड़कियों को फंसाता था।
पुलिस की पूछताछ में उसने बताया कि वह छह शादियाँ पहले ही कर चुका है। पहले बैंक मोड़ निवासी निशा परवीन से उसकी शादी हुई। उससे दो बच्चे हैं। दूसरी शादी उसने ओरमांझी में कनीजा फातिमा से की। उससे भी इसके बच्चे हैं। तीसरी शादी उसने पेटरवार में कुंता कुमारी से की। चौथी शादी उसने कतरास की रुखसाना से की।
उसने अपने इकबालिया बयान में कहा कि पांचवी शादी उसने सुप्रिया हेंब्रम व छठवीं मंजू एक्का से की है।
सबसे दुर्भाग्य की बात यही है कि ऐसे अपराधों पर, जो मूलत: मजहब के आधार पर होते हैं, कोई सहज या गंभीर चर्चा नहीं होती है।
सबसे अधिक प्रयास किया जाता है कि अपराधी का नाम लेकर बात न हो। अपराधी का नाम इसलिए सामने न आए क्योंकि इससे इस्लामोफोबिया फैलता है। जैसे पहले आतंकवाद को लेकर था कि आतंकियों का नाम न लिया जाए क्योंकि इससे एक समुदाय विशेष के प्रति बैर भाव फैलता है।
परन्तु समुदाय विशेष के लोग कभी इस बात का खंडन करने के लिए क्यों नहीं आते हैं कि जो लोग नाम बदलकर हिन्दू लड़कियों को निकाह के फेर में फंसाते हैं, वह मुसलमान नहीं हैं। क्यों वह लोग इन लोगों का बहिष्कार करते हुए दिखाई नहीं देते? क्यों वह यह नहीं कहते कि नाम बदलकर निकाह करने वालों को वह मुसलमान नहीं मानते? क्यों ऐसी घटनाओं के खिलाफ बन रहे कानूनों को मुसलमानों के विरुद्ध क़ानून मानते हैं? क्यों वह उन कानूनों का विरोध करते हैं, जिनसे ऐसी घटनाएं रुक सकती हैं?
असलम वाले मामले में ही कोई भी मुस्लिम संगठन सामने आकर यह नहीं कहता है कि असलम ने यह गलत किया? असलम ने नाम बदलकर लड़कियों को फंसाया, यह मजहब में गुनाह है, ऐसी बात करने के लिए क्यों उदारवादी स्वर सामने नहीं आता? यह पीड़ा समस्त हिन्दू समाज की है, यह पीड़ा उन माओं की है, जिनकी बेटियाँ इस सुनियोजित षड्यंत्र का शिकार हो रही हैं!
और जब उदारवादी स्वर सामने नहीं आता तो ऐसे में प्रश्न यह उठता ही है कि क्या ऐसी घटनाओं में उन उदार स्वरों की भी सहमति है जो बीच-बीच में उठते रहते हैं। असलम जो संजय कसेरा बनकर उस किशोरी से केवल इसलिए शादी कर रहा था क्योंकि उसने उसकी माँ को आश्वासन दिया था कि वह उनकी दोनों ही बेटियों की नौकरी कहीं लगवा देगा, उसे इस्लाम से ख़ारिज क्यों नहीं किया जाता यह कहते हुए कि इस्लाम ऐसे गुनाहों की इजाजत नहीं देता?
इस मामले में संजय कसेरा बनकर उसने खुद को एक बैंक का मैनेजर बताया था। और जागरण के अनुसार उसने धमकाया भी था, कि यदि वह शादी के लिए तैयार नहीं हुई तो वह अपहरण कर लेगा।
इस मामले में लड़की का भाग्य अच्छा था कि जब वह दूल्हा बनकर आया तो उसे पहचान लिया गया और फिर पुलिस में रिपोर्ट की गयी। पुलिस की बात आते ही वह फरार हो गया था और अब उसे पकड़ा गया है।
एक किशोरी से धमकी देकर शादी की बात और वह भी छ बीवियों के बाद?
अब समय है कि सभी लोग समस्या की जड़ पर बात करें, विमर्श में समस्या की जड़ आए जो कहीं न कहीं मजहबी वर्चस्व से जुड़ी है। इसे भी सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि असलम जेल से वापस आने के बाद इस प्रकार की हरकत दोबारा नहीं करेगा?
मीडिया के अनुसार “पुलिस को असलम के ठिकाने का पता लगाने में थोड़ी कठिनाई हुई, लेकिन आखिरकार जानकारी जुटाने के बाद वह उसे गिरफ्तार करने में सफल रही। उसे रांची में गिरफ्तार किया गया, जहां वह एक अलग नाम से रह रहा था। ”
कब असलम जैसे लोगों के सामूहिक बहिष्कार की आवाजें उदारवादी मुस्लिम समुदाय की ओर से आएंगी?