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Saturday, April 20, 2024

पत्रकार अजीत भारती को न्यायालय की अवमानना का नोटिस!

dopolitics के सहसंस्थापक एवं पत्रकार अजीत भारती पर उनके एक वीडियो के कारण न्यायालय की अवमानना का आरोप लगाया है और भारत के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने मुक़दमे को चलाने की अनुमति दे दी। कल रात को यह समाचार आया कि भारत के अटॉर्नी जनरल श्री के के वेणुगोपाल ने किसी कृतिका सिंह का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया है कि अजीत भारती के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के अंतर्गत आपराधिक अवमानना की कार्यवाही आरम्भ की जाए, जिस वीडियो को उन्होंने अनुवाद कराया है और उन्होंने उन कंटेंट को अंग्रेजी में पढ़ा है, जिन्हें कृतिका ने अपने आवेदन में उठाया है।

और फिर श्री वेणुगोपाल लिखते हैं कि उस वीडियो को 1.7 लाख लोगों ने देखा है और जो उच्चतम न्यायालय के लिए ही नहीं बल्कि पूरी न्याय व्यवस्था के लिए ही अपमानजनक है। अजीत भारती ने उच्चतम न्यायालय पर रिश्वत, पक्षपात, भाई भतीजावाद और शक्ति के दुरूपयोग के आरोप लगाए हैं। इनमें से कुछ आरोप हैं कि “हम कैसे उन पापियों (उच्चतम न्यायालय के जज) को माफ़ कर सकते हैं जो वकीलों के हाथों में ब्लैकमेल होते हैं।”

श्री के के वेणुगोपाल जी ने अजीत भारती की भाषा पर आपत्ति व्यक्त कर दी, परन्तु अजीत भारती द्वारा उठाए गए विषयों पर मौन साध लिया। आम जनता तक इस बात से दुखी है कि न्यायालय में न्याय के अतिरिक्त सब कुछ मिलता है। और इतनी तारीखें मिलती हैं, कि कभी कभी पिता का मुकदमा लड़ते लड़ते पुत्र भी वृद्ध हो जाता है। कभी कभी मुकदमें का निर्णय जब तक आता है तब तक व्यक्ति की उम्र बीत जाती है। यदि इतना असंतोष जनता में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को लेकर नहीं होता तो दामिनी फिल्म का यह संवाद “तारीख पे तारीख.. तारीख पे तारीख…तारीख पे तारीख और तारीख पे तारीख मिलती रही है…लेकिन इंसाफ़ नही मिला माई लॉर्ड इंसाफ़ नही मिला…मिली है तो सिर्फ़ ये तारीख।“ और जनता इसे आज तक अपनी स्मृति में जीवित न रखे होती!

ट्विटर पर आम लोग भी प्रश्न कर रहे हैं कि क्या अजीत भारती ने जो प्रश्न उठाए हैं, वह सही नहीं हैं? क्या किसी साधारण व्यक्ति के लिए न्यायालय रात को बारह बजे दरवाजे खोल सकता है? परन्तु आतंकवादियों के लिए यह सुविधा क्यों हो जाती है?

नागरिकता आन्दोलन के दौरान हर्ष मंदर ने स्पष्ट कहा था कि उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या और कश्मीर में न्याय नहीं किया, इसलिए अब फ़ैसला संसद या SC में नहीं होगा। SC ने अयोध्या और कश्मीर के मामले में secularism की रक्षा नहीं की। इसलिए फ़ैसला अब सड़कों पर होगा।

अयोध्या पर आए उच्चतम न्यायालय के विरोध में मुस्लिम नेता तो बोलते ही है, अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने एक पैनल चर्चा में कहा था कि ‘अब हम ऐसी स्थिति में हैं जहां हमारी अदालतें सुनिश्चित नहीं हैं कि वे संविधान में विश्वास करती हैं या नहीं। हम एक देश में रह रहे हैं जहां हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस गैरकानूनी था और फिर उसी फैसले ने उन्हीं लोगों को पुरस्कृत किया जिन्होंने मस्जिद को गिराया था।’

परन्तु श्री के के वेणुगोपाल जी ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर प्रश्न उठाने को ही अवमानना के योग्य नहीं माना था।

https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/attorney-general-k-k-venugopal-refuses-consent-for-initiating-contempt-action-against-swara-bhaskar/articleshow/77705994.cms?from=mdr

इतना ही नहीं, अभी तक कॉमेडियन कुणाल कामरान पर भी शायद कोई कार्यवाही नहीं हुई है, जिन्होनें सीधे श्री के के वेणुगोपाल जी को ही चुनौती दी थी कि आने दो अवमानना का नोटिस, वह न ही माफी मांगेगे और न ही वकील रखेंगे!

https://www.bbc.com/hindi/india-54931185

वहीं आनंद रंगनाथन ने अजीत भारती का समर्थन करते हुए कहा कि इस वाक्य का क्या हुआ कि “असंतोष लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है!”

पत्रकार संदीप देव ने श्री के के वेणुगोपाल के वाम प्रेम पर ट्वीट किया कि

हम भारत के लोग नामक हैंडल ने लिखा कि
“यह सही है कि शब्दों का चयन और भी संवैधानिक हो सकता था, मगर न्यायपालिका पर आम जनता के भाव, आम जनता का गुस्सा और संविधान एवं क़ानून को रौंदने के न्यायपालिका के इस व्यवहार को इससे बेहतर तरीके से शायद व्यक्त नहीं किया जा सकता था

लेखक नीरज अत्री ने इसे बदला लेने वाला कदम बताते हुए कहा कि अजीत से कड़वी कड़वी बातें कहने वाले लोग स्वतंत्र घूम रहे हैं, क़ानून सभी के लिए एक समान होना चाहिए

हाल ही में मिशनरी के निशाने पर आए अंशुल सक्सेना ने भी यही प्रश्न किया कि

स्वरा भास्कर ने अयोध्या निर्णय पर टिप्पणी की, और प्रशांत भूषण ने सीजेआई के विरुद्ध टिप्पणी की, परन्तु कार्यवाही अजीत भारती पर हुई क्योंकि अजीत ने बंगाल हिंसा, सीएए के विरोध में चल रहे आन्दोलन और तीन करोड़ लंबित मुकदमों के बारे में प्रश्न किए

बार बार कई लोग यही बात उठा रहे हैं कि, अजीत भारती की भाषा कुछ और बेहतर हो सकती थी, परन्तु अजीत भारती ने जो कहा है, उसमें कहीं न कहीं सच्चाई तो है ही। क्या आतंकवादियों के लिए जो रात में बारह बजे न्यायालय खुली, उसे जनता ने नहीं देखा? जनता का मन आहत है मीलोर्ड, जब वह देखती है कि पैसे वाले और प्रभावित करने वाले सलमान खान, संजय दत्त, जैसे लोग बहुत आराम से छूट जाते हैं, जब वह देखती है कि देश के टुकड़े टुकड़े करने वाले नारे आपको नहीं दुःख देते, पर आम जनता को छलनी कर देते हैं।

आज आम जनता ट्विटर पर अजीत भारती के समर्थन में उतर आई है!

क्योंकि वह अन्याय होता अनुभव कर रही है, और व्यवस्था के पक्षपात पूर्ण व्यवहार से आक्रोशित है, और इस असंतोष को न्यायालय ने ही बार बार सही ठहराया है कि असंतोष ही लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है. तो क्या यह अधिकार आम जनता को नहीं है कि वह न्याय में मिल रही देरी पर और एक विशेष विचारधारा को मिल रहे विशेष व्यवहार पर अपना असंतोष व्यक्त कर पाए:

क्या यह असंतोष का अधिकार केवल वाम विचार रखने वालों के लिए है, यह आज आम जनता न्यायालय से पूछ रही है, टकटकी लगी है, तमाम प्रश्नों के साथ! जनता के दुःख को समझा नहीं जाना चाहिए क्या?


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