बीबीसी ने होली के त्यौहार पर जो पंक्तियाँ प्रयोग की हैं, उनसे हिन्दू समाज में गुस्सा है। परन्तु इतना गुस्सा होना नहीं चाहिए, क्योकि न ही यह केवल बीबीसी की बात है और न ही यह केवल और केवल होली की बात है। बीबीसी तो एक चेहरा है उन ताकतों का जो हिन्दू धर्म को उसके गौरव और त्योहारों से रहित कर देना चाहती हैं।
बीबीसी हिंदूद्वेष (हिन्दूफोबिया) से ग्रसित है और कृष्ण को तो पूरी तरह से मुस्लिमों के पुरुष घोषित कर दिया जाता है। यह काम केवल एक वेबसाईट नहीं, बल्कि लल्लनटॉप, सत्याग्रह, सिटीजन अलर्ट जैसी कई वेबसाइट्स हैं, जो इन कर्मों को करने में सबसे आगे हैं। मजे की बात यह है कि इसके लेखक लोग मुस्लिमों की लिखी कविताओं को तो महिमामंडित करते हैं, मगर जब प्रेमचंद ‘जिहाद’ जैसी कहानियां लिखते हैं, वह छिपा जाते हैं।
हिंदूद्वेष तो इन सभी को है, यही कारण है कि वह लोग भाजपा के ही विरोध में खड़े होते हैं, और वह भी भाजपा के केवल उन नेताओं के खिलाफ, जो हिंदुत्व की बात करते हैं, या हिंदुत्व के बड़े प्रतीक माने जाते हैं, जैसे नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ और इन सभी की ख़बरों की आलोचना का केंद्र यही दो होते हैं। हिन्दुओं की कमियों पर बात करना यह अपना धर्म मानते हैं, सबसे हास्यास्पद था फटी जींस के समर्थन में बोलना और फिर हिजाब के भी पक्ष में खड़े हो जाना।
इनमे स्त्रियों के लिए काम करने वाली और लिखने वाली फेमिनिज्म-इन-इंडिया (feminisminindia) भी महत्वपूर्ण है। हर हिन्दू त्यौहार के आते ही स्त्रियों को भड़काने लगना ही इस वेबसाईट का काम है। और इस्लाम के पक्ष में जाकर खड़े हो जाना ही इस वेबसाईट का काम है। ‘स्त्रियों के अधिकार’ के लिए काम करने वाली इस वेबसाईट पर हिजाब के पक्ष में कितने लेख हैं, वह देखा जा सकता है।
और यही फेमिनिज्म-इन-इंडिया हिन्दू समाज के प्रति इतनी विद्वेषपूर्ण है कि हर त्यौहार पर तलवार लेकर खडी हो जाती है और हिन्दू स्त्रियों को भडकाने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ती है।
फेमिनिज्म-इन-इंडिया यहीं नहीं रुकती है, बल्कि हर लेख में हिन्दुओं के प्रति विद्वेष है। हिन्दू समाज के प्रति विष भरा हुआ है। हर लेख में वह पूरे हिन्दू समाज को कोसते हुए दिखते हैं।
यह तो हुआ त्योहारों को बदनाम करने का अभियान अर्थात त्यौहारों को नीचा दिखाकर अनिच्छा पैदा करना। इसका दूसरा चरण है, एक विशेष वर्ग की मीडिया और लेखक वर्ग द्वारा हमारे त्योहारों को केवल मुस्लिमों की रचनाओं के माध्यम से व्यक्त करना। कांग्रेस शासनकाल का जमकर फायदा उठाने वाले एक बड़े पत्रकार हैं ओम थानवी। होली वाले दिन उनकी वाल पर ऐसी ही कई पोस्ट थीं। इसीके साथ उन्होंने बीबीसी का एक पुराना लेख भी साझा किया था, वह लेख 2 मार्च 2018 को सबसे पहले प्रकाशित हुआ था और जिसे 29 मार्च 2021 को अपडेट किया गया था। इस लेख का शीर्षक है “होली: कौन कहता है कि यह सिर्फ़ हिंदुओं का त्योहार है?”
राना सफ़वी का यह लेख पूरी तरह से यह बताता है कि मुस्लिम समुदाय को होली से कोई समस्या नहीं है, और मुस्लिम महिलाऐं गाना आदि गाती हैं, और नृत्य करती हैं।
उन्होंने होली पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का भी उदाहरण दिया कि होली के दिन वहां पर भीड़ थी जो ख्वाजा गरीब नवाज़ के साथ होली खेलने आए थे। उसके बाद इस लेख में वही अधिप्रचार (प्रोपेगेंडा) है कि मुस्लिम कवियों ने कृष्ण पर खूब लिखा है। बुल्लेशाह से लेकर सय्यद इब्राहीम रसखान आदि द्वारा रची गयी पंक्तियाँ हैं। और होली को पूरी तरह से मुस्लिम त्यौहार बना दिया है। जिस त्यौहार की कथा का उद्गम भागवत पुराण से प्राप्त होता है, और कृष्ण और राधा जिस देश की आत्मा में थे, कृष्ण और राधा का पवित्र प्रेम जिस देश के कण कण में व्याप्त था, और जिस हिन्दू धर्म में हर बाल रूप को कृष्ण माना जाता है, उसके हाथों से यह प्रोपेगेंडा वेबसाईट उनका त्यौहार छीने ले रही हैं।
सत्याग्रह जैसी वेबसाइट जो एक तरफ होलिका दहन को स्त्री विरोधी बताने वाले लेख प्रकाशित होते हैं तो वहीं यहाँ पर यह लेख प्रकाशित होते हैं कि ‘तू सबका ख़ुदा सब तुझ पे फ़िदा। हे कृष्ण कन्हैया नंद लला, अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी’।
और इस लेख में ही नहीं बल्कि कई अन्य लेखों में अबुल हसन यमीनुद्दीन (अमीर ख़ुसरो) की एक पंक्ति का उल्लेख आता है कि ‘छाप तिलक सब छीनी रे से मोसे नैना मिलायके’ और इस पंक्ति को कृष्ण प्रेम का प्रतीक कह दिया है। इनसे यह पूछना चाहिए कि कृष्ण के प्रेम में छाप और तिलक कैसे कोई छोड़ सकता है। छाप और तिलक कोई भी कृष्ण प्रेमी नहीं हटा सकता, कृष्ण के हर भक्त के ललाट पर तिलक अवश्य प्राप्त होगा।
पर इन प्रोपेगेंडा वेबसाइट्स पर सब कुछ प्राप्त होगा, बस तर्क नहीं। इन वेबसाइट्स पर कृष्ण भक्ति के सबसे महान कवि सूरदास का उल्लेख नहीं है। इन्होनें उमा नामक कवयित्री का उल्लेख नहीं किया जिन्होनें राम जी की होली का उल्लेख किया था। उमा ने कितना सुन्दर वर्णन किया है:
ऐसे फाग खेले राम राय,
सुरत सुहागण सम्मुख आय
पञ्च तत को बन्यो है बाग़,
जामें सामंत सहेली रमत फाग,
जहाँ राम झरोखे बैठे आय,
प्रेम पसारी प्यारी लगाय,
जहां सब जनन है बंध्यो,
ज्ञान गुलाल लियो हाथ,
केसर गारो जाय!
समस्या यह नहीं है कि मुस्लिम कवियों की कविताओं को होली के साथ जोड़ा जा रहा है, समस्या यह है कि यह त्यौहार जो विशुद्ध रूप से हिन्दुओं का है और जिस धर्म को बनाए रखने के लिए न जाने कितने लोगों ने अपने शीश कटा दिए, न जाने कितने टन खून से सने हुए जनेऊ तौले गए थे, और न जाने कितने लोग अपने आराध्यों को भूमि में गाढ़कर न जाने कहाँ चले गए, वह त्यौहार उन्हीं हिन्दुओं से छीना जा रहा है।
हमसे धीरे धीरे हमारी हर पहचान छीनी जा रही है, हमें ऐसा बताया जा रहा है जैसे हमारे त्यौहारों में गौरव और रस इस्लामी आक्रान्ताओं के बाद आया। हमें धीरे धीरे हमारे उन पर्वों से विमुख किया जा रहा है, जो शताब्दियों से हमारी शक्ति बने रहे थे, जिनके माध्यम से हम जुड़े थे अपनी जड़ों से! हमें उन जड़ों से काटा जा रहा है।
आने वाले समय में जब हमारे बच्चों के सामने केवल इन्हीं कविताओं का उल्लेख होगा और सूरदास और मीराबाई अजनबी रहेंगी तो वह भी होली का आरम्भ केवल मुगलकाल के बाद से मानेंगे। कृष्ण को मुस्लिमों का पुरुष और प्रभु श्री राम को वह इमाम–ए-हिन्द कहने ही लगेंगे। भाई, वह हमारे भगवान हैं, इस सृष्टि के जनक हैं, वह मात्र पुरुष या इमाम नहीं हैं।
इस षड्यंत्र को समझिये नहीं तो एक दिन हमारे बच्चे परम पराक्रमी इंद्र देव को मात्र विलासी ही समझेंगे, जैसे उर्दू को फारसी शब्दों से भरने वाले नासिख ने लिखा है:
“आंसुओं से हिस्ज्र में बरसात रखिये साल भर,
हमको गर्मी चाहिए, हरगिज न जाड़ा चाहिए,
जल्द रंग ऐ दीदए खूम्बार अब तारे-निगाह,
है मुहर्रम, उस परी पैकर को नाड़ा चाहिए,
लड़ते हैं परियों से कुश्ती, पहलवाने इश्क हैं,
हमको ‘नासिख’ राजा इन्दर का अखाड़ा चाहिए।”
यह ध्यान रखना होगा कि किसी भी मुस्लिम कवि ने आज तक हमारे देवों की वीरता का वर्णन नहीं किया है, उन्हें केवल विलासी या प्रेम का प्रतीक माना है और वह बहुत आराम से हमारे दिमाग के साथ खेलने में सफल हुए हैं। अब निशाना हमारे हिन्दू त्यौहार हैं। इनसे बचना ही हमारा प्रथम धर्म है।
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