फिर से आमिर खान एक बार आए हैं हिन्दुओं की विवाह परम्परा में बदलाव लाने के लिए। विज्ञापन है एयू स्माल फाइनेंस बैंक का, जिसमें आमिर खान और किआरा आडवानी पति पत्नी बने हैं और घर जमाई बनने के लिए आमिर खान अपनी पत्नी के घर जाते हैं और जैसे ससुराल में पहला कदम दुल्हन रखती है, इसमें आमिर खान रखते हैं। लड़की की माँ, आमिर खान की आरती करते हुए कहती है “वेलकम दामाद जी” और फिर किआरा आडवानी कहती है कि “थैंक यू, इतना बड़ा कदम उठाने के लिए!”
लड़की के पिता को व्हील चेयर पर दिखाया गया है! और उसके बाद यह आता है कि “सदियों से जो प्रथा चलती आई है, वही चलती रहेगी, ऐसा क्यों?”
और फिर असली रूप आता है कि “तभी तो हम पूछते हैं सवाल बैंकिंग की हर प्रथा से, ताकि आपको मिले बेस्ट सर्विस, ईयू बैंक, बदलाव हम से!”
यह विज्ञापन क्या सोचकर बनाया गया है? आखिर क्यों बदलाव लाना है और किसलिए? और किसी भी विज्ञापन के लिए हिन्दुओं के रहे बचे शेष संस्कारों पर प्रहार करना आवश्यक क्यों है और वह भी मात्र बैंकिंग के लिए?
यह किस स्तर की नीचता है? यह किस स्तर का छिछलापन है कि चाहे विज्ञापन वाले हों, चाहे फिल्म वाले हों या फिर कहानीकार, या फिर कवि, सभी की क्रांति मात्र हिन्दू धर्म, उसकी परम्पराओं पर ही चलती है।
ऐसा नहीं है कि घर जमाई की परम्परा नहीं है, भारत में कई ऐसे स्थान हैं, जहां पर घर जमाई की परम्परा है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में पंधराखेडी गाँव में लड़की अपने पति के साथ अपने घर ही रहती है, यहाँ पर दामाद ही अपनी ससुराल में आता है। यहाँ पर ऐसे दामादों की कई पीढियां रह रही हैं।
ऐसा ही एक स्थान है पश्चिम चंपारण जिले का बगहा प्रखंड में नरईपुर। जागरण के अनुसार यहाँ पर बेटियों को ब्याहते तो हैं, परन्तु वह जमाई को बसा लेते हैं और यह स्वीकृत प्रथा है। “यहां 1500 से अधिक दामाद हैं। अधिकतर कृषि कार्य से जुड़े हैं। 70 वर्षीय बाबूराम यादव का जन्म यहीं हुआ था। उनके पिता यहां के दामाद थे। वह बताते हैं कि उस समय कुछ ही परिवारों के दामाद यहां रहते थे। धीरे-धीरे दामाद को यहीं रखने की परंपरा सी बन गई। बेटा होने के बाद भी अधिकतर परिवारों ने बेटियों को यहीं बसा लिया है। मेहनत-मजदूरी कर जीवन-यापन करने वाले लोग बंटवारे और हिस्सेदारी से ऊपर उठकर प्रेमभाव से रहते हैं।
ऐसे यदि खोजा जाएगा तो एक नहीं कई परिवार, कई गाँव मिलेंगे जहाँ पर यह परम्परा हो सकती है, अत: आमिर खान या एयू बैंक को बदलाव के लिए ऐसी बकवास करने की आवश्यकता थी ही नहीं, क्योंकि हिन्दू धर्म में बंधन है ही नहीं। किसी एक किताब की अवधारणा पर चलने वाला धर्म नहीं है हिन्दू, बल्कि स्थानीय मूल्यों को आत्मसात करके आगे बढ़ने वाला धर्म है हिन्दू! धर्म की अवधारणा भी न ही बैंक वालों को पता होगी, न ही एड एजेंसी को और न ही आमिर खान को!
सोशल मीडिया पर लोगों के भीतर गुस्सा है:
इस विज्ञापन के आते ही लोगों के मन में एक बार फिर से गुस्सा फूट पड़ा है। कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस विज्ञापन की आलोचना करते हुए कहा कि मुझे यह नहें समझ में आता कि बैंक कब से सामाजिक और धार्मिक परम्पराओं को बदलने वाले हो गए? मुझे लगता है कि एयू बैंक को यह क्रांति भारत की भ्रष्ट बैंकिंग व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए करनी चाहिए, और ऐसी बकवास करते हैं और फिर कहते हैं कि हिन्दू ट्रोल करते हैं!
बात पूरी तरह से ठीक है! बैंक कब से हिन्दुओं के रखवाले बन गए कि वह हमारी विवाह व्यवस्था में हस्तक्षेप करें? जिसने भी यह विज्ञापन बनाया है, उसे न ही भारत की जानकारी है और न ही हिन्दुओं की! हाँ, इन सभी को इतना अवश्य पता है कि हिन्दू मात्र शोर मचा लेगा, और शोर मचाने को लेकर ही उस पर असहिष्णुता का ठप्पा लग जाएगा, मगर आमिर खान की हिम्मत कभी यह कहने की नहीं हो पाएगी कि यह उस विवाह व्यवस्था के प्रति विज्ञापन है, जिस धर्म में बैन विश्वास नहीं करता, चलो उस कुप्रथा पर विज्ञापन बनाते हैं, जिससे अभी इस्लामिक देश ईरान की महिलाएं त्रस्त हैं!
यदि ईरान तक दृष्टि नहीं जा पा रही हो आमिर खान की तो अफगानिस्तान में ही देख सकते हैं, वहां भी उनकी क्रान्ति की “शिया-हजारा” औरतों को बहुत जरूरत है, जिन्हें बम धमाकों में मारा जा रहा है! भारत में कई मुस्लिम औरतें अभी तक तीन तलाक का शिकार हो रही हैं, यहाँ तक कि अहमदाबाद में तो जहेज के चलते एक मुस्लिम लड़की ने आत्महत्या तक कर ली थी, परन्तु आमिर खान या किसी भी एड एजेंसी का कंटेंट क्रिएटर अपनी रचनात्मकता का प्रयोग वहां पर कर ही नहीं पाता है, यह बहुत ही दुखद बात है!
यह परस्पर विरोधाभासी है कि एक ओर हिन्दू धर्म को सबसे सहिष्णु कहा जाता है, तो वहीं उसी के साथ सबसे अधिक खेल किए जाते हैं।
इसी बात को लेकर लोग भी कह रहे हैं कि हम प्रतीक्षा कर रहे हैं कि आमिर खान खतना आदि पर फ़िल्में बनाएं:
पुरुषों के लिए कार्य करने वाली संस्थान ने ट्वीट किया कि आमिर खान ने फिर किया, फेमिनिज्म के नाम पर फिर से आक्रमण किया
एक बात तो स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म पर हर प्रकार के एक्टिविज्म के नाम पर हमला होता रहेगा, क्योंकि अभी कुछ आवाजें कथित सुधारवादी राष्ट्रवादी हिन्दुओं की ओर से भी उठने लगेंगी कि “समय के साथ परिवर्तन होने चाहिए!” और फेमिनिज्म के नाम पर ऐसे बेहूदे तर्क भी आ सकते हैं, परन्तु यह बात सभी को समझनी चाहिए कि हिन्दू धर्म किसी बैंक, किसी एड एजेंसी, किसी राजनीतिक विचारधारा के तले पनपे साहित्य अदि के हाथों प्रयोगों का स्थान नहीं है!
यह हर किसी को समझना होगा कि हिन्दू धर्म कोई प्रयोगशाला न होकर एक ऐसा समृद्ध धर्म है, जिसकी अपनी परम्पराएं हैं, अब जो भी व्यक्ति हिन्दू को एक किताब या निश्चित पैटर्न की दृष्टि से देखता है, वही इस प्रकार के वाहियात विज्ञापन बनाता है क्योंकि उसके दिमाग किसी और को लेकर विचार होते हैं, परन्तु वह समुदाय चूंकि हिन्दुओं की तरह सहिष्णु नहीं होते हैं, और कभी भी उनका गला कट सकता है, या फिर अंग भंग हो सकता है, या फिर उन्हें न्यायालय में घसीटा जा सकता है, तो वह उनकी ओर न जाकर सबसे सहिष्णु हिन्दू धर्म पर ही वह कुरीतियाँ थोप देता है, जो दरअसल हिन्दू धर्म का हिस्सा होती ही नहीं हैं!
क्या अब आमिर खान जैसे लोग मंगलसूत्र पहनकर दिखाई देंगे?
फिर भी सबसे मूल प्रश्न यही है कि आमिर खान और एयू बैंक, और उनके विज्ञापन बनाने वाले अपना लोन बेचने के लिए हिन्दू धर्म पर ऐसा प्रहार करने का दुस्साहस ले कहाँ से आए? और क्यों हर कोई बार-बार किसी न किसी बहाने से हिन्दू धर्म को अपनी विकृत मानसिकता का शिकार बनाता है? इस घृणा का कारण क्या है? वैसे ही अब संयुक्त परिवार लगभग नष्ट ही हो चुके हैं, कैरियर की तलाश में वैसे ही लड़के अपने परिवार से अलग हो चुके होते हैं, ऐसे में इस प्रकार के विज्ञापन?
यह तो निश्चित है कि एक सीमा रेखा अब निर्धारित होनी चाहिए कि धार्मिक परम्पराओं और संस्कारों पर विज्ञापनों में इस प्रकार की नीच प्रयोग रुकने चाहिए और जो हिन्दू धर्म में विश्वास नहीं करता है, जो उसके आराध्यों, उसकी परम्पराओं को नहीं मानता है, उसके पास यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह अपने मन से कोई भी व्याख्या कर सके!