पीलीभीत से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिस पर सहज विश्वास नहीं हो सकता है। क्योंकि यह घटना अब्बा, चाचू जान, और बाबा तीनों ही संबंधों पर प्रश्न चिह्न लगाती है। यह प्रश्न उठाती है कि लड़की आखिर क्या है? लड़की क्या बदला बराबर करने के लिए है या फिर लड़की कुनबे की इज्जत बचाने के लिए है? लड़की किसलिए है? लड़की भी नहीं, बल्कि छोटी बच्ची! क्या दस साल की छोटी बच्ची को उसके अब्बू, चाचू और दादाजान इसलिए मार सकते हैं, कि उन्हें शकील से बदला निकालना है?
मगर ऐसा हुआ है! ऐसा इतना भयानक किया गया है, कि सुनकर ही आत्मा कांप जाए, मगर मारने वालों के हाथ नहीं कांपे और वह भी उनके जिनपर वह बच्ची इतना विश्वास करती थी कि उनके साथ चली गयी थी मेला देखने के लिए।
क्या है मामला
दरअसल 3 अक्टूबर को पीलीभीत के थाना अमरिया में माधौपुर गाँव में एक बच्ची का शव खेत में मिला था। 9 साल की बच्ची अनम के पेट पर चोट का गहरा निशान था। आंतें बाहर निकली थीं और बच्ची ने देखते ही देखते लोगों के सामने दम तोड़ दिया था। बच्ची कहीं जिंदा न बच जाए, इस कारण उसके परिवार के लोग उससे यह पूछते रहे कि आखिर यह किसने किया?
मगर वह बेचारी कैसे बताती कि जिन लोगों से वह प्यार करती थी और जिन पर भरोसा करती थी, उन्होंने ही उसकी यह हालत की है। पहले वह उसे मेला घुमाने के लिए लेकर गए और उसे कुछ नींद की गोलियां खिलाकर सुला दिया, और फिर सुबह चार बजे दादा शहजादे, चाचा शादाब, और अब्बा अनीस एक योजना के अंतर्गत शकील के गन्ने के खेत में ले गए। वह कैसे उस वीडियो में बताती कि उसके चाचा शादाब और नसीम ने इतने वार किए थे कि उसकी आंतें बाहर निकल आई थीं और फिर जब भी नहीं मरी तो उसके अब्बा ने ही सिर पर ईंट मारी थी।
वह बच्ची कैसे बताती?
यह ऐसी घटना है जो बताती है कि अभी भी एक ऐसा समुदाय जिसे कथित रूप से भेदभाव मुक्त बताया जाता है, और जिसे लड़कियों के लिए सबसे आजादी वाला बताया जाता है, जिसमें हिजाब और बुर्के के पीछे औरतों की अस्मत को सुरक्षित रखने का दावा किया जाता है, उसमें कहीं न कहीं एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो निजी रंजिशों के लिए ऐसे कुकृत्य भी करता है।
इस घटना के विषय में सुनकर दिल कांप जाता है। कौन सी वह हैवानियत भरी मानसिकता होगी जिसने इन आदमियों से यह काम कराया होगा।
शकील को फंसाना क्यों था?
प्रश्न यह उठता है कि शकील को इतने जघन्य काण्ड में फंसाना ही क्यों था? भास्कर के अनुसार
“शकील के परिवार की एक लड़की से शादाब ने लव मैरिज की थी। शादाब मूल रूप से फकीर समुदाय से आता है, वहीं शकील अंसारी समाज का है। सामाजिक दूरी के कारण दोनों परिवार के बीच लव मैरिज के बाद से ही विवाद था। साल 2019 में शादाब पर शकील की पत्नी ने रेप का मुकदमा दर्ज करा दिया था। शकील से इसका बदला लेने के लिये शादाब लंबे समय से उसे फंसाने की प्लानिंग कर रहा था।“
अर्थात शकील को फंसाने के लिए इस नन्ही बच्ची की कुर्बानी दे दी गयी और वह भी इस ख्याल से कि बेटी तो बाद में भी पैदा हो जाएगी, मगर यदि भाई जेल चला गया तो बहुत बदनामी होगी और परिवार बिखर जाएगा।
भास्कर ने इस जघन्य घटनाकाण्ड के विषय विस्तार से लिखा है। सुनकर एक लिजलिजापन महसूस होगा कि क्या आदमी ऐसे भी हैवान हो सकते हैं?
भास्कर ने हत्यारोपियों के बयान को लिखा है। पुलिस की पूछताछ में चाचूजान शादाब ने बताया कि
“अनम को मारने के लिए चाकू पहले से ही घर से कुछ दूरी पर छुपा दिया था। भाई जाकर अनम को बाहर निकालते हैं तो वो बेहोश ही मिलती है। मैं और अब्बू पहले अनम को पत्थर से मारते हैं। बड़े भाई अनीस भी बेटी के शरीर पर पत्थर से वार करते हैं। उसके बाद हम लोग उसकी जैकेट खोल देते हैं जिससे चाकू सही से अंदर चला जाए। पहले उसको अनीस ही मारने वाले होते हैं लेकिन फिर उनका दिल पसीज जाता है।”
“वो मुझे चाकू दे देते हैं। उसके बाद कहते हैं, मैं उधर मुंह घुमा लेता हूं फिर तुम चाकू मारना। भाई के मुंह घुमाते ही मैं उसके पेट में चाकू मारता हूं फिर घुमा कर बाहर निकाल लेता हूं। उसकी आंते बाहर आ जाती हैं। करीब आधे घंटे तक हम लोग उसको मारता हुआ देखते हैं। वो चिल्लाए न इसलिए अब्बू उसका गला दबाए हुए थे।”
“अनम बेहोश होती है लेकिन हमें लगता है वो मर गई। हम लोग उसको उठाकर गेहूं के खेत में डाल देते हैं। मैं उसका जूता उठाकर लाता हूं और उसको खेत के बाहर डाल देता हैं। उसके बाद हम लोग रोते हुए घर पहुंचते हैं और कहते हैं अनम कहीं नहीं मिल रही। फिर से उसकी तलाश करने निकल जाते हैं।”
“उसके बाद ढूंढते हुए वहीं पहुंचते हैं जहां उसका जूता हम डालकर आते हैं। जूता देखकर मैं जोर से चिल्लाता हूं अनम का जूता मिला है। मेरी आवाज सुनकर बड़े भाई और अब्बू आ जाते हैं। गांव के लोग भी आते हैं। हम लोग खेत के अंदर जाते हैं तो अनम जिंदा मिलती है। ये देखकर हम लोग डर जाते हैं।”
मेरे अब्बू उसके पास दौड़कर जाते हैं। वो उससे बार-बार पूछते हैं तुमको किसने मारा, तुमको किसने मारा। वो रोते भी हैं। गांव के लोग लगातार पुलिस को सूचना देने की बात बोलते हैं लेकिन हम लोग फोन नहीं करते। हम लोग वेट करते हैं अनम के मरने का। कुछ देर तड़पने के बाद वो मर जाती है। उसके बाद पुलिस को सूचना देते हैं। पुलिस के आते ही शकील को फंसाने के लिए उसका नाम ले लेते हैं। लेकिन उसके बाद भी पुलिस जांच में हम लोग पकड़े गए।”
हालांकि पुलिस की गिरफ्त में यह सब आ चुके हैं मगर शादाब को अब भी यही अफ़सोस है कि जिस परिवार को वह लोग बचाने की कोशिश कर रहे थे, वह अब पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है!
मगर फिर भी प्रश्न यही है कि आखिर ऐसे कुछ लोगों के लिए बेटियाँ क्या हैं? क्या अनीस को यह ख्याल नहीं आया कि वह बच्ची उसे अब्बू कहकर बुलाती थी, भरोसा करती थी! चाचूजान, दादा जान तो दूसरे रिश्ते हैं, मगर अब्बा?
और जो लोग यह कहते हैं कि इस्लाम में भेदभाव नहीं होता, वह अनम जैसी बच्चियों की इस भेदभाव के चलते की गयी हत्या पर क्या बोलेंगे? या वह चुप रहेंगे? अनम की मौत इतनी अनाम तो नहीं रहनी चाहिए? मुस्लिम समाज के शिक्षित एवं उदार वर्ग से ऐसी हर घटना का विरोध आना चाहिए, कम से कम मासूम बच्ची के साथ की गयी इतनी नृशंसता की निंदा तो करनी ही चाहिए!
आवाज तो उतनी ही चाहिए! अनम की चीखें कहीं सेक्युलर विमर्श में खोकर न रह जाएं, डर यह भी है! हालांकि इसे लेकर हिन्दुओं पर या कहें भारत और उत्तर प्रदेश की व्यवस्था पर निशाना साधने का प्रयास किया गया, मुस्लिम बच्ची की हत्या की गयी, इसका विमर्श बनाया गया! परन्तु मामले की तह में जाने का प्रयास नहीं किया गया! और यही मुस्लिम विमर्श की सबसे बड़ी पराजय है कि वह खुद को नहीं टटोलता है