7 मई 2022 का दिन जम्मू-कश्मीर के इतिहास में अनूठा था, क्योंकि पूरे 700 वर्षों के उपरान्त मार्तण्ड सूर्य मंदिर में नवगृह अष्टमंगलम पूजा की गयी थी। यह बहुत ही भावुक कर देने वाला आयोजन था, क्योंकि कश्मीर घाटी में इतने दशकों बाद फिर से हिंदुत्व का पुनःरुत्थान होता दिख रहा है। मार्तंड सूर्य मंदिर में लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने रविवार को पूजा की थी। इस मंदिर का निर्माण कश्मीर के महान राजा ललितादित्य ने
आठवीं सदी में करवाया था। यह मंदिर अपनी सुंदरता, वैभव और स्थापत्य कला के लिए विख्यात था।
कुछ शताब्दियों बाद इस्लामिक आक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था, ऐसा ही एक क्रूर आक्रांता था सिकंदर बुतशिकन। उसने भारत पर आक्रमण किया, उत्तरी भारत के कई इलाको पर अपना अधिकार भी स्थापित किया, जिनमे कश्मीर घाटी भी थी। अपने नामानुसार ही सिकंदर को बुतों से बड़ी चिढ थी, और इसी वजह से उसने पंद्रहवीं सदी में मार्तण्ड सूर्य मंदिर को ढहा दिया था। इसे स्थानीय लोग अब शैतान की गुफा भी कहते हैं।
यह मंदिर एएसआई (ASI) द्वारा संरक्षित है, और इसमें 100 से अधिक तीर्थयात्रियों ने कुछ घंटों तक पूजा-अर्चना की. इस कार्यक्रम के जरिए सूर्य मंदिर में पहली बार शंकराचार्य जयंती का महोत्सव मनाया गया। जिला प्रशासन ने इस आयोजन के लिए सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था भी की थी। तीर्थयात्रियों ने पंडितो की सहायता से हिंदू धर्मग्रंथों का पाठ करते हुए प्राचीन मंदिर के खंडहरों के बीच एक पत्थर के मंच पर बैठ कर इस पूजा अर्चना को पूरा किया। यहां पूजा करने के बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने इसे दिव्य अनुभव भी बताया था।
इस मामले में एक शर्मनाक मोड़ आ गया है, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने लेफ्टिनेंट गवर्नर LG मनोज सिन्हा द्वारा मार्तंड सूर्य मंदिर में पूजा करने को प्राचीन स्मारकों के संरक्षण के नियमों का उल्लंघन बताया है। एएसआई ने इस बारे में एक आधिकारिक आपत्ति जम्मू-कश्मीर सरकार को भेजी है।
एएसआई का कहना है कि नियमों के अनुसार लेफ्टिनेंट गवर्नर को यहां पूजा के लिए पहले आज्ञा लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कोई प्रयास नहीं हुआ। एएसआई के सूत्रों के अनुसार, प्राचीन स्मारक संबंधी कानून में है कि केंद्र सरकार की लिखित अनुमति के बिना संरक्षित स्मारकों में बैठक, दावत, मनोरंजन या कुछ और नहीं किया जा सकता, इसीलिए एएसआई ने इस पूजा पर कड़ी आपत्ति जताई है। जैसे ही एएसआई के इस पूजा कार्यक्रम पर आपत्ति उठाने का समाचार आया, लोगो ने उनके दोहरे मापदंडो को उजागर करना शुरू कर दिया।
एएसआई का दोहरा मापदंड – पूजा पर आपत्ति लेकिन नमाज़ और फिल्म शूटिंग पर कोई सवाल नहीं
एएसआई के अनुसार संरक्षित स्मारकों में इस तरह के आयोजन नहीं होने चाहिए। लेकिन आपको जानकार आश्चर्य होगा कि कुछ वर्ष पूर्व इसी मार्तण्ड सूर्य मंदिर में बॉलीवुड की फिल्म हैदर कर एक गीत ‘बिस्मिल बिस्मिल’ फिल्माया गया था। उस गीत में इस मंदिर को शैतान की गुफा बता कर प्रचरित्य किया गया था। इस वजह से स्थानीय लोग इस मंदिर को ‘शैतान की गुफा‘ नाम से पहचानते हैं।

क्या एएसआई बताएगी कि एक संरक्षित स्मारक पर फिल्म की शूटिंग क्यों करने दी गयी थी? चलिए शूटिंग करने दी, लेकिन उसका गलत नाम से प्रचार क्यों करने दिया गया? इस मामले पर एएसआई ने आज तक कोई आपत्ति नहीं उठायी, क्यों ?
आपको शायद पता ना हो, लेकिन आगरा का ताजमहल भी एएसआई का संरक्षित स्मारक है, लेकिन यहाँ पर सामूहिक नमाज़ पढ़ी जाती है। ये बात और है कि खानापूर्ति करने के लिए एएसआई कभी कभी उस पर प्रतिबन्ध लगाने की बात करता है, लेकिन उनकी बात शांतिप्रिय समुदाय नहीं मानता है। इसी वजह से ताजमहल में शुक्रवार को जुम्मे की नमाज़ पढ़ी जाती है।

इस समाचार से ASI के दोहरे मापदंड उजागर हो गए हैं, और लोगो ने भी जमकर एएसआई पर भड़ास निकाली है। बात सच भी है, एक तरफ हमारा मार्तण्ड सूर्य मंदिर है, जहां 700 सालों बाद हिन्दुओ को पूजा अर्चना करने का अवसर मिला था, शताब्दियों के उपरान्त अब जा कर हिन्दुओ को उनका अधिकार मिलने की आस जगी है, लेकिन एएसआई को इस पर आपत्ति जतानी है।
जबकि यही एएसआई अपने विशेषाधिकारों का दुरूपयोग कर राष्ट्रीय स्मारकों पर फिल्म शूटिंग और नमाज़ की आज्ञा बेहिचक दे देती है। पहले ऐसा चल जाय करता होगा, लेकिन अब सोशल मीडिया के जमाने में ऐसे दोहरे मापदंड ज्यादा नहीं टिकते, और आज यही एएसआई के साथ हो रहा है, और जनता उन्हें जमकर खरी खोटी सुना रही है।
कहने को तो एएसआई भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला एक स्वतंत्र विभाग है, लेकिन फिर भी केंद्र सरकार को ऐसे आपत्तिजनक निर्णय लेने वाले और विशेषाधिकारों के दुरूपयोग करने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही जरूर करनी चाहिए।