दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने पहले कार्यकाल से ही आराजकता का परिचय दिया है। परन्तु अपने प्रथम कार्यकाल से ही वह मीडिया के प्रिय रहे हैं। पूरी दुनिया में सभी की आलोचना करने वाले मीडिया के बन्धु कभी भी अराजक केजरीवाल की बुराई नहीं करते। इतना ही नहीं, दिल्ली के कई मीडिया हाउस के पत्रकार तो अराजक केजरीवाल के लिए रणनीति बनाते हुए भी पकडे गए हैं। पत्रकार आशुतोष ने तो आम आदमी पार्टी के लिए पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में कदम रख दिया था और पुण्य प्रसून वाजपेई क्रांतिकारी कैसे दिखना है, वह समझाते हुए नज़र आए थे।
यह दो उदाहरण है, परन्तु जब दिल्ली के चुनाव हुए थे तो मीडिया हाउस में विजय का वातावरण था, जैसे उनका कोई अपना ही जीत गया हो। दिल्ली की किसी भी अव्यवस्था पर कोई भी मीडिया हाउस कोई प्रश्न नहीं पूछता है। कोई भी मीडिया हाउस उस समय एक भी शब्द नहीं बोला था जब पिछले वर्ष षड्यंत्र के चलते उत्तर प्रदेश के मजदूरों को दिल्ली से बाहर निकलवा दिया था। जब अचानक से ही गाजीपुर बॉर्डर आदि पर भीड़ जुट आई थी, तब भी मीडिया ने अराजक और गैर जिम्मेदार केजरीवाल सरकार से कोई प्रश्न नहीं पूछा था। गोदी मीडिया तो नाम के लिए बदनाम है, वास्तविकता में तो यह आम आदमी पार्टी के विज्ञापन हैं, जिनके कारण मीडिया के मुंह पर ताला लगा हुआ है।
हर वर्ष दीपावली पर वायु प्रदूषण का ठीकरा मीडिया और सारी अफसरशाही एवं प्रगतिशील पत्रकार दीपावली पर फोड़ देते हैं और कोई भी मीडिया हाउस अरविन्द केजरीवाल से प्रश्न नहीं करता कि वह प्रदूषण के लिए साल भर क्या करते हैं? परन्तु आज प्रश्न काफी बढ़कर है, और यह भी तय है कि आज भी कोई कुछ नहीं बोलेगा। वही अर्नब गोस्वामी, जिनके पक्ष में भाजपा के ही नेता आए थे, वह भी केजरीवाल से आज के प्रोटोकॉल उल्लंघन के बारे में नहीं पूछेंगे? यहाँ तक कि जी न्यूज़ वाले सुधीर चौधरी भी यह प्रश्न नहीं पूछेंगे कि आपने प्रोटोकॉल का उल्लंघन क्यों किया?
क्या उन्हें यह पता भी है कि आज क्या उल्लंघन हुआ है और क्या हुआ है? शायद नहीं! आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं सभी मुख्यमंत्रियों के बीच जो मीटिंग हो रही थी, उसे लाइव नहीं दिखा सकते थे। उस बैठक में कुछ गोपनीय बातें होती हैं, जिनका शायद जनता के बीच आना उचित न हो। परन्तु दिल्ली के अराजक मुख्यमंत्री ने सारे प्रोटोकॉल तोड़कर अपनी मीटिंग का लाइव टेलीकास्ट कर दिया, और बाद में क्षमा मांगकर दिल्ली की नज़रों में महान भी बन गया है। यह निश्चित है कि कोई भी मीडिया इस प्रोटोकॉल उल्लंघन पर अरविन्द केजरीवाल से प्रश्न नहीं करेगा, किससे करेगा यह हम सभी को पता है।
क्या इसके पीछे केजरीवाल के विज्ञापनों का हर चैनल पर आना है? क्या करोड़ों रूपए का बजट ही वह कारण है जिसके चलते अर्नब गोस्वामी से लेकर नविका कुमार तक केजरीवाल की पार्टी के छोटे से छोटे नेता के आगे मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं? अर्नब गोस्वामी तो कुछ दिनों से पूरी तरह से बदले हुए हैं। यह तय है कि मीडियाई अजगर ने उन्हें निगलना शुरू कर दिया है।
ऐसा नहीं है कि केवल वही पत्रकार केजरीवाल सरकार पर प्रश्न नहीं कर रहे हैं, जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के ईकोसिस्टम में थे, बल्कि वह पत्रकार भी एक भी प्रश्न नहीं उठा रहे हैं, जो दिल्ली में तथाकथित रूप से राष्ट्रवादी पत्रकार हैं, और जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ भी जुड़े होने का दावा करते हुए तमाम तरह के पदों पर आसीन है। दिल्ली का कोई भी पत्रकार संगठन आज केजरीवाल से यह पूछने का साहस नहीं कर पा रहा है कि जब दिल्ली के दरवाजे पर कोविड दस्तक दे रहा था, उस समय किसान आन्दोलन में हर प्रकार की सुविधा किस मूल्य पर दी जा रही थी? वह यह नहीं पूछेंगे कि आखिर अब भी दिल्ली सरकार जो बात बात पर न्यायालय में जाती है, वह इस बात पर न्यायालय क्यों नहीं जा पाती है कि दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए किसान आन्दोलनकारी वापस जाएं?
क्यों कोई पत्रकार दिल्ली की असफलताओं का उत्तरदायित्व ऐसे मुख्यमंत्री को नहीं देता जिसने अपने शासनकाल में एक भी नया अस्पताल नहीं बनवाया है। और यह सूचना के अधिकार के क़ानून के अंतर्गत स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय दिल्ली ने दिल्ली के ही निवासी तेजपाल सिंह ने वर्ष 2019 में दाखिल की गयी याचिका के उत्तर में दी है। स्वास्थ्य निदेशालय ने कहा कि इस अवधि में दिल्ली सरकार की ओर से कोई भी नया अस्पताल नहीं बनाया गया है। अर्थात वर्ष 2015 से 2019 तक कोई नया अस्पताल नहीं बनाया गया था। यह प्रश्न कोई नहीं पूछेगा! यही नहीं प्रदूषण का रोना रोने वाली सरकार ने 1 अप्रैल, 2015 और 31 मार्च, 2019 के बीच राष्ट्रीय राजधानी में कोई भी नए फ्लाईओवर का निर्माण नहीं किया गया है।
असफलताओं की यह सूची न ही यहाँ तक सीमित है और न ही सीमित हो सकती है। फिर भी मीडिया हाउस यह प्रश्न नहीं करेगी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री जबाव दें! वह जबाव केवल और केवल मोदी सरकार से मांगेंगे क्योंकि मोदी सरकार मीडिया हाउस को वह नहीं दे रही है, जो दिल्ली के मुख्यमंत्री दे रहे हैं। यही कारण है कि आज भी प्रोटोकॉल के उल्लंघन के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछा जाएगा, जबकि इस उल्लंघन का एक ही दंड है और वह है अराजक अरविन्द केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करना, पर वह शायद नहीं होगा, क्योंकि करोड़ों के बजट के विज्ञापन पाए हुए मीडिया हाउस मोदी सरकार को इस बात पर भी घेरेंगे! उनके प्रश्न उनके लिए हैं ही नहीं जो उन्हें सुविधाएं और विज्ञापन देते हैं।
काश मीडिया अपना उत्तरदायित्व समझता!
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